राजस्थान की ”पैड वुमन” लाड लोहार, कच्ची बस्तियों में जला रही हैं जागरुकता की मशाल
उदयपुर। आपको ऐसी महिला की कहानी बता रहे हैं जिसने कच्ची बस्ती की महिलाओं में जागरुकता के लिए अनूठे प्रयास किए हैं। पीरियड्स के दौरान महिलाओं की शर्म को तो दूर किया है साथ ही उन्हें जागरूक कर सेनेटरी नैपकिन बनाने की कला भी सिखा दी है। उदयपुर में पैड वुमन के नाम से पहचान बना चुकी लाड लोहार (Laad Lohar) भले ही कभी स्कूल नहीं गई हों लेकिन उनके मन में महिलाओं के प्रति काम करने का एक जज्बा था। दरअसल, गाड़िया लोहर समाज में पिछडे़ वर्ग के रूप में देखा जाता हैं, लेकिन उन्हीं के बीच से निकली लाड लोहार ने शहर की रामनगर कच्ची बस्ती में एक अलख सी जगा रखी है। महिलाओं को पीरियड्स के दौर में जब पांच दिनों तक घर से बाहर नहीं निकलने दिया जाता, यह बात लाड को बेहद अखरती थी। दरअसल, गरीबी के चलते इस कच्ची बस्ती की महिलाएं सेनेटरी नैपकिन खरीदने के लिए सक्षम नहीं थीं। ऐसे में लाड लोहार ने इसका रास्ता निकाला और पहले तो एक एनजीओ के मार्फत खुद नैपकिन बनाना सीखा और फिर घर-घर जाकर महिलाओं को इसके प्रति जागरूक करने का प्रयास किया।
लाड पूरी कच्ची बस्ती में घर-घर गईं और महिलाओं को नैपकिन बनाने की कला सीखने के लिए जागृत किया। लाड लोहार को इस बात की खुशी है कि उनका प्रयास कच्ची बस्ती की हर महिला के लिए वरदान साबित हुआ है और आज अपने हाथ से बने नैपकिन उपयोग कर ये महिलाएं आर्थिक बोझ से तो बच ही रही हैं साथ ही इन्हें संक्रमण का खतरा भी नहीं सताता है।
लाड लोहार का सेनेटरी नैपकिन भी पूरी तरह से अनूठा है। कच्ची बस्ती की गरीब महिलाएं इस नैपकिन को अब अपने घर बनाती हैं और इसमें एक रूपए का खर्च भी नहीं आता है। दरअसल, गरीब तबके के लिए लाड लोहार ने घर के रद्दी कपडे़ का उपयोग कर नैपकिन बनाना सीखा और फिर घर-घर जाकर महिलाओं को इसके लिए प्रशिक्षित किया। शुरुआती दौर में महिलाएं इस विषय पर बात करने से हिचकिचाती थी लेकिन लाड लोहार ने हार नहीं मानी और उन्होंने महिलाओं को जागरुक करने का प्रयास जारी रखा।
कभी पीरियड्स की बात भी किसी के साथ साझा नहीं करने वाली इस बस्ती की महिलाओं की शर्म अब टूट चुकी है और वे नैपकिन के प्रति जागरुक हुई हैं। यही वजह है कि लाड लोहार के घर अब कच्ची बस्ती की महिलाएं नैपकिन बनाने सीखने आती हैं और वे भी उन्हें पूरी लगन से काम करना सिखाती हैं।
लाड लोहार के ये नैपकिन पूरी तरह से नि:शुल्क हैं, क्योंकि इसके लिए वे घर से कपड़ा उपयोग करती हैं और सिखाने का महिलाओं से कोई पैसा भी नहीं लेती। महिलाएं भी अब खुलकर इन नैपकिन के बारे में अपने घर में भी बात करती हैं और अपनी बच्चियों को भी सिखाती हैं। यहीं नहीं पुरूषों के सामने नैपकिन शब्द का इस्तेमाल करने से भी बचने वाली महिलाएं अब पुरूषों के सामने नैपकिन बनाती हैं और उनसे खुलकर इस विषय पर बात भी करती हैं।
लाड लोहार अब एक मिसाल बन चुकी हैं जिसने सैकडों महिलाओं को अपने अभियान से जोड़ा है और उन्हें संक्रमण से बचने का रास्ता दिखाया है। लाड के प्रयासों से ही उन्हें जयपुर, जोधपुर, बीकानेर जैसे शहरों में ट्रेनिंग सेमिनार में भाग लेने का मौका मिला। यहीं नहीं जागृति यात्रा संस्थान द्वारा लाड को भारत यात्रा भी करवाई गई जिसमें बिहार, उड़ीसा, नालंदा, दिल्ली, मुबई, चेन्नई, विशाखापट्टनम आदि शहरों में जाकर महिलाओं से मुलाकात की और उन्हें सेनेटरी नैपकिन के प्रति जागरूक किया।