जन्म से हाथ नहीं, पैर से कम्प्यूटर चला रहा रोहित विश्वकर्मा

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देवरिया। मंजिलें उन्हीं को मिलती हैं जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। देवरिया का रोहित विश्वकर्मा इन चंद लाइनों को चरितार्थ कर रहा है। जन्म से बिना हाथ के पैदा हुए रोहित ने दिव्यांगता को मात देकर पैर से कम्प्यूटर चलाना सीख लिया। अब वह किसी पर आश्रित होने की बजाय न सिर्फ खुद की जिंदगी सवांर रहा है बल्कि पूरे परिवार का भी सहारा बन गया है।
जिले की बरियारपुर ग्राम पंचायत का रघुनाथपुर एक टोला है। यहीं के रहने वाले रोहित विश्वकर्मा के साथ किस्मत ने जन्म से ही अजीब मजाक किया। बिना हाथ पैदा हुए रोहित को देख पिता रामकैलाश और मां गुलाबी देवी गम में डूब गई। रोहित कुछ बड़ा हुआ तो अन्य बच्चों को स्कूल जाते देख खुद भी पढ़ने की जिद करने लगा। मजदूरी कर परिवार चलाने वाले रामकैलाश के पास इतने संसाधन नहीं थे कि वे अपने दिव्यांग बेटे को विशिष्ट बच्चों के लिए संचालित किसी अच्छे स्कूल में भेजते, सो वे रोहित को पढ़ाने से कन्नी काटने लगे। पर रोहित ने तो जैसे स्कूल जाने की ठान रखी थी। अन्य बच्चों के साथ भाग कर गांव के प्राथमिक विद्यालय पर जाने लगा। इसी दौरान उसने कब पैरों से लिखना सीख लिया घर वालों को भी नहीं पता। उसकी रूचि देख पिता ने भी सहयोग किया और उसने मालीबारी इण्टर कालेज से हाईस्कूल और इण्टर तक की पढ़ाई पूरी कर ली। किसी ने मशविरा दिया कि सिर्फ स्कूली पढ़ाई से कुछ नहीं होने वाला है, आज के समय में नौकरी चाहिए तो कम्प्यूटर की डिग्री जरूरी है। फिर उसने कम्प्यूटर की डिग्री हासिल करने की ठान ली। जिला मुख्यालय पर संचालित कुछ कम्प्यूटर सेंटरों पर पहुंच कर उसने अपने मन की बात बताई, तो पैर से की-बोर्ड चलाने की बात पर वे किनारा कर गए। इसी दौरान एक कम्प्यूटर संचालक ने पैर से उसकी लिखावट देख भरोसा किया और कम्प्यूटर शिक्षा देने के लिए एडमिशन ले लिया। कुछ ही महीनों में रोहित के पैरों की उगलियां कम्प्यूटर के की-बोर्ड पर तेजी से थिरकने लगी और उसने पीजीडीसीए की डिग्री हासिल कर ली।
बिना किसी मदद के पूरी की ग्रेजुएशन की पढ़ाई—
दिव्यांग होने की वजह से यदि रोहित चाहता तो उसे प्रश्नों का उत्तर लिखने के लिए एक सहयोगी मिल सकता था, बावजूद इसके उसने बिना किसी की मदद लिए पैरों से लिख कर न सिर्फ हाईस्कूल की परीक्षा 58 फीसदी और इण्टर की 47 प्रतिशत अंको के साथ उत्तीर्ण की बल्कि 2007 में 48 फीसदी अंको के साथ डा0 राममनोहर लोहिया महाविद्यालय मालीबारी से ग्रेजुएशन की भी डिग्री हासिल कर ली।
नहीं मिली नौकरी तो खोल ली खुद की दुकान—
कम्प्यूटर में पीजीडीसीए की डिग्री हासिल करने के बाद रोहित ने जलनिगम, डाकखाना और रेलवे के कुछ पदों के लिए आवेदन किया, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली। रोहित के अनुसार जल निगम और डाकखाने में कम्प्यूटर ऑपरेटर के पद पर नौकरी मिलने की पूरी संभावना थी, लेकिन दोनों परीक्षाएं बाद में निरस्त कर दी गई। इसके बाद छोटे भाई चन्द्रशेखर की मदद से गांव के चौराहे पर कम्प्यूटर सेन्टर व मोबाइल की दुकान खोल ली। इस दुकान से होने वाली आमदनी से ही वह पूरे परिवार का खर्च खुद उठाता है। आने वाले दिनों में प्रदेश में कई भर्तियां निकलने की संभावना देख इन दिनों वह ट्रिपल सी की पढ़ाई में जुटा है। रोहित दावे से कहता है कि एक न एक दिन उसे सफलता जरूर मिलेगी। जैसे उसे इन लाइनों पर पूरा यकीन है। ”हार मानो नहीं तो कोशिश बेकार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।”

1 thought on “जन्म से हाथ नहीं, पैर से कम्प्यूटर चला रहा रोहित विश्वकर्मा

  1. बिना हाथों के कंप्यूटर चला कर जीविका चलाने वाला यह होनहार व्यक्ति अन्य लोगों के लिए प्रेरणादायक है जो रोजगार ना होने का रोना रोते रहते हैं

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