सरकार ने किया मदद से इन्कार तो मजदूर बाप—बेटों ने भी की जिद

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उज्जैन। यह एक मजदूर पिता के हौंसले और उसके सपनों को साकार करने की कोशिश में जुटे दो बेटों के जुनून की कहानी है। वो पिता जो छुट्‌टी मजदूरी करता है। कभी काम मिलता है, कभी बैरंग लौटना पड़ता है। कुल मिलाकर जीवन संघर्ष है। लेकिन देवेन्द्र पांचाल नाम के इस पिता की जिद है, स्वयं भले कुछ न बन पाए, मगर बेटों को काबिल बनाना है। उसके दोनों बेटे आनन्द पांचाल और जय पांचाल पिता के सपने को हकीकत की जमीन देना चाहते हैं। आनन्द सीए बनने की अंतिम पायदान पर है। और छोटा जय हाल ही में सीपीटी की परीक्षा में जिले भर में अव्वल आया है। हालांकि मंजिल दूर है। बेटों को पढ़ाने पर काफी खर्च है। इसलिए देवेन्द्र ने सरकार से मदद भी मांगी, मगर सहायता नहीं मिली। अब देवेन्द्र कर्ज लेकर दोनों बेटों को पढ़ा रहे हैं। रिश्तेदार, दोस्त सभी हंसते हैं, लेकिन पिता के सपने को सच साबित करने के लिए आनंद और जय खुद से वादा कर चुके हैं। एक दिन काबिल बनकर दिखाएंगे।
कर्ज लेकर पढ़ाने पर रिश्तेदार और दोस्त हंसते हैं पर बेटों ने पिता के सपने को सच करने का वादा निभाया।
आनन्द की तैयारी सीए बनने की—
देवेन्द्र का बड़ा बेटा आनन्द पांचाल 20 साल का है। 12वीं के बाद उन्होंने सीपीटी क्लियर किया। आईपीसीसी (इंटीग्रेटेड प्रोफेशनल कॉम्पिटेंसी कोर्स) सेकण्ड लेवल भी पार कर चुके हैं। फिलहाल वे सी.ए. के अंडर में ट्रेनिंग कर रहे हैं। तीन साल की ट्रेनिंग के बाद उन्हें फायनल का मौका मिलेगा। इसके बाद वे सी.ए. यानी चार्टर्ड अकाउण्टेंट कहलाएंगे।
देश के टॉप कॉलेज में एडमिशन तो मिला, मगर दिल्ली में रहने का खर्च नहीं जुटा पाया—
18 वर्षीय जय पांचाल 12वीं बोर्ड में मैरिट हासिल कर चुके हैं। 96 प्रतिशत अंक हासिल करने पर देशभर में अव्वल दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज में एडमिशन भी हो गया। मगर हॉस्टल में रहने के लिए 98 प्रतिशत का कटऑफ था। दूसरा ऑप्शन पेइंग गेस्ट का। इसमें 15 हजार रुपये प्रतिमाह का खर्च था। हर महीने पिता इतना पैसा कहां से लाएंगे, यह सोच जय ने कॉलेज में एडमिशन नहीं लिया। बकौल जय ने यूनिवर्सिटी में एडमिशन दिलाने के लिए प्रदेश सरकार से मदद भी मांगी मगर सहायता नहीं मिली। यूनिवर्सिटी छोड़ने के बाद उन्होंने सीए की तैयारी शुरू की। नतीजा सीपीटी परीक्षा में जिले में प्रथम आया। बकौल जय की 9 महीने बाद आईपीसीसी की परीक्षा होना है। जिसके लिए वे दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। (साभार)
—मुकेश विश्वकर्मा

 

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