महावीर प्रसाद पांचाल ने गुटकों के पैसे बचाकर तैयार की हनुमान वाटिका
बूंदी। देश के राजस्थान राज्य में बूंदी जिला पड़ता है, उस बूंदी जिले में सहण नाम का गाँव है जहां की हनुमान वाटिका में 1000 पौधे लगा कर महावीर प्रसाद पांचाल ने गाँव का नक्शा ही बदल दिया। इस वाटिका में 61 तरह की प्रजातियों के पौधे देखने को मिल जाएँगे। महावीर ने ये पौधे उन पैसों से लगाए जिन पैसों से वो पहले गुटखा खाया करते थे। पांचाल ने वो कर दिखाया जो गुटखा खाने वाले इंसान कभी कर ही नहीं पाते है।
पौधारोपण करने की प्रेरणा कहाँ से मिली?
जब महावीर पांचाल से पूछा गया कि उन्हें पौधारोपण करने की प्रेरणा कहाँ से मिली? तब उसके जवाब में कहा कि उन्हें बचपन से ही पेड़-पौधों से बहुत ज़्यादा लगाव था। जब भी वो बचपन में घर बनाने वाला गेम खेलते थे तो उनका घर सबसे सुंदर होता था क्योंकि वो अपने घर को कनेर, नीम और कुआडिया की टहनियों से सजाता था। बचपन से ही उनका सपना रहा था कि वो खूब सारे पेड़ लगाएं। लेकिन पढ़ाई-लिखाई के बाद अपने गाँव में उन्होंने किराने की और 2010 में देई कस्बे में ऑटो पार्ट्स की दुकान खोल ली। फिर घर की जिम्मेदारियों के बोझ के तले उनका शौक दब सा गया था।
हनुमान वाटिका कैसे बनी?
साल रहा 2013 और तारीख रही 20 जून। ये वो दिन था जब महावीर अपनी दुकान में फुर्सत से यानि आराम से बैठे थे। तब वो अपनी बचपन की यादों को याद करने लग गए। जिसके बाद उन्हें पौधारोपण का सपना भी याद आ गया उस सपने की बात पांचाल ने अपने दोस्त पीताम्बर शर्मा को बताई तो शर्मा ने उन्हें गाँव में बने हनुमान जी के मंदिर के पास बेकार पड़ी 100 बीघा जमीन पर पौधे लगाने की सलाह दी।
सलाह तो पसंद आ गयी लेकिन आड़े आ गयी पैसे की दीवार। इतने बड़े पैमाने पर काम करने के लिए जेब में कुछ ना था तभी सारथी की तरह एंट्री ली दुर्व्यसन मुक्ति मंच एनजीओ के संचालक लादू लाल सेन ने। श्री सेन अपने कुछ काम से पांचाल की दुकान पर आए थे, लेकिन पांचाल के मुंह में गुटखा होने की वजह से वो ढंग से लादू लाल को जवाब नहीं दे पा रहे थे। तब लादू लाल ने महावीर से कहा कि क्या मिलता है इसको खाने से? इसमें जो पैसे उड़ाते हो उन पैसो से काजू-बादाम खाओ या घर खर्च में लगाओ। गुटखा खाना छोड़ दो इसी में भलाई है।
सेन की इस बात ने महावीर प्रसाद पांचाल के ज़मीर को जगा दिया था। जिस जमीन पर पीताम्बर शर्मा ने पौधे लगाने के लिए सलाह दी थी उसके लिए पैसों का इंतजाम हो गया था। क्योंकि पांचाल ने ठान लिया था कि अब वो गुटखा नहीं खाएँगे उसकी जगह वो नर्सरी से पौधे खरीद कर पौधे लगाएंगे।
अगले दिन पांचाल हाथों में कुदाली और कुल्हाड़ी लेकर हनुमान जी मंदिर के पास पहुँच गए और जुट गए उस 100 बीघा जमीन से बबूल की झाड़ियाँ काटने में। 2013 के अंदर उन्होंने 2 बीघा जमीन से बबूल की झाड़ियाँ काट कर वहाँ गड्ढे खोद कर पौधे लगाने लायक जमीन तैयार कर ली थी, जिसका नाम उन्होने हनुमान वाटिका रखा। इस काम को करते उनके हाथ में छाले पड़ गए थे।
हनुमान वाटिका बनने के बाद काम करना आसान था, क्या?
इसका जवाब देते हुये पांचाल बोले कि पौधे लगाने का उनको कोई अनुभव नहीं था तो शुरुआत में चुनौतियाँ बहुत आई। जैसे कभी गड्ढे ज़्यादा गहरे खुद जाते जिससे पौधे पानी से गल जाते। नीलगाय और बकरियों ने भी परेशान किया, लेकिन उनके जुनून के आगे वो चुनौतियाँ कुछ कर ना पाई, नतीजतन उनके पौधे फलने-फूलने लगे और बड़े होते गए। सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन भगवान को पांचाल की अभी भी परीक्षा लेना बाकी था।
साल था 2016 और तारीख थी 1 मार्च। उस दिन हनुमान वाटिका के बीच से गुजर रही 11 हजार केवी लाइन के तार टूटने से वाटिका में आग लग गई और 200 पौधे जलकर रख हो गए। उस रात पांचाल इतना टूट गए थे कि वो रोने लग गए थे। फिर एक ही दिन में उनको वाटिका के आस-पास बाड़ करनी थी वरना जानवर बचे हुये पौधे भी खा लेते। उन्हें ऐसे देखकर उनके बच्चे बोले कि पापा आप डीटीएच डिश बेचकर वाटिका के लिए बाड़ बना दें। ये सुनकर पांचाल का दिल और भर आया। खैर, उसके बाद कुछ भी करके जाली लगा दी और पौधे लगाने का काम चलता रहा।
हनुमान वाटिका के अलावा उन्होंने एक फेसबुक वाटिका भी बनाई है जिसमें वो अपने फेसबुक मित्रों के कहने पर पौधे लगाते रहते हैं। फेसबुक वाटिका, हनुमान वाटिका के सामने चार-पांच बीघा जमीन पर बनाई हुई है। फेसबुक मित्र ऑनलाइन पैसे भेज देते हैं उन पैसों से वो उनके नाम का पौधा फेसबुक वाटिका पर लगा देते हैं। इसके अलावा वो पिछले पांच-छ: वर्षो से सीडबॉल बनाकर सहन से देई मार्ग लगभग 10 किमी पर फेंक रहे हैं जिससे लगभग 200 से 250 नीम लग चुके हैं।
इनके इस नेक काम में उनका साथ उनके बेटे चर्मेश, अर्जुन, बेटियाँ निशा, अंबिका और उनकी पत्नी मंजू देवी देती हैं। पांचाल गाँव के लोगों के जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ, नौकरी लगने की ख़ुशी, पूर्वजों की याद आदि में पौधारोपण करने के लिए प्रेरित करते हैं। उन्होंने खुद अपने बेटे अर्जुन के जन्मदिन पर 51 पौधे लगाए थे जिससे उनका नाम जिले में प्रसिद्ध हो गया था।
पांचाल को ग्राम पंचायत, उपखंड अधिकारी, जिला कलक्टर और रणथंभौर टाइगर रिजर्व द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें वृक्षवर्धक पुरस्कार भी मिल चुका है।
महावीर प्रसाद का काम वाकई सराहनीय है। देश के हर व्यक्ति को उनकी तरह सोच रखते हुए नशा छोड़कर, नशे में लगने वाले पैसे किसी नेक काम में खर्च करने चाहिए। महावीर प्रसाद हम सब के लिए एक प्रेरणा हैं।
साभार- द पंचायत
प्रेरणा।
बहुत ही सराहनीय व प्रेरणादायक कार्य पांचाल जी द्वारा ? ?