शिवानी विश्वकर्मा की जीवन्त चित्रकारी में दिखती है वैभवशाली सांस्कृतिक विरासत की झलक
पिथौरागढ़। उत्तराखंड के मिनी कश्मीर कहे जाने वाले पिथौरागढ़ की रहने वाली 27 वर्षीया शिवानी विश्वकर्मा, आज अपनी बेहतरीन चित्रकारी की वजह से लोगों के बीच एक चर्चित चेहरा बन चुकी हैं। वर्तमान में शिवानी, आर्मी पब्लिक स्कूल पिथौरागढ़ में कला की शिक्षिका हैं और अपनी पेंटिग्स के जरिए लोगों को हतप्रभ कर रही हैं। पेंटिग्स ऐसी कि बरबस ही हर कोई देखता ही रह जाए।
शिवानी के पिता स्व0 दीवानी राम पिथौरागढ़ के प्रसिद्ध कलाकार थे। उनकी कला का भी हर कोई मुरीद था। उनकी बनाई पेंटिंग पिथौरागढ़ महाविद्यालय की गैलरी में आज भी मौजूद हैं। शिवानी नें पेंटिग्स की बारिकियां और समझ अपने पिताजी के सानिध्य में बचपन से सीखा। वह कहती हैं, “मेरे पिता ही मेरे पहले गुरु, ट्रेनर और मेरी प्रेरणा रहे हैं।”
बचपन से ही शिवानी को रंगो और चित्रों से गहरा लगाव था और आज शिवानी का वह लगाव, उनकी पेंटिग्स में साफ झलकता है। शिवानी की अधिकतर पेंटिंग्स में आपको बरबस ही पहाड़ों का लोकजीवन और लोकसंस्कृति की झलक देखने को मिलेगी। इन पेंटिंग्स में पहाड़ यथार्थ नजर आता है। उनकी पेंटिग्स में प्रकृति, पशु-पक्षी, नदी-झरनों, खेत-खलियान से लेकर वैभवशाली सांस्कृतिक विरासत की झलक भी दिखाई देती है।
ठुकरा दिया फ्रांस से आया नौकरी का ऑफर-
कोई अपनी माटी-थाती से कितना प्यार करता है, अगर यह जानना हो तो शिवानी से पूछ सकते हैं। अल्मोड़ा से फाइन आर्ट में स्नातक करने के बाद शिवानी ने राजस्थान के वनस्थली विद्यापीठ से फाइन आर्ट में मास्टर डिग्री प्राप्त की। साल 2019 में, फ्रांस से उन्हें बहुत अच्छे पैकेज के तहत नौकरी का बुलावा आया था, लेकिन शिवानी अपनी माटी-थाती से दूर नहीं जाना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने नौकरी का बुलावा ठुकरा दिया।वह, पहाड़ों में रहकर ही कुछ करना चाहती थीं। शिवानी, उत्तराखंड की कला और संस्कृति पर पीएचडी करना चाहती हैं और उन्हें वैश्विक स्तर पर नई पहचान दिलाना चाहती हैं।
वर्ष 2018 में 3 जून को, विश्व पर्यावरण दिवस को लेकर दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम में कलाकार फाउंडेशन ने सबसे लंबी पेंटिंग बनाने के लिए देशभर से कलाकारों को आमंत्रित किया था। पेंटिग को तैयार करने वाले 1,145 भारतीयों में, पिथौरागढ़ जनपद की शिवानी विश्वकर्मा भी शामिल थीं। कलाकारों ने लगातार दो घंटे तक 3,435 फुट लंबी पेंटिंग तैयार कर चीन के रिकॉर्ड को ध्वस्त करते हुए गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज किया था। उस समय शिवानी की माता जानकी विश्वकर्मा सहित पूरे परिवार और पिथौरागढ़ में खुशी की लहर दौड़ पड़ी थी। इसके अलावा, पूरे उत्तराखंड के कोने-कोने से लोगों ने शिवानी को बधाइयाँ दी थीं।
लोक-संस्कृति को नई पहचान और महिलाओं को स्वावलंबी बनाना है लक्ष्य-
शिवानी का सपना है कि वह अपनी कला और पेंटिग्स के जरिए नए अवसरों का सृजन करें और अपने पहाड़ के लोक, लोक-जीवन, लोक-संस्कृति को देश दुनिया तक पहुंचाएं। इसके अलावा, वह जरूरतमंद महिलाओं को पेंटिग्स के जरिए सशक्त करना चाहती हैं, ताकि वे स्वावलम्बी बनें। शिवानी पिथौरागढ़ के लंदन फोर्ड में एक पेंटिंग स्टूडियो/आर्ट गैलरी के जरिए अपनी पेंटिग्स सेल करती हैं और लोगों को पेंटिग की बारिकियां भी सिखाती हैं। वह अपने आर्ट सरोवर और डिजिटल प्लेटफॉर्म/ऑनलाइन के जरिए ही अपनी अधिकतर पेंटिग्स बेचती हैं। शिवानी के पास पेंटिंग्स की बहुत डिमांड आती है, इसलिए वह कभी-कभी तो रातभर बैठकर पेंटिग्स बनाती हैं। शिवानी को पेंटिग्स में सबसे ज्यादा पोर्ट्रेट और ह्यूमन फेस बनाना पसंद है। इसके अलावा, वह पहाड़ के लोकजीवन से लेकर लोकसंस्कृति के रंगों को कैनवास बिखेरना चाहती हैं, ताकि वे जींवत हो उठें।
हर कदम पर मिला परिवार का साथ-
शिवानी कहती हैं, “मैं बेहद ख़ुशनसीब हूं कि मुझे अपने परिवार का हर कदम पर साथ मिला। मायके में पिताजी और माँ का साथ मिला, तो ससुराल में मेरे पति आनंद डम्डियाल जी का साथ। वह हमेशा ही मुझे प्रोत्साहित करते रहते हैं। मेरा सपना है कि एक दिन लोग पिथौरागढ़ और उत्तराखंड को पेंटिग्स की वजह से जानें।” वास्तव में देखा जाए तो रंग हमें एक रूप देते हैं, हमारे देखने को एक स्वरूप देते हैं। बिना रंगों के कोई त्यौहार, कोई उल्लास नहीं। बिना रंगों के कोई जीवन नहीं। रंग खुशी, समृद्धि और कामयाबी का प्रतीक होते हैं। शिवानी विश्वकर्मा, अपनी कला से कैनवास पर कल्पनाओं के रंग उकेरकर उसे जींवत बना देती हैं। हम आशा करते हैं कि आने वाले समय में शिवानी अपनी नायाब चित्रकारी के जरिए पिथौरागढ़ ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड व देश को नई पहचान दिलाने में सफल होंगी। (साभार)