अरविन्द कुमार शर्मा ने प्रथम प्रयास में ही क्वालीफाई किया जेईई एडवांस

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मोतिहारी| एक पुरानी कहावत है जब जागो तभी सवेरा। इस वाक्य को जमीनी स्तर पर सच कर दिखाया एक लोहार के बेटे अरविन्द कुमार शर्मा ने। अरविन्द कुमार एक ऐसे परिवार से आते हैं जो कई पीढ़ियों से शिक्षित रहा है। इनके परिवार में अधिकांश व्यक्ति ग्रेजुएट हैं। इतने शिक्षित परिवार में अरविन्द कुमार का जन्म सबसे बड़े संतान के रूप में हुआ। लेकिन पढ़ाई के उम्र में पहुंचने पर परिवार वाले थोड़े चिंतित हुए, क्योंकि उनका पढ़ने-लिखने में मन नहीं लगता था। वह किताब-कॉपी को तो देखना नहीं चाहते, स्कूल जाने के नाम पर तो अनेकों बहाने होते थे। अन्य कोई काम करने में या किसी से बातचीत में मोटी अक्लवाले थे और खेलकूद में तो सबसे आगे। लेकिन आगे चलकर वही ईमानदारी और लगन से पढ़ाई करने के फलस्वरूप इण्टरमीडिएट पास करने के साल ही जेईई एडवांस-2017 की परीक्षा में प्रथम प्रयास में ही सफलता का झंडा फहरा दिया।


अरविन्द कुमार बिहार प्रदेश के पूर्वी चंपारण जिले के पुरुषोत्तमपुर गांव के रहने वाले हैं। उनके पिता कमकेश शर्मा प्राइवेट शिक्षक हैं। अरविन्द कुमार से उनकी सफलता के सम्बन्ध में हुई वार्ता के कुछ अंश—
सवाल— बचपन से आईआईटी कॉलेज तक पहुंचने के सफर को बताइये-
जवाब— “मेरी पढ़ाई गांव के एक प्राइवेट स्कूल से शुरू हुई, लेकिन विशेष प्रगति नहीं दिखी। क्योंकि पढ़ने-लिखने में तो मेरा मन लगता नहीं था, किताब-कॉपी को तो देखना ही नहीं चाहते, स्कूल जाने के नाम पर तो मेरे पास कई बहाने होते थी। बाद में बड़े चाचा बृजेश शर्मा के साथ मोतिहारी शहर में गया जहां शांति निकेतन जुबली स्कूल में तीसरी क्लास में नाम लिखाया गया है। वहां भी कुछ विशेष प्रगति नहीं दिखी। मैं कक्षा 7वीं—8वीं में 45—50 प्रतिशत अंक से आगे नहीं जा सका। क्योंकि मेरी आदत हमेशा से वही रही जो मैंने बताया। जिसकी वजह से परिवार वालों से डाट-फटकार भी सुनना पड़ता था। लेकिन ज्यादा नहीं, उतना ही जितना होनी चाहिए। मुझे औरों से और क्लास में भी तरह-तरह की व्यंग्यात्मक शब्दों को सुनना पड़ा। लेकिन उस शब्दों का मुझ पर कोई असर नहीं हुआ, ना ही मैं उन बातों को सुना, ना ही कभी उनके बातों पर विचार करता था कि लोग मुझे क्या कहते हैं? क्योंकि मेरे ऊपर किसी की बात का कोई असर नहीं होता था। मैं जैसा था समय और परिस्थिति के अनुसार जो मन में आया सिर्फ वही किया। साथ में मेरे चाचा (हरीश शर्मा) भी रहते थे। वैसे में बोलते तो कम हैं लेकिन जो बोलते हैं टू द पॉइंट। मुझे समय-समय पर सकारात्मक दिशा निर्देश देते थे और परिवार वालों का भी मनोबल बढ़ाते थे कि समय आने पर सही राह पकड़ लेगा। उन्होंने कभी भी मुझे नकरात्मक शब्दों का प्रयोग नहीं किया, बल्कि उदहारण के साथ बहुत समझाते भी थे। कक्षा सातवीं की परीक्षा के बाद हमारी संगत कुछ ऐसे दोस्तों से हुई जो पढ़ने में काफी तेज थे, मैं उन्हें पढ़ते हुए देखता था। क्लास में उनके टेस्ट का मार्क्स बहुत अच्छे आते थे लेकिन मेरा उन लोगों की अपेक्षा काफी कम। इस परिथिति को देखकर मुझमें कुछ परिवर्तन आया और मन में पढ़ने की इच्छा जागने लगी। मैंने सोचा हम भी इनके जैसा पढ़ते हैं और बनते हैं। उन लोगों से दोस्ती के नाम पर कुछ मदद लिया, वही क्लास पकड़े जहां वो लोग पढ़ रहे थे और पढ़ाई में मेहनत शुरु कर दी। देखते—देखते प्रगति का ग्राफ बढ़ने लगा और फिर हमने कक्षा नौंवी में ही नौवीं और दसवीं का सिलेबस खत्म कर दिया। दसवीं में सिर्फ अभ्यास किया और 9.6 CGPA यानी 91.20 प्रतिशत के साथ हाईस्कूल पास किया। मैट्रिक पास करने के बाद मैं पटना आकर एक निजी कोचिंग संस्था में आईआईटी के लिए तैयारी करने लगा। पूरी लगन और ईमानदारी से मेहनत किया जिसके परिणाम स्वरुप हमने जेईई एडवांस-2017 की परीक्षा में प्रथम प्रसास में ही सफलता हासिल कर ली। प्रथम काउंसलिंग में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी, विशाखापट्नम (आंध्र प्रदेश) जिसका अकादमिक सेंटर आईआईटी, खरगपुर है के केमिकल ब्रांच में नामांकन हुआ हैं।”


सवाल— केमिकल ब्रांच में नामांकन लेने के पीछे क्या कारण है? क्या आपके ऊपर किसी तरह का पारिवारिक दबाव था या अपनी इच्छा से चुनाव किया? आगे क्या करना चाहते हैं?—
जवाब— मैंने पहला ऑप्शन मैकेनिकल ब्रांच के लिए रखा था और दूसरा केमिकल के लिए और केमिस्ट्री पढ़ने में बहुत रुचि थी। लेकिन पहला ऑप्शन मेकैनिकल नहीं मिला तो दूसरे ऑप्शन में रुचि थी ही, उसे ले लिया। जहां तक पारिवारिक दबाव की बात है, कोई दबाव नहीं था। अपनी इच्छा से रुचि अनुसार अपने कैरियर का चुनाव किया। आगे मैं केमिकल रिएक्शन पर रिसर्च करना चाहता हूं।
सवाल— आपके परिवार में कौन-कौन रहते हैं?
जवाब— मेरा परिवार एक बड़ा और संयुक्त परिवार है। परिवार में दादा—दादी, पापा—मम्मी, चाचा—चाची और छोटे बच्चे हैं। सभी बच्चे पढ़ाई करते हैं। परिवार के मुखिया दादा सत्यनारायण शर्मा (सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक, शिक्षा के प्रति काफी जागरूक और अनुशासन के मामले में बहुत कड़े हैं) हैं। दादाजी चार भाई हैं- शिवनारायण शर्मा, सत्यदेव शर्मा और सबसे छोटे भाई महेश शर्मा। इसके अलावा चाचा बृजेश शर्मा, हरेश शर्मा (भारतीय रेल सेवारत), उमेश शर्मा। मैं दो भाई एक बहन हूं।
सवाल— जो विद्यार्थी इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा के लिए तैयारी कर रहे हैं या करने वाले हैं उनके लिए आप क्या कहना चाहेंगे?
जवाब— इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा के लिए बेसिक जानकारी बहुत जरूरी है। जैसा कि मैंने बताया। शुरू में पढ़ने में औसत कम था लेकिन बाद में पीछे का बेसिक भी कवर किया। नौंवी में ही नौंवी और दसवीं का सिलेबस पूरा करने के बाद दसवीं में सिर्फ अभ्यास किया साथ ही बहुत ओवर कॉन्फिडेंस होने के कारण मैं मानता हूं कुछ पढ़ाई में कमी आई। इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि ओवर कॉन्फिडेंस के कारण पढ़ाई में कमी आ सकती है। इस पर विशेष ध्यान दें। इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा कठिन है लेकिन दो साल का समय भी कम नहीं होता है। ईमानदारी और लगन के साथ पढ़ा जाए तो निश्चित ही सफलता मिल सकती है।


लेख सार संदेश:—
★ प्रारम्भ में बच्चे की मानसिक स्थिति कैसी भी हो सकती है लेकिन वैसा ही अंत तक रहेगा यह मानकर उसे अवसर से वंचित नहीं करें। जिसे हम कोयला के रूप में देखते हैं, वही समय बीतने पर हीरा का रूप ले लेता है।
★ बच्चे पढ़ाई से दूर भागते हों, सरारती हों तो सिर्फ बलपूर्वक इच्छित प्रारूप में उतारने की कोशिश नहीं करें, क्योंकि ऐसा करने से उसी व्यवहार के लती हो सकते हैं। प्रतिक्रिया नकारात्मक भी आ सकती है। जितना हो सके प्रेम और स्नेह से उदाहरण देकर सुंदर प्रारूप देने की कोशिश करें। आप चाहे तो सोनार, लोहार और कुम्हार का भी उदाहरण दे सकते हैं।
★ वैसे तो आदमी का वर्गीकरण अनेकों प्रकार से अलग-अलग होती है लेकिन शिक्षित व्यक्तियों का वर्गीकरण करें तो मेरे नजर में शिक्षित दो प्रकार के होते हैं एक होते हैं दुष्प्रेरक जिनके पास डिग्री होती है खजूर की पेड़ की तरह बड़ी-बड़ी। जो सिर्फ नाम के लिए होती है काम के लिए नहीं। इनके ज्ञान का दुर्गुण होता है किसी को प्रेरणा नहीं देना बल्कि दूसरे को हादसा और निराशा देना और टांगे पकड़कर पीछे खींचना। दूसरे होते हैं उत्प्रेरक जो अपने शिक्षा रूपी सद्गुण को लोगों को प्रेरणा और दिशा निर्देश देने के लिए करते हैं जो किसी शीतल छायादार और मीठे फलदायक वृक्ष से कम नहीं हैं। इसलिए उत्प्रेरक बनें ना कि दुष्प्रेरक।
★ बच्चे को विषय और कैरियर को उसी के रुचि के अनुसार चुनने दें। अपनी इच्छा और आवश्यकतानुसार दबाव नहीं दें क्योंकि पढ़ाई उसे करनी है आपको नहीं।


प्रस्तुति— सतीश कुमार शर्मा, मोतिहारी
E-mail- [email protected]

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