लचर व्यवस्था की शिकार हो गई ज्योति, उन्नति और मोहिनी विश्वकर्मा

घटनाएं तो बहुत हो रही हैं, इन घटनाओं में कुछ झकझोर देने वाली भी घटनाएं शामिल हैं। बीते साढ़े चार साल के अन्दर विश्वकर्मा समाज ने संघर्षरत तीन बेटियों को खो दिया। इन तीनों की मौत का कारण सरकारी मशीनरी रही है। यदि व्यवस्था लचर न होती तो यह बेटियां अपनों के बीच हंसी-खुशी जीवन व्यतीत कर रही होती। प्रतापगढ़ जिले की ज्योति विश्वकर्मा, लखनऊ जिले की उन्नति विश्वकर्मा और अब उन्नाव जिले की मोहिनी मानव रूपी दानवों की शिकार हो गई। ज्योति अपनी जमीन बचाने में जान गंवा दी तो उन्नति और मोहिनी दरिन्दगी की भेंट चढ़ गई।
प्रतापगढ़ जिले के थाना जेठवारा अन्तर्गत श्रीपुर गांव निवासी ज्योति विश्वकर्मा अपने परिवार में पढ़ी-लिखी लड़की थी। पड़ोसी से जमीनी विवाद के चलते खुद पैरवी करने कचहरी और तहसील जाती थी। यह बात विरोधियों को नागवार गुजर रही थी। एक दिन मौका पाकर घर के पिछले हिस्से में ही विरोधियों ने उसके ऊपर मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दिया। तीन दिन अस्पताल में जीवन-मृत्यु के बीच संघर्ष करती रही और अन्ततः मौत से हार गई। साल 2015 की यह एक ऐसी घटना थी जिसने पूरे देश के विश्वकर्मा वंशियों के दिल में आग लगा दिया था। लोगों ने आन्दोलन की राह पकड़ श्रीपुर से लेकर दिल्ली तक एक कर दिया। तत्कालीन अखिलेश यादव की सपा सरकार में हुई इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिये थे। विश्वकर्मा समाज के लोगों ने ज्योति को न्याय दिलाने के लिये न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि देश के कई हिस्सों में धरना-प्रदर्शन किया। नतीजा रहा कि सपा नेता व तत्कालीन राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रामआसरे विश्वकर्मा के प्रयास से सरकार ने पांच लाख रूपये की सहायता ज्योति के परिजनों को प्रदान किया। एक शर्मनाक दौर वह भी आया जब सरकार द्वारा दिया गया चेक बाउंस हो गया। समाज के लोगों को फिर से आन्दोलन करना पड़ा तब जाकर सहायता राशि ज्योति के परिजनों के खाते में स्थानान्तरित हो सकी। चूंकि ज्योति का कलमबंद बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज हो चुका था जिसके आधार पर न्यायालय ने सभी आरोपियों को सजा सुना दी। यह एक ऐसी घटना थी जिसके लिये देश का विश्वकर्मा समाज आन्दोलित हुआ। लोगों ने ज्योति के गांव श्रीपुर तक जाकर परिजनों को ढांढस बंधाया। लगा था कि ज्योति ने जलकर विश्वकर्मा समाज के बीच एकता और संघर्ष की ज्योति जला दी है, अब और ज्योति नहीं जलाई जायेगी। परन्तु हैवानियत के परिन्दे जब तक जीवित रहेंगे तब तक एक नहीं, लाखों ज्योति को जिन्दा जलाया जाता रहेगा।
ज्योति को जिन्दा जलाये जाने की घटना के कुछ ही महीने के अंतराल में लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के नजदीक एक ऐसी घटना घटी जिसने लोगों के रोंगटे खड़े कर दिये। एक मासूम लड़की उन्नति विश्वकर्मा जो अपने स्कूल पढ़ने जा रही थी का अपहरण कर लिया गया, उसे कब और कहां रखा गया यह नहीं पता, लेकिन उसकी अर्धनग्न लाश मुख्यमंत्री आवास के नजदीक झाड़ियों में पाई गई। उसके साथ जो दरिन्दगी हुई शायद आपको कभी सुनने को नहीं मिली होगी। फोरेंसिक जांच और डीएनए टेस्ट में जो तथ्य सामने आये वह चौंकाने वाले थे। उन्नति के साथ 21 लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था। इतना ही नहीं उसके मरने के बाद शव के साथ भी अगले 24 घंटे तक बलात्कार होता रहा। सामूहिक बलात्कार की इतनी भयावह तस्वीर कभी सामने नहीं आई। लेकिन दुख इस बात का है कि तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने इस प्रकरण को ऐसा लपेटकर पन्नों में दफन कर दिया कि शायद उसे कभी न्याय नहीं मिल सकेगा। पुलिस ने कुछ रिक्शे वालों को और गोल्फ क्लब के कैडी को जेल भेज कर अपनी खानापूर्ति कर दी। यदि इस मामले की जांच गहराई से हुई होती तो शायद कई बड़े नेता या उनके गुर्गे इस मामले में फंस सकते थे, लेकिन पुलिस ने सभी को बचाने का काम किया। उन्नति के शव के पास मिले सामान खुद बयां कर रहे थे कि यह वारदात किसी आम व्यक्ति के बस की बात नहीं है। लेकिन हमारी पुलिसिया और प्रशासनिक व्यवस्था ने लालच में या सरकार के दबाव में आकर उन्नति के केस में कोई उन्नती न हो इसलिए उसे कागज के पन्नों में दफन कर दिया। उन्नति को भी न्याय दिलाने के लिए विश्वकर्मा समाज के लोगों ने बहुत संघर्ष किया, आन्दोलन किया, लेकिन सरकारी मशीनरी के आगे सब फेल हो गया।
दिन, महीने, साल बीतते गये और अंततः फिर दिल को झकझोर देने वाली एक घटना सामने आ गई। उन्नाव जिले के बिहार थाना क्षेत्र में एक लड़की मोहिनी विश्वकर्मा दरिन्दों की दरिन्दगी की शिकार हो गई। प्यार के जाल में फंसी मोहिनी के साथ गैंगरेप हुआ तो उसने थाने में शिकायत की। उसकी शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज हुई और आरोपी जेल भेजा गया। लेकिन लचर व्यवस्था ने चाहे वह पुलिस की कमजोरी रही हो या फिर जमानत देने वाले न्यायालय की नासमझी रही हो आखिर में उस दरिन्दे को जमानत मिल गई और रिहा होते ही उसने मोहिनी के ऊपर पेट्रोल डालकर उसे आग के हवाले कर दिया। करीब 38 घण्टे जीवन-मृत्यु से जूझती मोहिनी इस दुनिया को अलविदा कह गई। अब सवाल इस बात का कि क्या उसे न्याय मिल पायेगा? हालांकि मोहिनी को जलाये जाने के बाद सरकार और पुलिस प्रशासन ने काफी तत्परता दिखाई। उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ ने सरकारी खर्चे पर मोहिनी का इलाज लखनऊ से दिल्ली तक कराने की व्यवस्था की। यहां तक कि एयर एम्बुलेंस द्वारा उसे लखनऊ से दिल्ली ले जाया गया। इधर मुख्यमन्त्री के कड़े निर्देश पर पुलिस प्रशासन ने पांचों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। आशंका इस बात की है कि मोहिनी तो रही नहीं, कहीं पहले की तरह इन आरोपियों को फिर से न्यायालय जमानत दे दे और यह आरोपी मुकदमें को रफा-दफा करने के लिए मोहिनी के परिजनों को धमकी दें या उनके साथ भी कुछ ऐसा करें जैसा कि मोहिनी के साथ किया है।
“मेरा मत तो है कि ऐसे लोगों को न्यायालय फांसी देने की बजाय इनके दोनों हाथ और दोनों पैर काटने का आदेश दे। फांसी तो ऐसी व्यवस्था है की सेकंड मात्र में व्यक्ति मौत को गले लगा लेगा। उसे दुर्दिन नहीं देखने पड़ेंगे। जितने दिन वह जेल में रहेगा उसे भोजन तो मिलता ही रहेगा। यदि ऐसे मानसिक विकृति के लोगों को सजा देना है तो उसके दोनों हाथ और दोनों पैर काटने का आदेश देना चाहिये। जिससे वह जब तक जिन्दा रहे तब तक घुट-घुट कर मरे और प्रायश्चित भी करे। ऐसा करने से शायद ऐसी मानसिक विकृति वालों को विकृति मानसिकता से बाहर निकलने का रास्ता दिख सके।”
-कमलेश प्रताप विश्वकर्मा
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