डॉ0 भीमराव आम्बेडकर एवं लोकतंत्र सहभागिता
डॉ0 भीमराव आम्बेडकर का जन्म अस्पश्र्य परिवार में होने के कारण कई जगह उन्हें छुआछूत का भेद भाव का सामना करना पड़ा, जिस कारण उनके मस्तिष्क में राजनीति में प्रवेश करने का विचार आया। आम्बेडकर ने मुंबई में एक पाक्षिक समाचारपत्र बहिष्कृत भारत का प्रकाशन किया। 1924 में बाबा साहेब अम्बेडकर बहिष्कृत हितकारणी सभा की स्थापना किए। बाबा साहेब समता सैनिक दल, स्वतंत्र लेबर पार्टी, अनुसूचित जाति फाउंडेशन, भारत की बौद्ध सोसाइटी आदि में भी है। बाबा साहेब माक्स के क्रांतिकारी संबंधी दृष्टिकोण का समर्थन करते हुए संबैधानिक शासन में आस्था व्यक्त किए। आम्बेडकर साहेब ने संसदीय शासन प्रणाली का समर्थन किए। उनहोंने लोकतंत्र में अपनी आस्था व्यक्त की वे संविधान के मैलिक अधिकारों को संविधान की आत्मा बताए। वे भाषा के आधार पर राज्य के गठन का भी विरोध किए। वे विधि का कल्पना किए जिससे लोगों को समान हित मिलें।
उनके अनुसार कानून स्वतंत्रता एवं लोकतंत्र पर कायम रहने पर इसे सामान्य कल्याण के कार्यों में प्रयोग में लाये जा सकते हैं, कानून में विवेक और नैतिकता आवश्यक है। बाबा साहेब ने कहा कि लोकतंत्र शासन का ऐसा रुप है जिसमें बिना किसी का रक्त बहाकर एक क्रांतिकारी, सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त होता है। बाबा साहेब संसदीय शासन प्रणाली के तीन गुण बताए हैं जो ,” 1. इसमें वंशानुगत शासन नहीं होता है, 2. इसमें किसी एक व्यक्ति की सत्ता नहीं होती है एवं 3. निर्वाचन प्रतिनिधियों में जनता का पूर्ण विश्वास होना चाहिए, ” बाबा साहेब संसदीय प्रणाली की असफलता के कुछ कारण बताएं जिसमें 1. इसमें सभी अंग बहुत धीमी गति से कार्य करते हैं, 2 कार्यपालिका के मार्ग में विधायिका एवं न्यायपालिका कभी कभी वाधा उत्पन्न करती हैं, 3. संसदीय प्रणाली में जनता की अधिकारों की बात की जाती है लेकिन उनकी आर्थिक विषमताओं को दूर करने का कोई प्रयास नहीं किया जाता है। उनके अनुसार लोकतंत्र में बहुसंख्यक की अल्पसंख्यक पर वर्चस्व नहीं होना चाहिए।
लेखक- सत्यनारायण
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