स्काटलैण्ड के लोहार किलपेट्रिक मैकमिलन ने 1630 में किया था साइकिल का आविष्कार
इक्कीसवीं सदी के मान्य वाहन के रूप में उभर रही इस साइकिल का इतिहास भी बड़ा रोचक है। साइकिल का आविष्कार स्काटलैण्ड के लोहार किलपेट्रिक मैकमिलन ने सन् 1630 में किया था। 1890 में साइकिल का पहिया हिन्दुस्तान की धरती पर घूमा। उस समय भारी-भरकम साइकिल की कीमत 85 रुपए थी। प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान इसकी कीमत में भारी वृद्धि हुई और यह पांच सौ रुपए में बिकने लगी, पर युद्ध के बाद यह घटकर 34 रुपए हो गई। इसका कारण था भारत में इंग्लैण्ड से निर्मित साइकिलों का आयात होना। जापान से आयातित साइकिलों का मूल्य उस समय सिर्फ चौदह रुपए था। भारत में साइकिल बनाने का पहला कारखाना 1936 में मुम्बई में स्थापित हुआ।
साइकिल-रिक्शे का आविष्कार अमेरिका के एक पादरी जोनाथन ग्लोबल ने उन्नीसवीं सदी के मध्य में किया और इसे नाम दिया ‘जिन राकीशा’ यानी मनुष्य की शक्ति से चलने वाला वाहन। रिक्शा उसी का परिवर्तित नाम है। परिवहन हेतु रिक्शा का प्रचलन 1930 में भारतवर्ष में हुआ और यह जल्दी ही लोकप्रिय हो गया। आज देश में रिक्शा चालकों की संख्या पचास लाख से ऊपर है। गांवों और कस्बों में तो यह सार्वजनिक परिवहन और माल ढुलाई का प्रमुख साधन है। चेन्नई, कोलकाता और दिल्ली जैसे महानगरों में भी इसका अस्तित्व अभी कायम है।
विश्व में साइकिल रिक्शे का प्रयोग बंग्लादेश की राजधानी ढाका में सर्वाधिक होता है। इसकी नई तकनीक विकसित करने के लिए प्रयास जारी हैं। सबसे अधिक साइकिलें बनाने का विश्व रिकॉर्ड भी एक भारतीय कम्पनी के नाम है। 1996 में साइकिल का सालाना उत्पादन मोटर वाहनों के बीस लाख की तुलना में पांच गुना अधिक था। अब भी इनकी संख्या पांच करोड़ से ऊपर आंकी गई है। इसमें से चौहत्तर प्रतिशत साइकिलें ग्रामीण क्षेत्रों में प्रयुक्त की जाती हैं। बीस प्रतिशत साइकिलें शौक और मनोरंजन के लिए बनाई जाती हैं। भारत में दो प्रकार की साइकिलों का उत्पादन होता है। एक तो मजबूत फ्रेम वाली पारंपरिक साइकिलें और दूसरी फैंसी और सुंदर साइकिलें। पहले प्रकार की साइकिलों का उपयोग वाहन और दूसरे तरह की साइकिलों का उपयोग मनोरंजन और खेल के लिए किया जाता है। फैंसी साइकिलों का चलन 1970 के दशक से प्रारम्भ हुआ। आज यह बच्चों और नवयुवकों के बीच जबर्दस्त लोकप्रिय है। (संकलित)
—सुनील शर्मा