देश के लिये सदैव तत्पर रहे स्वामी भीष्म महाराज
सन 1859 में हरियाणा के पांचाल ब्राह्मण परिवार में जन्मे स्वामी भीष्म महाराज ने सन 1881 में आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लेते हुए गुरु आज्ञा से इंद्री छेदन का कठोर कर्म करके सन्यास की दीक्षा ली और भीष्म ब्रह्मचारी के नाम से विख्यात हुए। 1886 में स्वामी दयानन्द का अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर आर्य समाज मे प्रवेश किया। 96 वर्ष तक वैदिक धर्म का प्रचार करते हुए सैंकड़ों विद्वान उपदेशक तैयार किये। आज भी आर्य समाज के क्षेत्र में 80 प्रतिशत उपदेशक स्वामी जी की शिष्य परम्परा की 5वीं और 6वीं पीढ़ी के शिष्य आर्य समाज का देश-विदेश में कार्य कर रहे हैं।
1919 से 1934 तक स्वामी जी के करैहड़ा आश्रम पर वीर भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, असफाक, लाल बहादुर शास्त्री, रामचन्द्र विकल, चौधरी चरण सिंह आदि क्रांतिकारियों का गुप्त अड्डा था। जहां ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फैकने की योजना, गोली चलाने का अभ्यास व बम आदि बनाए जाते थे। स्वामी जी महाराज ने 250 पुस्तकें गद्य व पद्य में लिखीं जिनको पढ़कर पता चलता है कि स्वामी जी ने धार्मिक, राष्ट्रीय तथा सामाजिक चेतना के क्षेत्र में बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण काम किया है। सन 1935 से महाप्रयाण के अंतिम क्षण तक स्वामी जी घरौंडा जिला करनाल में रहे।
1935 से देश आजाद होने तक ब्रिटिश सरकार के प्रतिबंध के बावजूद भीष्म भवन पर तिरंगा झंडा शान से लहराता रहा। स्वामी जी की राष्ट्र व मानवता के प्रति सेवाओं को देखते हुए देश के प्रधानमंत्री रहे लाल बहादुर शास्त्री, इन्दिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह ने उन्हें सम्मानित किया। 27 मार्च 1983 में देश के महामहिम राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने उनके आश्रम पर स्वयं उपस्थित होकर सम्मानित किया था। स्वामी जी द्वारा लिखे साहित्य के ऊपर विभिन्न विश्वविद्यालयों से अब तक लगभग 10 छात्रों ने शोध किया है।
महाप्रयाण-
स्वामी भीष्म महाराज ने 8 जनवरी 1984 को 125 वर्ष की आयु में प्रातः 3 बजे ओ३म का लंबा उच्चारण करते हुए प्राण त्याग कर नश्वर शरीर को छोड़ संसार से विदा हुए।
विशेष-
स्वामी भीष्म जी महाराज के जीवन पर एक बृहद ग्रन्थ लिखा जा रहा है जो शीघ्र ही छपकर तैयार होगा। यह ग्रन्थ देश की युवा पीढ़ी में राष्ट्रसेवा की भावना को बढ़ाने में महत्वपूर्ण काम करेगा। यह अपने आप मे स्वामी जी महाराज के जीवन पर शोध ग्रन्थ होगा।
लेखक- शिवकुमार आर्य, 9729072696