काव्य-सुधा साहित्यिक परिवार की मानसून गोष्ठी में बही रस-छंदों की धार

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बाँसवाड़ा। काव्य-सुधा साहित्यिक परिवार की मानसून काव्य गोष्ठी नगर बाँसवाड़ा के न्यू हाऊसिंग बोर्ड स्थित किड़न गार्डन से0 स्कूल में सम्पन्न हुई जहाँ बाँसवाडा सहित अन्य क्षेत्रों से लगभग 40 साहित्यकार सम्मिलित हुए।
इस साहित्यिक गोष्ठी की अध्यक्षता देश के ख्यातनाम सबरस कवि नरेंद्रपाल जैन ऋषभदेव ने की। मुख्य अतिथि पी0एल0 बामनिया उदयपुर एवं विशिष्ट अतिथि बाँसवाड़ा के वरिष्ठ साहित्यकार भूपेंद्र उपाध्याय तनिक रहे। प्रारम्भ में गोष्ठी में आमंत्रित रचनाकारों ने माँ वीणापाणि की पूजन किया। काव्य सुधा साहित्यिक परिवार की योजना, कार्यों, उद्देश्यों आदि पर संदेश जैन ने जानकारी देते हुए उपस्थित संभागियों का स्वागत किया। मंचासीन अतिथियों द्वारा समस्त साहित्यकारों का सम्मान किया गया ।


तारेश दवे द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरंभ हुई इस गोष्ठी में विभिन्न रचनाकारों ने साहित्य की प्रत्येक विधा में वीर, भक्ति, करुण, श्रृंगार सहित नवरस से रंगी ग़ज़ल, गीत, छंद, कविताओं की बौछारों से साहित्यिक सावन का सुखद अहसास कराया। जिन में प्रमुख रूप से नरेंद्रपाल जैन ने ….आँखों में तेरा शबाब रखा है, पी0एल0 बामनिया ने ….इंसानियत मज़हब से हारी न होती, भूपेंद्र तनिक ने ….ताश के पत्तों की तरह, हिमेश उपाध्याय ने ….सुरों की साधना प्रस्तुत की। राम पांचाल भारतीय ने ….मैं तो हूँ कतरा पानी का, माँ तो पूरा समंदर है, मयूर पंवार ने ….फूलों की तरह अपना तू जीवन बिताया कर, सूर्यकरण सोनी ने ….नेह भरे नयना तेरे, जगदीश मुरी ने ….माँ है तो मुझे कोई डर नहीं होता, प्रह्लाद सिंह प्रताप ने ….सुक्को तेरी यही कहानी, उत्तम मेहता ने ….देखकर माहताब बहके है, कामिनी रावल ने ….क्योंकि मैं बेटी हूँ सुना कर समा बाँध दिया। तो प्रेम शर्मा ने ….सावन के झूलों पर झूलती कुछ मद मस्त सी, राजेन्द्र राज सन्तवानी ने ….नक्श पहले तो बहारों के मिटाना तेरा, जलज जानी ने ….मिले जो दिल जवां, मोहनदास वैष्णव ने ….दृगों में है समाहित, अतुल पंचोरी ने ….यूँ ही नहीं पालते शौक ज़ज़्बातों के, पंकज देवड़ा ने राजस्थानी गीत ….ओ बादरा! पाणी देता जाजो, महेश पंचाल माही ने ….जो शब्दों में संवेदन हो तो सुंदर छंद होता है रचनाओं को पेश कर महफ़िल को परवान चढ़ाया।
रोहिणी पंड्या ने ….सरहद रक्षा की ख़ातिर, प्रियंक ठाकोर ने ….दिल का हर ख्याल हर अरमान है तू, हरीश चंद्र सिंह ने ….दुर्गा काली शक्ति स्वरूपा, बृजमोहन तूफान ने ….अब हम भारत को इंडिया नहीं कहेंगे, विजय गिरी काव्यदीप ने ….कल्पना के पंख लेकर उड़ते चहकते छंद ये, संदेश जैन ने ….वो वफ़ा का पैगाम समझते ही नहीं जैसी रचनाओं को पढ़ कर काव्यमय वातावरण को और ऊँचाई प्रदान की।
सावन की फुहारों के संग इस ख़ुशनुमा माहौल में विद्यालय की संचालक प्रधानाचार्या निशा सिंह एवं गोष्ठी में श्रोता के रूप में सम्मिलित लोकेंद्र सिंह की सराहनीय उपस्थिति भी उल्लेखनीय रही जिनका काव्य सुधा परिवार की तरफ से साहित्य के प्रति समर्पण हेतु सम्मान किया गया।इस काव्य गोष्ठी का संचालन वसी सिद्दीकी ने किया तथा आभार महेश पंचाल माही ने ज्ञापित किया।

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