राजकीय औद्योगिक क्षेत्र माधोपुर में हो रहा है जैविक खाद का उत्पादन

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बलिया। जिले के माधोपुर, रसड़ा स्थित राजकीय औद्योगिक क्षेत्र में श्री मनु जैविक खाद (वर्मी कंपोस्ट) जैविक खाद का उत्पादन हो रहा है। यह खाद स्थानीय किसानों सहित सुदूरवर्ती किसानों के लिये भी लाभदायी साबित होगा। औद्योगिक क्षेत्र के प्लाट नंबर C3 में बृजेश शर्मा द्वारा इस इकाई की स्थापना की गई है। इकाई के मालिक बृजेश शर्मा ने बताया कि उन्हें जैविक खाद के निर्माण की प्रेरणा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान से मिली। भारत सरकार द्वारा जैविक खेती को काफी प्रोत्साहन मिल रहा है। जैविक खेती के माध्यम से हम सभी रासायनिक खाद्य पदार्थों से बच सकते हैं तथा इसके दुष्परिणामों एवं होने वाली गंभीर बीमारियों से भी बचाव किया जा सकता है। देश में इसके प्रति काफी जागरूकता पैदा हुई है। लोगों का रासायनिक खेती के तरफ रुझान बढ़ा है, तथा जैविक खाद (वर्मी कंपोस्ट) का निरंतर उत्पादन बढ़ रहा है। आने वाले समय में जैविक खेती ही रह जाएगी एवं किसान रासायनिक खेती को बाय-बाय टाटा करेगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत कृषि प्रधान देश है। रासायनिक खाद के प्रयोग से खेतों की उर्वरा शक्ति समाप्त हो रही है, तथा कीटनाशकों के प्रयोग से हमारे खाद्य पदार्थ विषाक्त हो जाते हैं। किसानों की जैसे-जैसे जैविक खेती पर निर्भरता बढ़ेगी, इसका प्रयोग बढ़ेगा वैसे-वैसे खेत की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी। अनेकों प्रकार के जीवाणुओं को भी जैविक खेती के प्रयोग से नष्ट किया जा सकेगा। जैविक खाद खेत की उत्पादन क्षमता बढ़ाने में भी सक्षम है। जैविक खाद से उत्पन्न साग, सब्जियां और फल आदि को भोजन में शामिल करने से स्वास्थ्य को भी ठीक किया जा सकता है, क्योंकि इससे उत्पन्न खाद्य पदार्थों में पोषक तत्व प्राकृतिक रूप में संपूर्णता के साथ पाए जाते हैं।

आज हर व्यक्ति शुद्ध हवा पानी भोजन पाना चाहता है, जिससे उसका शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य सदैव बरकरार रहे तथा अनेक प्रकार की बीमारियों से निजात मिले सके। इसीलिए आजकल रेस्त्रां में अलग से जैविक खाद के काउंटर का प्रचलन देखने को मिल रहा है, जिसका ग्राहकों से अधिक शुल्क भी लिया जा रहा है। रासायनिक खाद्य पदार्थों के दुष्परिणाम स्वरूप चर्म रोग, यकृत रोग, तथा गुर्दे के रोग से संबंधित बीमारियां बढ़ रही हैं। रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों का भूमि में प्रयोग का दुष्प्रभाव हमारे पानी, भूमि एवं पर्यावरण पर दिखाई देने लगा है। जैविक खेती में कम लागत, कम पानी की आवश्यकता होती है, तथा अच्छी गुणवत्ता की पैदावार भी प्राप्त की जा सकती है।

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