भारत को चाहिए एक और आम्बेडकर- प्रो0 अनिल कुमार विश्वकर्मा
अतुल्य भारत के अतुलनीय व्यक्तित्व भारत रत्न ज्ञान के प्रतीक एवं बोधिसत्व बाबा साहेब भीमराव आम्बेडकर का जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा। भारतीय सामाजिक ढाँचे में उनका जन्म समाज में सबसे नीची और अस्पृश्य समझी जाने वाली जाति में हुआ था। किसी व्यक्ति का किसी जाति में जन्म पर उसका अपना कोई वश नहीं। उन्होंने अपने परिश्रम, लगन और योग्यता के बल पर मुंबई विश्वविद्यालय एवं तत्पश्चात् अमेरिका के कोलम्बिया विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त कर एक कीर्तिमान स्थापित किया। कई वर्षों तक विदेश में रहकर सम्मान पूर्ण जीवन जीने के बाद जब वह स्वदेश लौटे तो उन्हें लगा अब शायद उन्हें सामाजिक उपेक्षा का शिकार नहीं होना पड़े, किन्तु उन्हें अपने देश में उस समय वह सम्मान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। वर्ण और जाति व्यवस्था के शोषण से वे बहुत दुःखी थे, फिर भी वे पलायनवादी नहीं बने। ये इतने योग्य थे, चाहते तो विदेश में जाकर अच्छी नौकरी प्राप्त कर सकते थे परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। एक सच्चे राष्ट्रभक्त का परिचय देते हुए स्वदेश में रहकर सम्मानपूर्ण जीवन जीने के अधिकारों को प्राप्त करने के लिए संघर्ष का रास्ता अख्तियार किया।
बाबा साहेब का दृष्टिकोण सामाजिक रूप से ‘समतामूलक समाज की स्थापना करना था। वे चाहते थे समाज से छुआछूत और ऊँच-नीच का भेद समाप्त हो सब भाईचारे के साथ मिल जुल कर रहे, समाज में सबको एक दूसरे की जरूरत है। कोई भी कार्य छोटा नहीं सभी को सम्मानपूर्ण जीवन जीने का हक है, उसको वह अधिकार मिलना चाहिए। उन्होंने दलित और शोषित समाज के उत्थान के लिए अनेक आंदोलनों का नेतृत्व किया। समाज को जागरूक करने के लिए कई समाचार पत्रों जैसे मूकनायक, (1920) बहिष्कृत भारत (1927-29) जनता (1930-56) एवं प्रबुद्ध भारत (1956) आदि का समय-समय पर सम्पादन किया। वे महान् शिक्षाविद, दार्शनिक, अर्थशास्त्री, समाज सुधार, शिक्षक, पत्रकार, सम्पादक, विधि वेत्ता और दूरदर्शी नेता थे। सन् 1947 में देश को पूर्ण स्वराज्य प्राप्त होने के बाद जब देश का अपना संविधान बनाने की बात चली तो बाबा साहब की योग्यता और सूझबूझ को देखते हुए तत्कालीन सभी नेताओं ने इस कार्य के लिए एक स्वर से डॉ0 आम्बेडकर के नाम की संस्तुति की। फलतः 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा ने संविधान मसौदा समिति का गठन किया जिसका अध्यक्ष डॉ0 बी0आर0 आम्बेडकर को चुना गया। समिति के अन्य सहयोगी सदस्यों के साथ मिल कर कठिन परिश्रम के साथ 2 वर्ष 11 माह 18 दिन यानि 26 नवंबर 1949 को विश्व का सबसे विशाल एवं लिखित संविधान “भारत का संविधान'” तैयार हुआ। इसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया।
बाबा साहेब संविधान तैयार करने से पूर्व दो अति महत्वपूर्ण पुस्तकों को भी लिख चुके थे जो भारतीय अर्थव्यवस्था और जाति व्यवस्था को समझने में मील का पत्थर साबित हुई। दोनों के नाम क्रमशः प्रॉब्लम ऑफ द रूपी और एनीहिलेशन ऑफ कास्ट (1936) है। इसके अलावा उन्होंने भारत की आधी आबादी यानि महिलाओं के लिए सम्पति का अधिकार (हिंदू कोड बिल के माध्यम से) दिलवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ब्रिटिश शासनकाल में मिल मजदूरों के लिए कार्य की अवधि 18 घंटे होते थे। उसको कम करने के लिए अनेक संघर्ष किया और उसे 08 घंटे का करवा महिलाओं को मातृत्व तथा समान कार्य के लिए समान वेतन की व्यवस्था भी बाबा साहेब की ही देन है जिससे महिलायें आज सम्मानपूर्ण जीवन-यापन करने में समर्थ हुई हैं। इस तरह से देखें तो यह ज्ञात होता है कि बाबा साहेब ने दलितों, पिछड़ों के साथ अन्य वर्गों के कमजोर और असहाय लोगों के उत्थान के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किया जिसका सम्पूर्ण उल्लेख यहाँ कर पाना सम्भव नहीं है। उनके द्वारा मानवता की रक्षा के लिए किये गये कार्यों को विश्व मानव समाज सहज रूप से भुला नहीं सकेगा। ऐसे महान् व्यक्ति सदियों बाद जन्म लेते हैं।
लेखक- प्रो0 अनिल कुमार विश्वकर्मा