अपने कुल के ऋण से उऋण होने का एक ही मार्ग उसकी प्रगति में सहायक होना- डॉ0 डीआर विश्वकर्मा
शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति जब संसार में आता है तो वह अपने ऊपर कुल तीन ऋण लेकर आता है। पहला देव ऋण, दूसरा ऋषि ऋण और तीसरा पितृ ऋण। पितृ ऋण में ही माता पिता भाई बहन कुल वंश के साथ साथ पूर्वजों के ऋण समाहित होते हैं। देव ऋण सुबह शाम की पूजा आराधना से समाप्त होते हैं, वही ऋषि ऋण अध्ययन, अध्यापन, स्वाध्याय तथा ऋषियों द्वारा प्रस्तुत आदर्शों और उनके द्वारा दिखाये गये मार्गों का अनुसरण करने से क्रमशः समाप्त होते हैं। तीसरे प्रकार का ऋण जो कुल वंश माता पिता भाई बहन पूर्वजों के ऋण लेकर जो हम पैदा होते हैं, उसकी समाप्ति का विधान यह है, कि हम अपने पुरखे, पुरनियों, पूर्वजों की अच्छी नीतिओं रीतियों को जीवन में धारण कर ,उनके द्वारा बताये गये आदर्शों, प्रथाओं, परम्पराओं के अनुसार जीवन यापन करें और अपने कुल के लक्ष्यों आदर्शों, आकांक्षाओं को जीवित रखें; साथ ही अपने कुल के संतों, महात्माओं, ऋषियों, महापुरुषों द्वारा प्रतिपादित अच्छे विचारों को जीवन में आत्मसात् करें और उनके द्वारा निर्देशित सद मार्ग पर चलना जारी रखें। यही अपने कुल के ऋण से निजात पाने का सच्चा मार्ग होता है।
अब बात आती है अपने विश्वकर्मा कुल के ऋण से उऋण होने की तो हम सभी एक मानव के रूप में जन्म लिया है और संयोगबस हम विश्वकर्मा कुल वंश के अनुगामी बने हैं या बनाये गये हैं। अब हम अपने कुल से पृथक तो हो नहीं सकते और न यह समाज हमें मान्यता ही प्रदान करेगा। तो मेरे हृदय प्रिय भाइयों आप तनिक भी हीन भावना से ग्रसित न रहें।विश्वकर्मा कुल पवित्र एवं जाजल्वमान कुल है। हम नेक ईमानदार सृजनशील एवं सृजनात्मकता के सदैव पुजारी रहें हैं। इस समुदाय के लोगों द्वारा कोई विध्वंसात्मक कार्य नहीं किए जाते? हमने सर्जनात्मकता को गले लगाया है। यह कुल सर्व समाज का भला ही किया है। सुख सुविधाओं के तमाम साधन मुहैया कराये हैं। पाषाण काल के बाद हमने खुरपी और हल दिया जिससे कृषि कार्य शुरू हुए और जब कृषि से अन्न की उत्पत्ति हुई तो हम सभी गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर सभ्यता और संस्कृति में चार चाँद लगाए हैं। यही वह विश्वकर्मा संस्कृति है जिसकी बदौलत समाज आज विज्ञान युग में शिखर पर पहुँचने में कामयाब हुआ है।
बात हो रही है अपने कुल के ऋण से उऋण होने की तो मित्रों हमे सर्वप्रथम अपने कुल को संगठित कर अपनी एकता को मज़बूत करना परम आवश्यक है, तभी हम अपने भाई बहनों के दुख तकलीफ़ को दूर करने में सक्षम हो सकेंगे। कहते भी हैं कि “एक होने से हम खड़े होते हैं और बटने से बिखरते हैं, united we stand and divided we fall. तो हमारा सभी विश्वकर्मा वंशियों से अपील है कि आप अपने गाँव क़स्बा तालुक़ा नगर महा नगर में एक ही वृहद संगठन तैयार करे जिसका नामकरण हो सकता है “विश्वकर्मा कर्मयोगी संगठन” यदि कई छोटे छोटे संगठन है तो कृपा करके मतभेदों मनभेदों को समाप्त कर एकीकरण कर एक महासंगठन का रूप देने हेतु ज़िम्मेवार पदाधिकारी आगे आयें तभी हमारे समाज की अहमियत बढ़ेगी और हमारी एकता की आवाज़ दूसरे वर्गों एवम् दिल्ली तथा संबंधित शासन सत्ता तक पहुँचेगी।
दूसरी चीज जो हमे अपने कुल को आगे ले जाने में सहायक होगी वह है शिक्षा संवर्धन कोष की स्थापना करना, जिससे हम अपने कुल के अभावग्रस्त बच्चों की आर्थिक मदद करके उन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने में सबल हो सकें। साथ ही हर ज़िलों के अपने संगठन बच्चों के ठहरने हेतु शिक्षा सेवा आश्रम की स्थापना कर समाज के उन तमाम निर्धन बच्चों के उच्च शिक्षा का प्रबन्ध कर सकते हैं, उन्हें प्रतिस्पर्धीय परीक्षाओं की तैयारी करने हेतु आश्रय स्थल बनवाकर अपने कुल के ऋण से उऋण हुआ जा सकता है। साथियों विद्या का दान सबसे बढ़ा दान माना जाता है। हम यदि कारख़ाना चलाते हैं या किसी फैक्ट्री के मालिक हैं तो अपने कुल के बच्चों को रोज़गार देकर भी उन्हें अपने पैरों पर खड़ा कर सकते हैं। इससे भी आप अपने कुल की सेवा कर सकते हैं और कुल के ऋण से उऋण होने का उपक्रम कर सकते हैं।
आज के परिवेश में देंखें तो पायेंगे कि अविद्या कुसंस्कार और कुसंगति ही सारी समस्याओं की जड़ है, इससे हमें अपने बच्चों को बचाना ही होगा तभी उनकी उन्नति,प्रगति और तरक़्क़ी संभव है। इसके लिए हमे अपनी पीढ़ियों को संस्कारवान बनाना बहुत ज़रूरी है इसके लिये हम सभी को पहल करनी पड़ेगी। यह स्पष्ट है कि “जन्मने सर्वे शुद्रा: संस्कारायते द्विजो भवति” यानि जन्म से सभी शूद्र ही पैदा होते हैं। संस्कार से ही हम द्विजत्व को प्राप्त कर महान व्यक्तित्व के धनी बनते हैं। वॉटसन नाम का मनोवैज्ञानिक कहता था कि Give me a child आई can make him doctor, lawyer and dacoit also. कहने का मतलब आप मुझे एक बच्चा दीजिए कहिए तो मैं उसे डॉक्टर वकील या डकैत बना दूँ, आप सभी समझ गये होंगे। बच्चों को संस्कारवान बनाने हेतु हमे अपने परिवार समाज का माहौल ठीक रखना पड़ेगा। बच्चों की शिक्षा व संगति पर विशेष ध्यान देना पड़ेगा। माँ बहनों का दायित्व यहाँ बहुत ज़्यादा होता है, क्योंकि माँ ही बच्चों की प्रथम पाठशाला होती है। माँ चाहे तो बच्चे को गुणवान बना दें या उसे कुसंस्कारी बना दे। यदि माँ बच्चे की ग़लत हरकतों पर बचपन में ध्यान नहीं देगी तो निश्चित मान लीजिए वह बच्चा आगे चलकर बिगड़ जाएगा।
हम बात बच्चों के संस्कार की कर रहें हैं।
अपने कुल को संस्कारित बनाना है तो मेरे भ्राता श्री और शक्ति स्वरूपा बहनों को घर के माहौल को आध्यात्मिक बनाना पड़ेगा। बच्चों में अच्छे संस्कार डालने हेतु उन्हें बचपन से अपने आराध्य देव परम पुरुष भगवान विश्वकर्मा की पूजा अर्चना का बीजारोपण करना पड़ेगा, जिससे बच्चे आगे चलकर अपने कुल की परम्परा, प्रथा, रीति रिवाज़ को नहीं भूलेंगे और वे भौतिकता के आग़ोश में न पड़ कर अपने संस्कृति और संस्कार का अनुसरण करेंगे। कुछ बहुत पढ़े लिखें कहेंगें कि डॉक्टर साहब क्या धर्म कर्म की बातें कर रहें हैं। मित्रों एक बात याद रखिए संस्कार घर से ही पैदा होतें हैं। संस्कारित कोई एक दिन में नहीं होता। अच्छी बातें, अच्छी आदतें बच्चों को बचपन से ही डालनी पड़ेंगी। इसके लिए हम सभी को अपने आस पास के विश्वकर्मा मंदिरों में सप्ताह के रविवार के दिन या माह के अमावस्या को सामूहिक रूप से बच्चों के साथ अपनी धर्मपत्नियों के साथ अपने कुल देवता भगवान विश्वकर्मा के माहात्म्य को समझाना पड़ेगा कि उन्होंने ही सृष्टि का सृजन किया हैं। दुनिया भर में जो भी सुख सुविधा के साधन हैं उसे उन्होंने ने ही सृजन किया हैं। दुनिया में जितने शोध और निर्माण हैं वे सभी उन्हीं की प्रेरणा से सम्पादित किये जाते हैं। सृजन की प्रेरणा भगवान विश्वकर्मा की ही देन है।
अब बात हमारे समाज की एकता की आती है तो आप सभी ने महसूस किया होगा कि, राजनीति में हम तभी सफल होंगें जब हमारा एक सर्वमान्य नेता होगा और एक वृहद संगठन हो। हम जिस गाँव शहर के निवासी हों अच्छे नेतृत्व कर्ता को आगे बढ़ायें।कई लोग जब नेता होंगें तो कहते हैं कि ”बहुते जोगी मठ उजाड़” की ही कहावत चरितार्थ होती है। बात चली थी अपने कुल के ऋण से उऋण होने की तो हम सभी को विश्वकर्मा संस्कृति उन्नयन अभियान को हर गाँव हर शहर हर नगर में पहुँचाने की महती आवश्यकता है और हम सभी विश्वकर्मा वंशियों को अथक प्रयास करने होंगे। तभी हमारे कुल में एक वास्तविक संगठित शक्ति का उदय होगा और यह मार्ग सर्व सुलभ है। केवल और केवल हम सभी को अपने अपने घर के आस पास के विश्वकर्मा मंदिरों पर साप्ताहिक रविवार को या मासिक रूप से अमावस्या के दिन जो भी उचित लगे, अपने बाल गोपाल नात रिश्तेदारों, जीवन संगिनियों के साथ उपस्थित होकर उस विराट प्रभु विश्वकर्मा (जिन्हें कुछ लोगो की घृणित मानसिकता के कारण हाशिये पर ला दिया गया है।) की सामूहिक आराधना, प्रार्थना, वंदन पूजन, अर्चन का कार्य पूर्ण मनोयोग से प्रारम्भ करना होगा तभी हम अपने कुल के ऋण से उऋण हो सकेंगे।मित्रों विश्वकर्मा संस्कृति उन्नयन अभियान की शुरुआत वाराणसी में शुरू हो चुकी है और अब तक 14 मंदिरों पर इस अभियान का कार्यक्रम अपने कुल के श्री राजेश्वराचार्य जी के सानिध्य में समाज के प्रबुद्ध वर्ग के उदार सहयोग से सम्पन्न हो चुका है।