पुण्य धरा के पावन पथ पर चलना अपना काम- महेश पांचाल ‘माही’

0
Spread the love

बांसवाड़ा। शिल्प और सृजनधर्मी समुदाय में हिंदी भाषा और साहित्य के प्रसार, प्रचार तथा कलम के माध्यम से समाज के उत्थान के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्तर पर गठित अखिल भारतीय विश्वकर्मा साहित्य परिषद की काव्य गोष्ठी का आयोजन हुआ। बांसवाड़ा (राजस्थान) से महेश पंचाल माही के संयोजन एवं बालाघाट से राष्ट्रीय मंचों एवं टेलीविजन के कई कार्यक्रम में अपने हुनर का जलवा दिखा चुके दिनेश देहाती की अध्यक्षता में आयोजित इस गोष्ठी का आरम्भ महेश माही द्वारा मां शारदे की वंदना “निष्प्राण कर में लेखनी है प्राण इसको दीजिये” से हुआ। छिंदवाड़ा से मंचीय कवि सतीश विश्वकर्मा ‘आनंद’ के बेहतरीन संचालन में सर्वप्रथम बल्लभगढ़ (हरियाणा) से विख्यात कवि पुनीत पांचाल ने “सोच-सोच भयभीत हैं, लोग कहेंगे चार,म न की मन में रह गई, दिया छोड़ संसार” सहित दोहे, छंद एवं देशभक्ति से ओतप्रोत रचनाओं से शानदार आगाज़ किया।

बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन से कवि नंदकिशोर पांचाल ने “हुए हैं पतन की ओर अग्रसर अब संस्कार, हमारे और बेटियों की रक्षा की बातें महज़ दिखावा लगती” प्रस्तुत कर वर्तमान में व्याप्त अपसंस्कृति पर प्रहार किया। उज्जैन से ही प्रसिद्ध मंचीय कवि अनुज पांचाल ने “कोई दौलत की चाहत में स्वयं निलाम करता है, कोई महबूब के खातिर इसे बदनाम करता है, मगर धड़कन में जिसके देश का अरमान हो जिंदा, वही अपनी जवानी सरहदों के नाम करता हैं” सुना कर समां बांध दिया। अनिल पांचाल सेवक ने “यह जरूरी नहीं कि तुम सितारा बनो, अगर हो सके तो किसी का सहारा बनो” सुनाकर ख़ूब वाहवाही पायी। वहीं दिनेश देहाती ने प्रेरक रचना “मंजिल अपनी पाने का इरादा करो, लक्ष्य कठिन है मेहनत ज्यादा करो” के अतिरिक्त चिर परिचित अंदाज़ में हास्य व्यंग्य की रचनाएं सुनाकर लोटपोट कर दिया।

महेश पंचाल ‘माही’ ने बांसवाड़ा राजस्थान से गीत “पुण्य धरा के पावन पथ पर चलना अपना काम, चलकर केवल इन राहों पर मिलने हैं सुखधाम” के साथ ही ग़ज़ल और छंद सुनाकर महफ़िल को परवान चढ़ाया। छिंदवाड़ा से भूतपूर्व सैनिक एवं मंचीय कवि सतीश आनंद ने “बचपन की वो कहानियां नहीं भूला, मैं दोस्तों की मेहरबानियां नहीं भूला, यूं तो करता हूं बहुत प्यार अपनी मां से भी मैं अपने बाप की क़ुर्बानियां नहीं भूला” सुनाकर रिश्तों में कर्तव्य का बोध कराया। बांसवाड़ा से ही राम पांचाल भारतीय ने “प्रीत की प्रतीक पाती, हाथ में हिना रचाये, इत्र सी सुगंध लिए, बाट जोहे राधिका” सहित विविध विषयों पर छंद प्रस्तुत कर ऊंचाई प्रदान की तो देश की बेटियों के साथ हो रहे अनाचार पर पानीपत हरियाणा से गुलाब पांचाल ने “जाग पहरुए जाग समय की आहट को पहचान” और फिर “युग ने करवट ली है बस्ती में है कोलाहल” सुनाकर सुंदर अंजाम दिया।
कार्यक्रम में कवि एवं श्रोता के रूप में 35 साहित्यकार उपस्थित रहे। इस अवसर पर सामाजिक चर्चा के अतिरिक्त सभी ने कोरोना से बचाव हेतु यथासम्भव जागरुकता फैलाने एवं मास्क के उपयोग के साथ सामाजिक दूरी बनाए रखने का संकल्प लिया। आभार पुनीत पांचाल बल्लभगढ़ ने व्यक्त किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.

%d bloggers like this: