सामाजिक लोगों की एकजुटता ने सही निर्णय लेने के लिये रेलवे को किया मजबूर
सामाजिक जागरूकता, सहयोग व सही दिशा में किये जाने वाले प्रयास से निश्चित ही सफलता मिलती है। विदित हो कि रेलवे में ट्रैकमैन के रूप में कार्य कर रही एक महिला को ऑफिस से केवल इसलिए हटाया गया कि उसने अपने उच्च अधिकारी पर ह्रासमेंट की केस कर दी थी, जिससे कुपित होकर अधिकारीगण उसे आफिस से हटाकर उसके मूल पद पर कार्य करने के लिए बाध्य कर दिये। अधिकारियों से न्याय की उम्मीद टूटी तो उसने सामाजिक शुभचिंतकों से अपनी बात कही।
यह विषय जब समाज के जागरूक व सक्रिय इन्द्रकुमार के द्वारा अरविन्द विश्वकर्मा के सम्मुख आया तो उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ इसे पद की जिम्मेदारी व कार्यकुशलता नहीं वरन अधिकारियों की संवेदनहीनता, महिलाओं के स्वाभिमान के साथ खिलवाड़ और भेदभाव के रूप में देखा। सुशील विश्वकर्मा, विजय विश्वकर्मा, कमलेश विश्वकर्मा, रवीन्द्र विश्वकर्मा, पवन शर्मा, सुधांशु, सुनील विश्वकर्मा, शंकरलाल, मनोज ओझा, राजू विश्वकर्मा, अभिषेक, रामशब्द शर्मा आदि कई लोगों के सहयोग से इस विषय को रेलवे के अधिकारियों व रेलमंत्री के समक्ष दृढ़ता से रखा।
नतीजा यह हुआ कि रेलवे के जो निर्णय मेज पर धूल फांकते हैं वह मात्र 15 दिन के अंदर आदेश में परिवर्तित हो गये। इस बीच उत्तर मध्य रेलवे इलाहाबाद के जनरल मैनेजर द्वारा डीआरएम इलाहाबाद को 3 बार उचित कार्यवाही का आदेश दिया गया था। परन्तु डीआरएम सहित अन्य अधिकारी लापरवाही बरतते रहे। बाद में जब पुन: मामले को उठाया गया तब विषय की गम्भीरता को रेलवे द्वारा निर्णायक रूप में लेकर ड्राइवर व गैंगमैन सहित अन्य पदों पर नियुक्त महिलाओं को अन्यत्र समायोजित करने के लिए आदेश दे दिया गया। उम्मीद है उक्त महिला कर्मचारी जल्द ही समायोजन की प्रक्रिया से लाभान्वित होगी। स्पष्ट है कि मिलकर किया गया प्रयास जनहितकारी निर्णय लेने के लिए जिम्मेदारों को बाध्य कर देते हैं।
—अजय कुमार