महज 6 हजार रूपये के लिये 20 साल बंधुआ मजदूर बना रहा रामजी विश्वकर्मा
जालौन। जिले की एक घटना ने एक बार फिर गुलाम भारत के अतीत को याद करने पर मजबूर कर दिया है। जिन्होंने गुलामी के सिर्फ किस्से सुने हैं उन्हें यह घटना गुलामी के बानगी का अहसास करा सकती है। हमारे प्रधानमन्त्री ‘न्यू इण्डिया’ का नारा बड़े जोर से भले ही लगाते हैं परन्तु यह घटना गुलाम भारत का ही अहसास कराती है। द लल्लनटाप डॉट काम नामक एक न्यूज पोर्टल ने जिस तरीके से मामले का खुलासा किया है, सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो जा रहे हैं। कभी देश अंग्रेजों का गुलाम था और आज देश का गरीब, अमीरों का गुलाम बनने को मजबूर है।
यूपी का एक ज़िला है जालौन जिसका मुख्यालय उरई है। उरई से 55 किलोमीटर दूर एक गांव गड़ेरना है जो थाना रेढ़र के अन्तर्गत आता है। यहां के निवासी रामजी विश्वकर्मा के बीस वर्षों की ग़ुलामी की ख़बर है। बीस वर्ष बंधुआ मज़दूरी, वो भी महज़ 6 हज़ार रुपयों के लिए। जानकारी के मुताबिक साल 1999 में रामजी विश्वकर्मा के भाई एक सरकारी अस्पताल में जीवन—मौत से लड़ रहे थे। रामजी ने अपने गांव से 15 किलोमीटर दूर एक दरवाज़े पर मदद के लिए हाथ फैलाया, दरवाज़ा था रामशंकर बुधौलिया का जो इलाक़े के जाने—माने दबंग नेता थे। रामजी के भाई का तो इलाज हो गया परन्तु उन पर दस हज़ार का क़र्ज़ चढ़ गया। तब तक शायद रामजी को इस बात का इल्म भी नहीं था कि ये दस हज़ार उनके लिए ‘सवा सेर गेंहूं’ साबित होगा। मूलधन की चक्की घूमी तो ब्याज का अनंत आंटा निकलने लगा।
रामशंकर बुधौलिया ने रामजी विश्वकर्मा को अपने यहां बहैसियत बंधुआ मज़दूर रख लिया। तब साल 1999 था और अब साल 2019 है। बीस बरस तक रामजी अपने मूलधन की चक्की में पिसते रहे। रामशंकर बुधौलिया इलाक़े के और बड़े नेता बने, बाद में ज़िला पंचायत सदस्य हुए। रामजी विश्वकर्मा कुछ नहीं हुए, वो सिर्फ रामशंकर के घर मजदूरी करते रहे, दिन-रात। खाने में नमक कम और गाली ज़्यादा, रोटी कम और मार ज़्यादा खाते रहे। रामजी की तो शादी हुई नहीं।
जिस भाई के इलाज के लिए रामजी बंधक रख लिए गए, उनकी पत्नी केशकली के अनुसार—
1999 में हमारा आदमी बीमार पड़ा। रामशंकर बुधौलिया से 6 हज़ार रुपया लिया, उधार चुकाने के नाम पर। एवज में रामशंकर ने हमारे जेठ को अपने यहां बंधुआ रख लिया। साल भर बाद जब उन्हें छुड़ाने पहुंची तो हमें ललकार के भगा दिया। बोलने लगे कि अभी हमारा पैसा नहीं पटा। फिर इनको कई साल तक घर नहीं आने दिया। बिटिया की शादी में एक बार 5 हज़ार, और एक बार फिर कभी 5 हज़ार दिया। उसका ब्याज अपने मन से जोड़ने लगे। फिर हमें शौचालय के लिए सरकार से 6 हज़ार रुपए मिले तब हमने दौड़ धूप करनी शुरू की। फिर से बीस साल बाद उरई गए। वहां थाने में जाने को बोला गया। थाने से दरोगा जी छुड़वा के लाए, हमसे दो जगह अंगूठा लगवाया। 26 जून 2019 को पूरा दिन हमारे जेठ को थाने में रखा तब जाकर रात को छोड़ा। और कुछ पूंछने पर केशकली जिह्वा के बजाय आंसू ही जवाब देते हैं। अब केशकली को चिन्ता है कि शौचालय के पैसे का इन्तजाम कैसे होगा?
ये रोना सिर्फ़ केशकली का रोना नहीं है। इस महादेश के अनगिनत उन लोगों का रोना इसमें गुंथा हुआ है, जिन्हें कुछ लोगों का इंसान मानने का दिल ही नहीं करता। हमारी इस पुण्य-भूमि पर जाने कितने रामजी, जाने कितने रामशंकरों के यहां बंधुआ हैं जो आज़ादी का ख़्वाब देखते होंगे।
आज देश में अमीरी—गरीबी की खाई इतनी गहरी और लम्बी हो गई है कि मुकाबला कर पाना मुश्किल है। अमीर लोग अपने धन और शोहरत के बदौलत गरीबों का उत्पीड़न कर रहे हैं। यही कारण है कि जब केशकली से आगे की कार्यवाही के बारे में पूंछा गया तो उसने कहा— हम गरीब लोग हैं और वो अरपति, कैसे लड़ पायेंगे उनसे?
इस बारे में जब जालौन पुलिस से जानकारी मांगी गई तो बताया गया कि— ”उक्त प्रकरण में दिनांक 27—06—2019 को अन्तर्गत धारा 344 भादवि का अभियोग पंजीकृत किया गया था। इसके बाद रामजी विश्वकर्मा को आजाद करा दिया गया है।”
समाजसेवियों और नेताओं को भनक तक नहीं—
कहने को तो विश्वकर्मा समाज के हजारों संगठन हैं। राष्ट्रीय अध्यक्षों और प्रदेश अध्यक्षों की भरमार है। नेताओं के बड़े और लच्छेदार भाषण, वाह! क्या कहना है। बोलते हैं तो लगता है माई—बाप यही हैं। विश्वकर्मा समाज का एक सदस्य किसी दबंग के यहां 20 साल तक बन्धक रहा और समाज के नेताओं को भनक तक नहीं? समाज के नेता जब मंच पर होते हैं तो उनके बड़े—बड़े दावे कि वह जमीन पर काम कर रहे हैं। गांव—गली, मुहल्ले, यहां तक कि हर दरवाजे दस्तक दे रहे हैं। शर्म आती है ऐसे लोगों पर जो खोखले दावे करते हैं।
प्रकरण गम्भीर, आन्दोलन की जरूरत—
विश्वकर्मा समाज से सम्बन्धित विभिन्न मुद्दों को उठाने वाले सामाजिक चिन्तक अरविन्द विश्वकर्मा ने इसे बहुत गम्भीर प्रकरण बताया है। उन्होंने कहा कि विश्वकर्मा समाज के संगठनों और नेताओं को आगे आकर इस प्रकरण पर आन्दोलन करना चाहिये। कहा कि, 20 वर्ष बाद बंधुआ मजदूरी से आजाद होने के बाद भी 10 हजार रूपये कर्ज के चुकाने पड़े। परन्तु 20 साल की रामजी की मजदूरी कैसे मिलेगी, इसे विश्वकर्मा समाज के लोगों को सोचना पड़ेगा। उन्होंने जालौन जिले के नेताओं को भी आड़े हाथों लेते हुये कहा कि, क्या जिला विश्वकर्मा समाज विहीन हो गया है या जिले में समाज के नेता नहीं हैं? यदि हैं तो उन्हें शर्म आनी चाहिये। 20 साल का समय बहुत होता है। इतने दिन में पैदा होने वाला बच्चा भी बाप बन जाता है।