क्या विश्वकर्मा समाज को टिकट देने के लिये भी भाजपा-सपा में मचेगी होड़?
लखनऊ (कमलेश प्रताप विश्वकर्मा)। उत्तर प्रदेश में पिछले कई महीनों से विश्वकर्मा समाज के लोगों को जिले से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पदाधिकारी बनाये जाने की होड़ भाजपा और समाजवादी पार्टी में लगी है। दोनों ही पार्टियों ने मेन बॉडी से लेकर विभिन्न मोर्चे और प्रकोष्ठों में खूब पदाधिकारी बनाये। अब सवाल यही कि क्या पदाधिकारी बनाये जाने की तर्ज पर यह पार्टियां विश्वकर्मा समाज के लोगों को उनकी मांग के अनुसार चुनाव लड़ने हेतु टिकट भी प्रदान करेंगी? हालांकि पदाधिकारी बनना और चुनाव लड़ना दोनों में काफी अंतर है, फिर भी कई ऐसे दावेदार हैं जो चुनाव लड़ने के योग्य हैं। पिछले विधानसभा चुनाव-2017 में सिर्फ भारतीय जनता पार्टी ने आज़मगढ़ जिले के दीदारगंज क्षेत्र से डॉ0 कृष्णमुरारी विश्वकर्मा को टिकट दिया था, और किसी भी पार्टी ने कहीं से भी किसी को टिकट नहीं दिया।
भाजपा से इस बार डॉ0 कृष्णमुरारी विश्वकर्मा आज़मगढ़, मोनू विश्वकर्मा आजमगढ़, डॉ0 परमेन्द्र जांगड़ा गाज़ियाबाद, रमाकान्त शर्मा कानपुर, जगदीश पांचाल मुज़फ्फरनगर, संजय धीमान सहारनपुर, मधुराज विश्वकर्मा फतेहपुर, रामधनी विश्वकर्मा सिद्धार्थनगर, महेंद्र विश्वकर्मा प्रतापगढ़, श्याम सुंदर विश्वकर्मा एडवोकेट हमीरपुर, राजू पांचाल गाजियाबाद, प्रमोद विश्वकर्मा कानपुर, किरन विश्वकर्मा चंदौली, महेश शर्मा योगी पीलीभीत आदि प्रमुख दावेदारों में हैं।
समाजवादी पार्टी से रामआसरे विश्वकर्मा आज़मगढ़, डॉ0 शशिकान्त शर्मा रायबरेली, आशुतोष विश्वकर्मा बिजनौर, हरेन्द्र विश्वकर्मा ग़ाज़ीपुर, विश्वनाथ विश्वकर्मा गोरखपुर, सौरभ विश्वकर्मा गोरखपुर, अजय विश्वकर्मा जौनपुर, राहुल शर्मा महराजगंज आदि प्रमुख दावेदारों में हैं। बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस में कौन-कौन दावेदार हैं इसकी पुष्टि अभी नहीं हो पाई है।
अब देखना यह है कि क्या भाजपा और सपा 2022 के विधानसभा चुनाव में विश्वकर्मा समाज के लोगों को सदन में भेजने का मौका देती है या फिर सिर्फ पार्टी का पदाधिकारी छाप लॉलीपॉप देकर वोट हथियाने का काम करती है।
इस समाज के किसी आदमी को कोई पारटी कहीं से भी टिकट नहीं देगी इस समाज मे समरथक कम बिरोधी जयदा हैं
विश्वकर्मा समाज का इस्तेमाल बस वोट लेने के लिये किया जाता है। जब सत्ता में हिस्सेदारी की बात आती है तो सभी राजनीतिक दल शुतुर्मुर्ग की तरह व्यवहार करने लगते हैं। विश्वकर्मा समाज का वोट पिछले कई चुनावों में समाजवादी पार्टी को ही मिला है, लेकिन इस पार्टी ने सत्ता में होने के बावजूद समाज के हित में कुछ नहीं किया। बल्कि इनके लोगों ने विश्वकर्मा समाज के लोगों को जब-तब परेशान ही किया है। विश्वकर्मा समाज खुद को किसी राजनीतिक दल का बंधुआ वोटर ना समझे।
जितना नाम आपने गिनाया है उनमें से जो चर्चित है भला उन्हे ही टिकट मिल जाए.टिकट न मिलने के दो कारण है एक सामाजिक एकता आज तक नही बन पायी है जैसे दूसरे बिरादरी मे लोग कर रहे हैं.
दूसरा कारण समाज में पैसे का अभाव क्युकी टिकट हर पार्टी पैसे से देती है समाज मे जिन चुने लोग धनाढ्य है वो भी पैसा लगाने मे कतराते है . डर जायज है क्युकी हम आप उनका साथ नही देगे मुसीबत पड़ने पर. आजादी के बाद से सिर्फ विश्वकर्मा समाज ही ऐसा है जो गुलामी की जंजीरो से बाहर नही निकल पाया है.इर्ष्या द्वेष कूट कूट कर भरा हुआ है.एक दूसरे की टांग खीचने मे माहिर है.