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देश में बेरोजगारी और शिक्षा की हालत किसी से छिपी नहीं है। उसमें भी लोगों के धन का अपव्यय बचाकर हमारी व्यवस्था लोगों को कुछ राहत अवश्य दे सकती है। सरकारों की स्पष्टवादिवता व एक सुचारू व्यवस्था भी लोगों की चिंता की रेखाओं को कम कर सकती है।
लोगों की आशाओं की किरण उनका अजीज नौनिहाल अपने जीवन काल के कम से कम 21 वर्ष शिक्षा जगत को देकर यह प्रमाणपत्र प्राप्त करता है कि वह अमुक योग्यता धारण करता है। यथा वह मैट्रिक, +2 या ग्रेजुएट हो जाता है। उसके बाद भी अन्य टेक्निकल कोर्स करने में बच्चे शिक्षा-जगत को समय देते हैं। साथ में उनके परिजन भी उस दरम्यान बच्चे के लिए त्याग तपस्या में कोई कमी नहीं रखते। इन सब स्थितियों से गुजरने के बाद भी सरकार अपने किसी भी पद पर उसकी नियुक्ति करते समय, उसकी योग्यता का परीक्षण करती है। या यूं कहें कि ज्यादा बच्चों में से जरूरत भर कैसे लिए जाएं, इसलिए उनकी छंटनी करती है। सरकार व उसके विभाग इसे जायज ठहरा सकते हैं। किंतु उस पिता या बच्चे से पूछा जाए जो कि हर वर्ष कम से कम 10 से 15 प्रतियोगी परीक्षाओं के फॉर्म डालता है और पूरे साल तैयारी तथा परीक्षा देने के लिए एक शहर से दूसरे शहर की भागदौड़ करता है। तो स्थिति भयावह प्रतीत होगी। जबकि संस्थाएं प्रत्येक फॉर्म भरने के लिए लगभग 500 रूपये आवेदन शुल्क के रूप में वसूलती हैं। इस प्रकार युवाओं की ऊर्जा व अभिभावकों के धन का क्षरण होता है।
शिक्षा जगत भी स्वयं को इस व्यवस्था से आहत व ठगा सा महसूस करता है। क्योंकि वह शिक्षित करके समाज को एक व्यक्ति देता है। जबकि वह व्यक्ति असहाय मजबूर सा भटकने को बाध्य होता है। ऐसे में आज बहुमूल्य समय के बचत के लिए आवश्यकता है कि पूरे देश की एक स्तरीय यथा मैट्रिक या ग्रेजुएट परीक्षा कराकर अन्य लोगों को स्पष्ट किया जाय कि आप इस ओर समय व धन को जाया न करो। ऐसे लोगों में से ही उनकी रैंक के अनुसार, अन्य दक्षता की जांच की जानी चाहिए। किसी भी व्यक्ति को ऐसे राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा में बैठने के लिए निश्चित आयु की सीमा के साथ ही भाग लेने की संख्या निश्चित कर देनी चाहिए। इस तरह से कोई भी छात्र मिले हुए अधिकतम मौके तक ही सरकारी नौकरी के लिए उम्मीदें पाल रखेगा। उसके बाद कम से कम पैतृक, व्यवसायिक या अन्य क्षेत्र की ओर समय से रुख कर लेगा।
परीक्षाओं की संख्या कम कर सरकार अपने देश की युवा शक्ति, तथा देश की लोगों की आशाओं व अपेक्षाओं पर खरी उतर सकती है। उनके धन की बचत कर सकती है। उस धन से लोग अपने बच्चों के भविष्य के लिए अन्य क्षेत्रों में से उसकी पसन्द का बेहतर विकल्प तलाश सकते हैं। आशा करता हूं मानव संसाधन विकास मंत्रालय, प्रधानमंत्री कार्यालय युवा ऊर्जा के क्षरण को बचाने के लिए गंभीर होंगे। यह देश 21 वीं सदी की मांग के अनुसार स्वयं को ढालकर विश्व जगत के लिए नजीर बन सकता है। क्योंकि किसी भी ऊर्जा का सही समय पर दोहन व सदुपयोग सकारात्मक प्रभाव डालता है।

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