आजादी का जश्न और अटल बिहारी वाजपेयी

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आजादी के जश्न में डूबे देशवासी एक दूसरे को 72वीं वर्षगांठ की शुभकामनाएं दे रहे थे कि इसी बीच लोगों को विचलित करने वाली खबर समाचार चैनलों पर चलने लगी। देशवासियों की निगाह उस खबर पर पड़ी तो संभावित दु:खद समाचार के आंसू छलक पड़े। किसी तरह रात बीती तो फिर शुरू हुई दु:खद आशंका की चर्चा। जैसे-जैसे दिन ढलता रहा वैसे-वैसे लोगों की विह्वलता बढ़ती रही। अन्तत: 16 अगस्त की शाम 5 बजकर 5 मिनट पर यह आशंका सत्य में परिवर्तित हो गई। जानकारी मिलते ही देशवासियों की आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। लोग स्तब्ध हो गये, क्योंकि उनका एक प्रिय नेता, युग पुरूष उनके बीच नहीं रहा।
सोशल मीडिया में अक्सर कुछ गलत या सही बातें वायरल हुआ करती हैं। इस महापुरूष के देहावसान के बाद एक छोटी सी कविता वायरल हुई, जो बिल्कुल सटीक साबित हुई-
     मौत खड़ी थी सर पर 
     इसी इंतजार में थी 
     ना झुकेगा ध्वज मेरा 
     15 अगस्त के मौके पर
     तू ठहर, इंतजार कर 
     लहराने दे बुलंद इसे 
     मैं एक दिन और लड़ूंगा 
     मौत तेरे से 
     मंजूर नहीं है कभी मुझे 
     झुके तिरंगा स्वतन्त्रता के मौके पर।-अटल बिहारी वाजपेयी
उपरोक्त कविता इस महापुरूष के देहावसान के बाद इसलिये भी सटीक समझ आती है कि पूर्व में जब भी उन्हें एम्स में स्वास्थ्य परीक्षण के लिये लाया गया, चाहे उनका स्वास्थ्य गम्भीर न रहा हो फिर भी सोशल मीडिया में उनके निधन की खबरें वायरल होती रही हैं। 15 अगस्त के मौके पर उनकी हालत बिल्कुल नाजुक थी। इस नाजुकता की वजह से भी कुछ लोगों ने निधन की खबर वायरल कर दी। परन्तु अटल जी इस पर अटल थे कि आजादी के जश्न पर वह तिरंगे को झुकने नहीं देंगे, वह मौत से एक दिन और लड़ेंगे। वह लड़े भी परन्तु 16 अगस्त को शाम 5 बजकर 5 मिनट पर अपनी हार ठीक उसी तरह स्वीकार करते हुये, जब संसद में बहुमत की उम्मीद न रही तो कहा था ‘मैं राष्ट्रपति जी को अपना इस्तीफा देने जा रहा हूं’, वह मौत के साथ जाने को तैयार हो गये। उनकी सादगी, शालीनता, राष्ट्रीयता, कविता और भी बहुत कुछ सिर्फ याद बनकर रह गई।
अटल जी के निधन की खबर पर ‘विश्वकर्मा किरण परिवार’ की तरफ से कवि पुरूष को छोटी सी कविता के माध्यम से श्रद्धांजलि-
     फूट पड़ी है अश्रुधारा
     मन अशांत हो गया
     आज पहली बार लगा
     देश का कुछ खो गया।
     कवि पुरूष का कवि मन
     बनकर घटा छाई रही
     बरसती रही बनकर बूंदे
     आवाज परछाई रही।
     छंट गई घटा सुनकर
     हृदय विह्वल हो गया
     आज पहली बार लगा
     देश का कुछ खो गया। (16-08-2018)
—कमलेश प्रताप विश्वकर्मा

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