खतरे में ‘भगवान विश्वकर्मा’ का अस्तित्व

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क्या किसी भगवान का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है? यह एक बड़ा सवाल है। परन्तु सच्चाई यह है कि ‘भगवान विश्वकर्मा’ का अस्तित्व खतरे में है। इसे साजिश कहें या अज्ञानता, राजनेता भगवान विश्वकर्मा को कमतर आंकने व बताने का काम कर रहे हैं। देश के प्रधानमन्त्री कहते हैं- ‘भगवान विश्वकर्मा प्लम्बर, मजदूर और छोटे-छोटे कारीगरों के देवता हैं।’ हरियाणा के मुख्यमन्त्री 17 सितम्बर विश्वकर्मा पूजा को श्रम दिवस के रूप में मनाते हैं और साथ ही 1 मई को मनाये जाने वाले मजदूर दिवस को खत्म कर 17 सितम्बर को ही मजदूर दिवस मनाने की बात करते हैं। राजस्थान की मुख्यमन्त्री भी 17 सितम्बर विश्वकर्मा पूजा के दिन श्रमिक दिवस मनाने की बात करती हैं। इतना ही नहीं, देश के कई राज्यों में 17 सितम्बर को श्रम दिवस के ही रूप में मनाया जा रहा है। अब सवाल यह है कि क्या भगवान विश्वकर्मा सिर्फ मजदूरों और श्रमिकों के ही देवता हैं? क्या वह आम जनमानस के लिये पूज्यनीय नहीं? क्या वह सृजन के देवता नहीं? यदि सृजन के देवता हैं तो सिर्फ श्रमिकों और मजदूरों का देवता क्यों?
कुछ लोग कहते हैं कि भगवान का अस्तित्व खतरे में नहीं पड़ सकता। मैं उन लोगों से पूछता हूं कि जब भगवान को पूजने वाले लोग कम हो जायेंगे या पूजना बन्द कर देंगे तो क्या यह भगवान के अस्तित्व को खतरा नहीं है? वर्तमान समय की एक सच्चाई है कि इंसान ही भगवान का अस्तित्व बरकरार रखता है और खत्म करता है। इंसान भले ही उस भगवान की देन है, पर इंसान जिसे चाहे उसे भगवान बना दे। क्या ‘सांई बाबा’ अवतरित भगवान हैं? आज उनके पूजने वालों की लाईन लगी है। लोग अकूत चढ़ावा उनके दरबार में चढ़ा आते हैं। उन्हें भगवान किसने बनाया? इंसान ने। इतना ही नहीं, मानव के रूप में जन्म लेकर अपना अलग सम्प्रदाय स्थापित करने वाले कई सन्त व बाबा क्या किसी भगवान से कम हैं। स्वर्गवासी हो चुके जय गुरूदेव, जेल जा चुके आशाराम, रामपाल, राम रहीम को देखिये। आर्ट आफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर को देखिये। क्या यह लोग किसी भगवान से कम हैं? इन्हें इतनी बड़ी पदवी किसने दिया? सिर्फ इंसान ने।
विश्वकर्मावंशियों, विश्वकर्मा के अनुयाईयों मैं आपसे सवाल करता हूं, क्या आप कभी ऐसी जगह इतनी बड़ी संख्या में एकत्र हो सके जितनी संख्या आशाराम, रामपाल, राम रहीम, रविशंकर आदि के आयोजनों में होती रही है? कदापि नहीं। कहीं न कहीं हमारे में खोट है। हम अपने अवतरित ‘भगवान विश्वकर्मा’ को उस पूज्यनीय देवता के रूप में स्थापित करने से चूक गये हैं। अब भी समय है, ‘भगवान विश्वकर्मा’ को पूज्यनीय देवता के रूप में स्थापित करने के लिये आगे बढ़ो, वर्ना ये साजिशें एक दिन ‘भगवान विश्वकर्मा’ का अस्तित्व समाप्त कर ही देंगे और हम मुंह निहारते रहेंगे।
—कमलेश प्रताप विश्वकर्मा

6 thoughts on “खतरे में ‘भगवान विश्वकर्मा’ का अस्तित्व

  1. Jo bhagwan hain unka astitav kabhi khatre me nahi ho sakta. Kewal insaan hi aisi na kamyab koshish karta rehta hai.. bina kisi ko bura bole, bura kahe aapne karmo me sudhar karen aur jitna jyada se jyada ho sake suprachar karen. Kuprachar apne aap kum padta chla jayega..

  2. Ham sabse pehle aur sabse bade Brahmin hai ye logo ko ehsaas dilana hoga log khud hi vishwakarma ke astitva ko pehchanne lagenge.

  3. बहुत ही अच्छी सोच है और यह बिल्कुल राइट बात है कि हम विश्वकर्मा की कोई वैल्यू नहीं इसका कारण एक ही है कि अपन सब एक नहीं होने के कारण जिस दिन अगर अपने एक होंगे उस दिन सब कुछ हो सकता है

  4. बिल्कुल राइट कहना है भगवान विश्वकर्मा का अस्तित्व खतरे में नहीं है विश्वकर्मा का जो समाज है उस को खतरा हो सकता है लेकिन भगवान को कभी किसी प्रकार करने तो खतरा था मैं होगा लेकिन समाज की भावनाओं को समझेंगे तो उस हिसाब से समाज नई सोच की जरूरत है

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