नहीं रहे नागरी लिपि के पर्याय डॉक्टर परमानन्द पांचाल
दिल्ली। हिन्दी के जाने-माने वरिष्ठ साहित्यकार, प्रतिष्ठित भाषाविद् और इतिहासकार डॉक्टर परमानन्द पांचाल अब हमारे बीच नहीं रहे। 5 मई को जब पूरा देश पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी की 105वी जयंती पर श्रद्धासुमन अर्पित कर रहा था, उसी समय उनके राष्ट्रपति कार्यकाल में भाषा सलाहकार रहे डॉ0 परमानन्द पांचाल ने अन्तिम सांस ली। ज्ञानी जैल सिंह डॉ0 परमानन्द पांचाल का बहुत आदर करते थे। डॉ0 पांचाल नागरी लिपि परिषद नामक संस्थान के कर्ता-धर्ता रहे। देवनागरी, हिन्दी एवं भारतीय भाषाओं के प्रचार-प्रसार व प्रतिष्ठापन के लिये सतत प्रयत्नशील रहे। वे हिंदी भूषण, राष्ट्रीय गौरव, हिन्दी सेवी सम्मान, उत्तरांचल रत्न, हिंदी गौरव सम्मान से सम्मानित थे।
उन्हें वर्ष 2010 का एक लाख रूपये का महापंडित राहुल सांकृत्यायन पुरस्कार भी प्रदान किया गया था। उन्होंने भारत के एक द्वीप ‘मिनीकॉय’ की भाषा ‘महल’ और उसकी लिपि ‘दिवेही’ पर तो गवेषणात्मक कार्य के साथ-साथ दक्खिनी हिंदी के आधिकारिक विद्वान के रूप में भी उनको पर्यंत प्रतिष्ठा अर्जित थी। भाषा और साहित्य के क्षेत्र में उनकी खोजपूर्ण कृतियाँ- हिंदी के मुस्लिम साहित्यकार, दक्खिनी हिंदी की पारिभाषिक शब्दावली, दक्खिनी हिंदी- विकास और इतिहास, भारत के सुंदर द्वीप, विदेशी यात्रियों की नज़र में भारत, हिंदी भाषा- राजभाषा और लिपि, कथा दशक, अमीर खुसरो और सोहनलाल द्विवेदी, विवेच्य कृति ‘दक्खिनी हिंदी काव्य संचयन’ हिंदी भाषा- विविध आयाम तथा प्रयोजनमूलक हिंदी आदि, उर्दू भाषा और साहित्य का समुचित अध्ययन और लेखन भी करते रहे।
हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भाषा पर उनकी बेहतरीन पकड़ थी। उनके जाने से साहित्यक जगत ने एक अनमोल रत्न खो दिया जिसकी रिक्तता जीवन पर्यंत हम सभी के दिलों में रहेगी। उनका जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है। मानो मैंने अपना संरक्षक खो दिया हो। उनका अनमोल आशीर्वाद मुझे सदैव मिलता रहा। भगवान उनकी पुण्य आत्मा को अपने श्री चरणों में स्थान दें और परिवार को यह दुःख सहने की शक्ति प्रदान करें।
-दिनेश गौड़, वरिष्ठ पत्रकार