रेड ब्रिगेड की ऊषा विश्वकर्मा ने बेटियों के लिये कही बड़ी बात
छिन्दवाड़ा। आज हम अपनी बेटियों को पढ़ाकर उन्हें सशक्त करने की बात करते हैं, लेकिन कहीं न कहीं कुछ तो कमी है। बेटियां पढ़ी होने के बावजूद भी निर्णय लेने में सक्षम नहीं हैं। उन्हें अब भी कई अधिकार से दूर रखा गया है। ताकत को प्रकट करने के लिए जगह नहीं दी जाती, आखिर क्यों? यह बातें छिन्दवाड़ा के डेनियलसन कॉलेज में समाजसेवी संगठनों के अगुवाई में परिचर्चा, अनुभवों का आदान प्रदान एवं आत्मरक्षा और आत्मविश्वास सम्बंधी तकनीकी आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रम में रेड ब्रिगेड लखनऊ की संसथापक ऊषा विश्वकर्मा ने कही। उन्होंने कहा कि एक महिला के साथ जब दुष्कर्म होता है तो समझो पूरे देश के साथ ज्यादती होती है। ऐसे में जरूरी है कि सभी इतिहास जानें।
ऊषा एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने यौन हिंसा जैसी घिनौनी हरकत करने वालों के खिलाफ आवाज उठाकर न केवल अपनी जिंदगी को संवारा बल्कि आज वे रेड बिग्रेड नाम की संस्था चलाकर दूसरों को सिर उठाकर जीना सिखा रही हैं। ऊषा अपनी 20 सदस्यीय टीम के साथ प्रेरणा यात्रा-सरोजनी नायडू के तहत छिन्दवाड़ा आई थी। उन्होंने कार्यशाला में सर्वप्रथम 100 दिन 100 स्कूल के बारे में प्रजेंटेशन से जानकारी दी। उपस्थित महिलाओं के विचार सुने और अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि ‘गर्व से कहो की हम स्त्री हैं’ यह विचार ही हमें सशक्त करेगा, इसके लिए हमें अपना इतिहास जानना जरूरी है। ऊषा ने महिलाओं को खुद के बचाव के लिए आत्मरक्षा सम्बंधी प्रशिक्षण भी दिया। यात्रा में शामिल आलोक ने बताया कि यह यात्रा 13 फवरी को सरोजनी नायडू के जन्म स्थान हैदराबाद से प्रारम्भ होकर लगभग 2000 किलोमीटर का सफर कर 17 दिनों में पूरी की जायेगी। चार राज्यों के 50 शहरों से होते हुए यात्रा का समापन 2 मार्च को राज्यपाल भवन लखनऊ में होगा, जहां पर सरोजनी नायडू ने अंतिम सांस ली थी। कार्यक्रम के दौरान प्राचार्य शॉलेम अल्बर्ट, महेंद्र खरे, समाजसेवी विनोद तिवारी, राकेश शर्मा, रविन्द्र नाफड़े सहित, एनजीओ के सदस्य, विद्यार्थी मौजूद रहे। बता दें कि ऊषा विश्वकर्मा की बहादुरी व निडरता का वॉलीबुड शहंशाह अमिताभ बच्चन भी कायल हैं। उन्होंने कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम में ऊषा विश्वकर्मा को सम्मानित भी किया था।
13 फरवरी को को मनाएंगे जन्मदिवस—
ऊषा ने ‘प्रेरणा यात्रा-सरोजनी नायडू’ शुरू करने के पीछे के उद्देश्य बताए। कहा कि स्त्री को अपना इतिहास नहीं पता। लोगों को यह नहीं मालूम की सरोजनी नायडू कौन हैं। निडर और निर्भिक होकर देश और समाज के लिए सरोजनी नायडू आगे आईं। सरकार द्वारा 12 फरवरी को सरोजनी नायडू के जन्मदिवस को राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का निर्णय लिया गया था, लेकिन आज सरकार ही इसे भूल चुकी है। जबकि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आठ मार्च को सभी को याद है। यह अच्छी बात है, लेकिन राष्ट्रीय महिला दिवस पर कम ध्यान क्यों। ऊषा ने कहा कि हमारी यात्रा का उद्देश्य है कि राष्ट्रीय महिला दिवस हर जिले में मनाया जाए। ऊषा ने कहा कि महिलाएं समझौता कर जीवन यापन कर रहीं हैं। इसके बावजूद भी उन्हें बीच सडक़ पर अपमानित कर दिया जाता है। ऊषा टीवी एवं सोशल साइट्स के विज्ञापनों को लेकर नाखुश नजर आई। उन्होंने कहा एक तरफ आप महिला को बहादुर बताते हो वहीं दूसरी तरफ महिला को मटेरियल के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। ऊषा ने बताया कि वर्ष 2006 में उन्होंने यह ठान लिया कि जब तक महिला सुरक्षित नहीं तब तक शिक्षा का मतलब नहीं। ऊषा की टीम को अब तक पांच देशों से प्रशिक्षक आत्मरक्षा की ट्रेनिंग दे चुके हैं। ऊषा ने अब तक देश में 70 हजार से अधिक लड़कियों को ट्रेनिंग दी है।
हम महिलाएं साथ में चलना चाहती हैं—
ऊषा ने कहा कि महिलाएं ताकतवर थीं, हैं और रहेंगी। जीवन स्त्री और पुरुष दोनों से चलता है। हम महिलाएं साथ में चलना चाहती हैं। आगे और पीछे नहीं। यह बात सभी को समझनी होगी। उन्होंने कहा कि हमारे देश के इतिहास में ही ताकत छुपी है। बेटियों को आत्मविश्वास लाने के लिए महापुरुषों को पूरी तरह जानना जरूरी है।
बहुत ही अच्छा विचार है | एेसे कार्यक्रम भी आयोजित हों जिससे
समाज का भी विकास हो सके |
समाज की नारी सशक्त हो तो पूरे समाज का विकास सम्भव