वर्ष 2024 “कांग्रेस का शून्यकाल”
अगर हम इतिहास से इतिहास की परतों को खंगालना शुरू करें तो एक ऐसे विराट व्यक्तित्व का दर्पण सामने आयेगा जिन्होंने अपने 72 साल की उम्र में बिहार में एक ऐसे समग्र आंदोलन का बीज बोया जिसने 135 साल पुरानी कांग्रेस की चूले हिला दी थी। यह 72 वर्षीय जवान बूढ़ा अपने अजीज मित्र नाना देशमुख के साथ एक ऐसे आंदोलन की अगुवाई कर रहा था जिसने वर्ष 1975 में देश में आपातकाल लाकर एक ऐसी एकतंत्रीय कुव्यवस्था लायी थी जिसे खत्म करना ही उस महामानव का मुख्य उद्देश्य रह गया था। इंदिरा गांधी के जिद्दी एवं एकतंत्रीय राज करने की पद्धति से सारा भारत दुखी था। उस समय इस अनथक योद्धा का नेतृत्व स्वीकार करते हुए युवाओं की टोली सहित पूरे बिहार के जनमानस ने दिल से इंदिरा प्रशासन के विरुद्ध आंदोलन करने के लिए तैयार हो चुका लगता था। पूरे बिहार में युवजन सहित आमजन लोगों के बीच इस जवान बूढ़े की कसरत ने ऐसी शैवाल लायी कि कांग्रेस आज मृत्यु शैया पर सोया धृतराष्ट्र की तरह संजय की आंखों से अपने पराभव का परिणाम देख रहा है।
पूरा भारत आज भी इस समग्र आंदोलन के जनक के आवाहन को याद करते नहीं थकते हैं, जिन्होंने बिहार में गैर-कांग्रेस वाद को जन्म दिया एवं बिहार में कांग्रेस के पराभव की पटकथा लिखी। इस विराट व्यक्तित्व ने जन आंदोलन की ऐसी गति बढ़ाई जिसने कांग्रेस को नेस्तनाबूत करते हुये सामाजिक न्याय के युग को जन्म दिया जो अपनी बिहार रुपी मां की कोख से निकलकर समाजवादी व्यवस्था के अधीन एक अच्छे काल में प्रवेश करते हुये मुखर सामाजिक उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु उपजे आंदोलन से हुआ। यह सत्य है कि इस जन आंदोलन ने कांग्रेस की चूले हिला दी और सामाजिक न्याय के पैरोकार के रूप में पिछड़े समाज के युगांत कारी नेता के रूप में लालू यादव का उदय हुआ। इस आंदोलन से उपजे लालू यादव के राजनीति में आने के आगाज ने राजनीति की दशा एवं दिशा ही बदल दी। सामाजिक क्रांति तो ऐसी कि जिनका मुंह बंद था उनके मुंह में भी बोली आई, लोगों में जागृति आई। वे अपने अधिकारों के लिए सजग हो गए एव उनमें लड़ने की शक्ति का पुनर्जन्म हुआ। यदि परिस्थितियों पर नजर डालें तो इस काल में जेपी आंदोलन के युगपुरुष के रूप में लालू ने ख्याति प्राप्त की।वास्तविक तौर पर सामाजिक बदलाव लाने में महती जिम्मेदारी निभाने वाले शख्स के रूप में उनकी पहचान बनी।
अब संभ्रांत समाज के लोगों में वह शक्ति व अधिकार शेष नहीं रह गया था, जो कांग्रेस के काल में बुलंदी पर था। परंतु अपनी कुछ खास खामियों की वजह से जेपी आंदोलन से उपजे लालू से समाज वह प्राप्त नहीं कर सका जितनी उनसे अपेक्षा थी। उन्होंने सामाजिक क्षेत्रों में अच्छी उपलब्धियां दिलाई परंतु प्रदेश एवं राष्ट्र को वह पूर्णता नहीं दे पाए जिसकी जरूरत थी। धीरे-धीरे कांग्रेस अपने पराभाव के उत्कर्ष को प्राप्त करता रहा और उनका यह पराभव लगातार गति पकड़ता रहा। इसी जेपी आंदोलन के श्रेष्ठ सिपाहियों में से लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, विजय कृष्ण, गौतम सागर राणा एवं अब्दुल बारी सिद्दीकी एवं इनके समकालीन अनगिनत सिपाहियों को पूरा बिहार जानता है, जो आज भी किसी न किसी दल के साथ संबद्ध रहकर इस आंदोलन के “लौ” को जला रहे हैं। नितीश कुमार तो प्रदेश के मुखिया ही हैं, अब्दुल बारी भी विपक्ष की एक ठोस धार हैं, वहीं लालू राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में आज भी अपने दल की शोभा बढ़ा रहे हैं। अब प्रश्न उठता है कांग्रेस के पराभव में वस्तुतः किन-किन कारणों का योगदान रहा है, जिसके परीक्षण की आवश्यकता है। क्या कारण रहे, कांग्रेस को इस अंतिम पड़ाव में पहुंचाने के पीछे? नेपथ्य के महत्वपूर्ण नेताओं में कौन सबसे सशक्त नेता थे? इसका जवाब पूरा राष्ट्र जानना चाहता है। पूरा प्रदेश जानता है, वह और कोई नहीं, समग्र आंदोलन के जनक जेपी जिन्होंने अपने लोकप्रिय शिष्यों की मदद से दुर्गा कही जाने वाली इंदिरा को ऐसा धरातल दिखाए जिसका परिणाम आज पूरे देश में इसके सिमटते स्वरूप से पता चलता है। बिहार में तो कांग्रेस “शून्य” हो ही चुकी है। लोगों की ऐसी मान्यता है कि अब बिहार में कांग्रेस का काल निसंदेह कभी नहीं आएगा। कारण तलाशे गए, जानकारियां हासिल की गई, तथ्यों पर गौर किया गया, आंदोलन के चेहरों पर नजर दौड़ाई गई, कांग्रेस के कृत्यों का परीक्षण किया गया तो एक चीज सामने आया कि वह कांग्रेस के एक तंत्र का भाव रहा जो इस राजनीतिक दल की सबसे कमजोर कड़ी थी। क्षेत्रीय छत्रपों ने कांग्रेस की इसी कमजोरी का लाभ उठाया। कांग्रेस की समस्त कमजोरियों में सेंध लगाई गई। केंद्रीयकृत नेतृत्व का ताना-बाना बुनकर लोगों को गलत संदेश देने के कांग्रेस के कृत्य से जनमानस को अवगत कराया गया। क्षेत्रीय दलों को जनमानस का संपूर्ण सहारा मिला जिसका क्षेत्रीय दलों ने भी भरपूर फायदा उठाया।
इसकी एक बानगी के तौर पर कांग्रेस के दिग्गज सीताराम केसरी की भरपूर बेइज्जती से प्रारंभ होकर उन्हें अध्यक्ष पद से हटाने का कृत्य सदा कांग्रेस काल के इतिहास में एक काला अध्याय के रूप में याद किया जाएगा। एक हृदय से कांग्रेस के सिपाही रहे इस कांग्रेसी के विलक्षण काबिलियत से ही प्रभावित होकर कांग्रेस काल के शीर्षस्थ नेताओं द्वारा यह अक्सर कहा जाता था कि-
“न खाता न बही, जो केशरी कहे, वही सही।”
यह प्रसंग उस काल का है जब वे कांग्रेस के कोषाध्यक्ष हुआ करते थे। कोषाध्यक्ष भी ऐसे कि लगातार दो दशकों तक इस पद की शोभा बढ़ाते रहे। इस स्वर्णिम काल में कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गजों को भी उनके मुखातिब करने की हिम्मत नहीं होती थी। कारण साफ था निष्ठा, निष्ठा भी ऐसी कि जो विरले मिलते हैं, उनकी कांग्रेस के प्रति जो थी। कांग्रेस के खेतों में धीरे-धीरे कांग्रेस को प्रभुत्व के शिखर पर ले गया। क्षेत्रीय दलों के उदय ने इसे और गति दी। प्रारंभिक द्वार में कांग्रेस ने समझा कि इतिहास के सार्थक साक्ष्यों के आधार पर क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को अपनी छत्रछाया में अधिकृत कर लेंगे परंतु स्थिति विपरीत हुई और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने ही कांग्रेस को अधिगृहीत कर लिया। यह कांग्रेस के अवसान काल का प्रारंभ हो चुका था। इसी प्रकार कड़ियां बनती रही एवं कांग्रेस धरातल पर चलता गया……। चलता गया……। चलता गया……।
कांग्रेस ने फिर बदतमीजी शुरू की। क्षेत्रीय दलों पर दबाव बनाया गया। क्षेत्रीय दलों पर दबाव बनाने के उपरांत कांग्रेसियों ने समझा कि कुछ काल के पश्चात इन हिंदी शासित प्रदेशों में शासन की चकाचौंध दिखाकर क्षेत्रीय दलों को अधिग्रहित कर लेंगे परंत स्थितियां ऐसी बदली की इन क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के राजनीतिक क्षत्रपों ने पूरे कांग्रेस को ही अधिगृहीत कर लिया। विडंबना तो ऐसी कि क्षेत्रीय दलों के बीच उपजे क्षेत्रीय दलों के द्वारा मोलभाव की जाती रही है और की जाती रहेगी। परंतु कांग्रेस का उदय दूर-दूर तक नहीं दिखता है। कांग्रेस ने अपने मोलभाव की शक्ति भी खत्म कर दी है। ऐसी स्थिति है कि क्षेत्रीय दलों के बीच क्षेत्रीय दलों की भी राष्ट्रीय दलों के सामने मजबूती दिखती है परंतु कांग्रेस ने अपने कृत्यों से ऐसी छवि बनाई कि उसने अपने मोलभाव की शक्ति के वैभव को भी खत्म कर दिया गया प्रतीत होता है। कांग्रेस के विरोध में उपजे आंदोलन ने कांग्रेस को कहीं का न छोड़ा।उल्लेखनीय बात यह है कि कांग्रेस को पराभाव के गर्त में ले जाने में बिहार के कर्ण और अर्जुन जैसे योद्धाओं के वानप्रस्थ अप्रवासी कुलश्रेष्ठों मे जन्मे राजनेताओं की ही धमक रही। इन कुलश्रेष्ठो में श्रेष्ठ जेपी व अन्य अप्रवासी नेताओं का अमूल्य योगदान रहा है। जेपी सहित कांग्रेस को गर्दिश में पहुंचाने वालों में प्रमुख रूप से योगदान देने वाले नेताओं में जार्ज फर्नांडीस, शरद यादव, बलराज मधोक, मधु लिमए, आचार्य कृपलानी एवं नानाजी देशमुख के कृत्यों को भुलाया नहीं जा सकता है। इतिहास के पन्नों में इन महामानवों के नाम सदा-सदा के लिए दर्ज हो चुके हैं। उल्लेखनीय बात यह है कि समग्र आंदोलन के जेपी भी खुद मूलतः यूपी से ही थे, परंतु उनकी राजनीतिक सोच के आगे दिग्गज भी नतमस्तक रहते थे। उनकी उन्नत धरा सदा बिहार ही रही जिसका स्मृति शेष आज भी पटना के गांधी मैदान चौराहे पर स्थापित उनकी मूर्ति के सौंदर्य से दिखता है। ऐसा लगता है कि ये पत्थर की मूर्ति जोर-जोर से कांग्रेसी शासन काल के एक तंत्रीय शासन की विक्षिप्त व्यवस्था को उखाड़ फेंकने की आवाज दे रही हो कि एक तंत्रीय शासन व्यवस्था की अवधि समाप्त हो चुकी है। चिंगारियां जल चुकी है, रणभेरी बज चुकी है, बिहार के युवाओं को पथ दिखाने के लिए महामानव जेपी का आगाज हो चुका है कि सत्ता खाली करो…. कि जनता आती है की गूंजे आ रही हो। यह आवाज उस मुख से निकल रहा प्रतीत हो रहा है जिन्होंने इस आंदोलन का अलख जलाया था। इस बात से यह भी प्रमाणित हो जाता है कि कांग्रेस के पराभाव में अप्रवासी नेताओं की ही ज्यादा चली। आज कांग्रेस को अपने इतिहास को याद करने के लिए अपने इतिहास के पन्नों को भी सुरक्षित रखने का दमखम नहीं रहा, जो अपने अतीत के स्मृति शेष को भी सुरक्षित रख सके।
कांग्रेस की शक्ति क्षीण हो चुकी है, अब कांग्रेस के शरीर में कोई शक्ति शेष नहीं रही है। इस प्रकार निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि मोल-भाव विहीन कांग्रेस, घोषणा-पत्र रहित कांग्रेस, नेतृत्व विहीन कांग्रेस, अदृश्य कांग्रेस अध्यक्ष वाली कांग्रेस, कार्यकर्ता विहीन कांग्रेस का आने वाला भविष्य काल “शून्य काल” वाला कांग्रेस का रहेगा। अर्थात कांग्रेस का कोई भविष्य नहीं है। अगर हम भविष्य के आईने से देखें तो वर्ष “2024” का काल कांग्रेस का “शून्यकाल” होगा।
लेखक- डॉ0 अशोक, पटना