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वर्तमान में हम एक ऐसे समाज में रहते हैं जहां दिखावा अपने चरम पर है। मेरी यह बात सुनकर आपको आश्चर्य होगा कि मैंने ऐसा क्यों कहा? तो मैं इस तथ्य के विषय में बताना चाहूंगा कि मनुष्य वर्तमान में हर तरह के दिखावे में मशगूल है। किसी को अपने धन का प्रदर्शन करने का शौक है, किसी को अपने रुतबे का, किसी को अपने ज्ञान का तो किसी को समाज में सम्मान का दिखावा करना अच्छा लगता है। ऐसे में जो मनुष्य इन सब गतिविधियों में शामिल नहीं होता है, तो उसे समाज दरकिनार करके या तो बेवकूफ समझता है या वह समझता है कि वह इंसान उनके आसपास के वातावरण में रहने लायक नहीं है। कितने अफसोस की बात है कि हमारे समाज में हर कोई अपने बौद्धिक स्तर से और अपनी सोच से दूसरे के चरित्र का आंकलन करता है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। हर किसी की सोच अलग होती है, हर किसी का जीवन निर्वाह करने का ढंग अलग होता है। ऐसे में हम यदि अपनी सोच के अनुसार दूसरे का आंकलन करते हैं तो यह हमारी गलती है न कि उस व्यक्ति की जिसका हम आंकलन कर रहे हैं।समाज की विडंबना है कि यहां हर कोई अपने आप को ज्यादा समझदार मानता है और सामने वाला उसे गलती का पुतला ही नजर आता है। ऐसे में सभी से अनुरोध है कि समाज के हर व्यक्ति को तवज्जो दी जानी चाहिए और अपने बौद्धिक स्तर से उसका आंकलन नहीं करना चाहिए। जरूरी नहीं है कि कोई चुप है तो वह बोल नहीं सकता या जो ज्यादा बोल रहा है वह ज्यादा ही समझदार है। यह सब समझ मात्र का फेर है।
सभी समाजजनों से करवद्ध प्रार्थना है कि उपरोक्त विचारों को अन्यथा में न लें। यह किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं अपितु समाज के हर उस व्यक्ति के लिए हैं जो इस समस्या से ग्रसित है। मेरी कही गई बात से अगर किसी को बुरा लगे तो उसके लिए मैं क्षमा चाहता हूं।

-मुकेश विश्वकर्मा
(विश्व निर्माणकर्ता सेवा संस्थान)

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