वैज्ञानिक डॉ0 जगन्नाथ विश्वकर्मा के रिसर्च को पूरी दुनिया मे मिली सराहना
हजारीबाग। आश्रय फाउंडेशन से सक्रिय रूप से जुड़े हुए डॉ0 जगन्नाथ विश्वकर्मा ने पौधों को अतिरिक्त लोहा कैसे मिलता है का शोध कर पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया है। डॉ0 जगन्नाथ विश्वकर्मा मूलतः असम के रहने वाले हैं और वर्तमान में स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, स्विट्जरलैंड में वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत हैं। दुनिया की प्रतिष्ठित फोर्ब्स पत्रिका ने भी इन्हें सुर्खियां बनाया है। उन्होंने बताया कि हमने पांच साल के लंबे शोध के साथ एक तंत्र का प्रस्ताव दिया जिसके माध्यम से पौधों को लोहे की कमी की स्थिति में मिट्टी से लोहा प्राप्त होता है। कहा कि लोहा सभी जीवित जीवों के लिए एक आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्व है। मनुष्य भोजन में सब्जियों के माध्यम से लोहा प्राप्त करता है। अगर पौधों में आयरन की कमी है तो यह आयरन क्लोरोसिस जैसी बीमारियों से ग्रस्त है।
बदलती पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण पौधों को मिट्टी से लोहा प्राप्त करने के लिए विभिन्न तरीकों को अपनाने की आवश्यकता होती है। पिछले कई अध्ययन लोहे की जैव उपलब्धता पर किए गए थे, लेकिन इस युवा वैज्ञानिक के शोध ने पौधों और कृषि वैज्ञानिकों के लिए पौधों द्वारा लोहे के उत्थान की जांच करने के लिए एक नींव रख दी। फोर्ब्स ने इस बात पर प्रकाश डाला कि डॉ0 जगन्नाथ विश्वकर्मा का अध्ययन वैश्विक वैज्ञानिक समुदाय के लिए अत्यधिक प्रासंगिक होगा। बांग्लादेश, वियतनाम, कंबोडिया, थाईलैंड, पेरू, ब्राजील, चिली, अर्जेंटीना जैसे देशों में पर्यावरण की स्थिति बहुत गतिशील है। लोहे की कमी से उन देशों में गंभीर कृषि और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट पैदा हो सकते हैं। भारत में भी पूर्व और उत्तर पूर्व राज्यों में मौसम की स्थिति चरम पर है, जो पौधों के बीच लोहे की उपलब्धता को प्रभावित करेगी। इसलिए डॉ0 जगन्नाथ का शोध भारत के पर्यावरण और कृषि संदर्भ के लिए अत्यधिक प्रासंगिक है।
डॉ0 जगन्नाथ विश्वकर्मा ने स्विट्जरलैंड से किया है डॉक्टरेट-
डॉ0 जगन्नाथ विश्वकर्मा ने स्विट्जरलैंड में इटीएच ज्यूरिख से डॉक्टरेट की। इटीएच ज्यूरिख दुनिया के शीर्ष दस विश्वविद्यालयों में से एक है और इसमें अल्बर्ट आइंस्टीन सहित 21 नोबेल पुरस्कार विजेता हैं। डॉ0 विश्वकर्मा विदेश से भारत की विभिन्न अनुसंधान गतिविधियों में शामिल हुए। हाल ही में डॉ0 जगन्नाथ भारत सरकार द्वारा आयोजित वैभव शिखर सम्मेलन में पर्यावरण विज्ञान के लिए एक पैनलिस्ट थे। इस शिखर सम्मेलन में वातावरण में पोषक तत्वों और प्रदूषण के क्षेत्र में अपने व्यापक शोध और अनुभव के साथ इन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय नीतियों और बुनियादी ढांचे को और मजबूत करने की सलाह दी, जिसे व्यापक तौर पर सराहा गया।
राज्य के लोगों को स्वच्छ और शुद्ध पानी दिलाने के प्रोजेक्ट पर कर रहे हैं काम-
हजारीबाग (झारखंड) के आश्रय फाउंडेशन के साथ सक्रिय रूप से जुड़े रहने के कारण हजारीबाग से इनका गहरा लगाव है। आश्रय फाउंडेशन के संस्थापक और सचिव डॉ अमला राणा ने बताया कि डॉ0 जगन्नाथ, फाउंडेशन के साथ जुड़कर वर्तमान में झारखंड में पानी की गुणवत्ता पर शोध कर रहे हैं। इसका मुख्य उद्देश्य झारखंड और भारत के लोगों को स्वच्छ पानी और पर्यावरण प्रदान करना है। फाउंडेशन समाज में बदलाव लाने और “स्वच्छ भारत” के सपने को पूरा करने के लिए वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं और सरकारी एजेंसियों के साथ सक्रिय रूप से काम कर रहा है। (साभार)