जागरूकता का नहीं, एकता का अभाव
विश्वकर्मा वंशीय समाज में जागरूकता का नहीं बल्कि एकता का अभाव है। समाज में तो जागरूकता इतनी है कि उसी वजह से लोगों में एकता नहीं आ रही है। जागरूकता और एकता, दोनों ही शब्द किसी भी समाज के लिये महत्वपूर्ण है। किसी भी समाज के लिये वह जागरूकता बिल्कुल बेमानी हो जाती है जब समाज में एकता न हो। ठीक ऐसी ही जागरूकता विश्वकर्मा वंशजों में आ गई है जो एकता को अनेकता में बंटती जा रही है। एक तरफ देश के अन्दर विश्वकर्मा वंशजों को अलग-थलग करने की बड़ी साजिश तो चल ही रही है, वहीं हमारी तथाकथित अति जागरूकता आग में घी का काम कर रही है।
आये दिन जागरूकता के नाम पर बनते-बिगड़ते संगठन विश्वकर्मा समाज को पूरी तरह कमजोर कर रहे हैं। संगठन बनाना तो आसान परन्तु उसे चला पाना बड़ा ही कठिन होता है। लोग अति उत्साह में संगठन तो बना लेते हैं लेकिन कुछ ही दिन में उनका संगठन धराशायी होने लगता है। लोगों के इस कृत्य से, पहले का बना संगठन भी टूट चुका होता है और बाद में उनका बनाया संगठन भी टूट जाता है। नित नये संगठन के नेताओं से जब भी सवाल होता है तो उनका यही कहना होता है कि ‘वह संगठन के माध्यम से समाज में जागरूकता लायेंगे व सभी को एक करेंगे।’
संगठन तो समाज को जागरूक कर सभी को एकजुट करने के लिये बनाया जाता है लेकिन लोगों को नहीं पता कि नये संगठन के साथ ही एक नये विखण्डन की नींव रख दी जाती है। समाज में जागरूकता की कमी नहीं है। हम विश्वकर्मावंशी हैं, भगवान विश्वकर्मा के वंशज हैं यह बात गांव से लेकर शहर में निवास करने वाले सभी विश्वकर्मावंशी जानते हैं और वह गर्व से भी कहते हैं। अब लोगों में सामाजिक जागरूकता का अभाव नहीं है, अभाव है तो सिर्फ एकता की। एकता कैसे आये इसकी जागरूकता का अभाव जरूर है। अब यहां दोनों बातें हैं कि जागरूकता है भी और नहीं भी है।
यदि मैं यह कहूं कि विश्वकर्मा समाज में जागरूकता का अभाव है तो सवाल उठता है कि बिना जागरूकता के इतने सारे संगठन कैसे बन रहे, हर क्षेत्र में विश्वकर्मावंशियों का नाम कैसे हो रहा है? दूसरी तरफ यदि यह कहूं कि विश्वकर्मावंशी जागरूक हो गये हैं तो सवाल उठता है कि यदि जागरूक हैं तो ‘एकता’ क्यों नहीं? सही मायने में यह जागरूकता और एकता एक सिक्के के दो पहलू हैं। बिना जागरूकता के एकता नहीं हो सकती और बिना एकता के जागरूकता बेकार है।
मैं इस सन्दर्भ में समाजजनों, संगठनों से सही अनुरोध करूंगा कि समाज की जागरूकता को एकता में परिवर्तित करने का सकारात्मक कदम उठायें। देश में विश्वकर्मा समाज को विखण्डित करने की जो साजिश हो रही है उसे नाकाम करें और विश्वकर्मा वंशजों के गौरवशाली इतिहास का अनुसरण करते हुये एकता की मिशाल कायम करें।
—कमलेश प्रताप विश्वकर्मा
विश्वकर्मा समाज में जागरूकता तो है, पर सतही। समाज के तथाकथित नेता सिर्फ अपनी जुगाड़ में लगे रहते हैं और समाज के अन्तिम व्यक्ति तक उनकी पैठ नही है….. समाज को एकता के सूत्र में बाँधने वाला कोई करिश्माई व्यक्तित्व समाज के पास नही है…।