एक गरीब लोहार का बेटा था इटली का तानाशाह मुसोलिनी

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विश्व में कई बड़े तानाशाह हुए, इनमें से कुछ ऐसे भी हुए, जिन्होंने बेहद निचले स्तर से उठकर न केवल अपना साम्राज्य बनाया है, बल्कि पूरी दुनिया में अपने डर का कहर भी बरपाया। दुनिया के इन क्रूर तानाशाहों में इटली के मुसोलिनी का नाम भी आता है। अपनी तानाशाही की वजह से मुसोलिनी ने इटली पर लगभग 20 साल तक राज किया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि वह एक मामूली से लोहार के घर में पैदा हुए था। ऐसे में यह जानना दिलचस्प रहेगा कि कैसे वह एक ऐसा तानाशाह बनकर उभरा, जिसने विश्व इतिहास को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया।


पिता लोहार थे इसलिए—
मुसोलिनी का जन्म 29 जुलाई 1883 को इटली के उत्तर पूर्व क्षेत्र में हुआ था। उसके पिता का नाम अलेसांद्रो मुसोलिनी था, जो पेशे से एक लोहार थे। वहीं उनकी मां का नाम रोसा मुसोलिनी था, जोकि एक अध्यापिका थीं। कहते हैं उसके पिता मेक्सिकन सुधारवादी राष्ट्रपति बेनिटो जुआरेज से बहुत प्रभावित थे, इसी वजह से उन्होंने अपने बेटे का नाम बेनिटो मुसोलिनी रखा था। पिता पर सुधारवादी विचार का प्रभाव होने से वह भी खुद इस विचारधारा से जुड़ गया।
बेटे के झुकाव को देखते हुए पिता ने उसे पढ़ाई के लिए बोर्डिंग स्कूल भेज दिया। घर के आर्थिक हालात ठीक न होने के बाद भी उसने अपनी पढ़ाई पूरी की और अध्यापन में डिप्लोमा हासिल किया। इसके बाद उसने कुछ समय के लिए अध्यापन का कार्य भी किया। हालांकि बाद में उसने टीचिंग छोड़ राजनीति की तरफ अपने कदम बढ़ा लिए।


‘स्वर्णिम भविष्य’ की ओर कदम—
19वीं शताब्दी की शुरूआत से विश्व में कई विचारधाराएं आ गई थीं। एक तरफ, जहां धर्म के साथ राजनीति भी सामने आ रही थी, वहीं मुसोलिनी ने भी अपने स्वर्णिम भविष्य की ओर कदम बढ़ाए। इस दौरान 1902 में मुसोलिनी समाजवादी विचारधारा से जुड़ गया। यह वह दौर था, जब वह स्विटजरलैण्ड में जाकर बस गया था। इस दौरान उसने पत्रकार के रूप में खुद को स्थापित करने की कोशिश की।
हालांकि, उसे इसमें उतनी सफलता नहीं मिली, जिनती वह चाह रहा था। फिर भी ‘अवन्ती’ नाम के समाचार पत्र ने लोगों के बीच अपनी अलग ही पहचान बना ली थी। इस समाचार पत्र ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इटली की विदेश नीति का खुलकर विरोध किया था और इटली के प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होने को लेकर कई गंभीर सवाल भी खड़े किए। आगे अपने खुले विचारों की वजह से ही उसने सबसे पहले समाचार पत्र को छोड़कर देश सेवा की तरफ ध्यान देना शुरू किया। इस दौरान वो सेना में शामिल हो गया, लेकिन लगातार चोटिल होने की वजह से वह ज्यादा दिन तक सेना में नहीं टिक सका।
सेना छोड़ने के बाद क्या?—
1918 के आसपास उसने सेना से किनारा कर लिया। सेना से लौटने के बाद उसने लोगों के बीच जोश भरने के लिए सरकार का विरोध करना शुरू कर दिया। चूंकि, वह राजनीतिक आन्दोलन में पूरी तरह से सक्रिय हो चुका था, इसलिए उसे कई बार जेल जाना पड़ा। लगातार जेल जाने और अपने विचार खुले रूप से रखने की वजह से वो इटालियन सोशलिस्ट के रूप में प्रसिद्ध हो गया, साथ ही एक अलग पहचान के रूप में खुद को स्थापित भी किया। उसने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहना शुरू कर दिया कि देश को एक ऐसी सरकार की जरूरत है, जिसको सिर्फ आदमी ही संचालित करें और ये संचालक ऊर्जा से भरा होना चाहिए।
चूंकि, उसके बयान से काफी लोग प्रभावित हो रहे थे इसी वजह से 1919 में इटली के मिलान शहर में उसने अनेक समाजवादी क्रांतिकारी युद्ध में भाग लेने वाले सैनिकों को अपने साथ किया और इतालवी लड़ाकू दस्ता लीग की स्थापना की। इस पार्टी का मकसद देश में फासीवाद की स्थापना करना था। इस दौरान विचारों के समर्थक काली शर्ट पहनते थे और राष्ट्रवादी और समाजवाद विरोध के आदर्श को अपनाते थे। यही नहीं, वे दस्ते बनाकर साम्यवादियों और यूनियनों की हड़तालों को रोकने का काम भी करते थे।
मुसोलिनी इस पार्टी की वजह से इटली के ग्रामीण इलाके में भी प्रसिद्ध हो गया, इस दौरान लोग उसे एक उम्मीद के रूप में देख रहे थे। उसके भाषण की कला ने उसे एक जननायक बना दिया था। ये उसके भाषण का ही जादू था कि उसके समय इटली में राष्ट्रवाद चरम सीमा पर था।
राष्ट्रीय नेता के रूप में वर्चस्व—
विश्व युद्ध से इटली को काफी ज्यादा नुकसान हुआ था, इस वजह से इटली के हालात काफी ज्यादा ख़राब हो गए थे, जिसका फायदा मुसोलिनी ने उठाया। उसने मिलान शहर से फासीवादी दल की स्थापना की। वहीं देश में कमजोर सरकार होने की वजह से जनता मुसोलिनी को काफी ज्यादा पसंद करने लगी थी।
मुसोलिनी ने देश के ऐसे हालातों का फायदा उठाते हुए लोगों को अच्छे भविष्य के सपने दिखाए। इस दौरान उसने “साम्यवादी संकट दूर करो” का नारा भी दिया। ये उसकी लोकप्रियता का ही असर था कि जिस दल की शुरूआत में सिर्फ 17 हज़ार लोग थे, वहीं दो साल बाद इस दल में शामिल होने वाले लोगों की संख्या 5 लाख के ऊपर पहुंच गई। 1921 में हुए चुनावों में उसकी पार्टी को हैरान कर देने वाली सफलता मिली और राष्ट्रीय गौरव व राष्ट्रीय सम्मान के नाम पर मुसोलिनी को इटली का एक राष्ट्रीय नेता बना दिया गया।


…और बन गया क्रूर तानाशाह—
देश में मुसोलिनी को अभूतपूर्व समर्थन मिल रहा था, इस अपार समर्थन से खुश मुसोलिनी ने 28 अक्टूबर 1922 में अपने साथियों के साथ रोम में प्रवेश किया। इस दौरान फेक्ता की सरकार ने सम्राट विक्टर तृतीय से फासिस्टों के खिलाफ कार्यवाही करने की गुजारिश की लेकिन मुसोलिनी का समर्थन किया। इसके बाद विक्टर तृतीय ने मुसोलिनी को देश का प्रधानमंत्री बना दिया। बाद में उसने 30 अक्टूबर 1921 को अपनी सरकार बनाई और इटली का सर्वेसर्वा बन गया। आगे चलकर 1923 में मुसोलिनी इटली का अधिनायक बन गया। यह पल इटली के इतिहास का सबसे याद किए जाने वाला पल है, क्योंकि उसने इटली और आने वाले समय के लिए पूरे विश्व के इतिहास को बदल दिया था।
हालांकि, यहां तक पहुंचने के लिए मुसोलिनी अक्सर अपने विरोधियों को निशाना बनाता रहा। उसके काम में जिस किसी ने दखलंदाजी देने की कोशिश की, उसने उसे मौत के घाट उतारने में जरा भी देरी नहीं की। सत्ता में बने रहने के लिए वह हमेशा ही नई योजनाएं बनाता रहा। स्पेन के गृह युद्ध में भी उसकी बड़ी भूमिका मानी जाती है। इस युद्ध में इसने फ्रांको की पूरी मदद की थी, जिसके कारण इस युद्ध में लाखों की संख्या में लोग मारे गए थे।
बाद में धीरे-धीरे पूरे देश में मुसोलिनी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन होने लगे और एक दिन यह प्रदर्शनकारियों के हाथों पकड़ा गया। मुसोलिनी की क्रूर तानाशाही के कारण आखिरकार 28 अप्रैल 1945 को इसको मौत दे दी गई। (संकलित)

—सुनील विश्वकर्मा

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