विश्वकर्मा पूजा की सार्थकता और विश्वकर्मा समाज

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17 सितम्बर का दिन पूरी दुनिया के लिये एक पावन अवसर है। इस दिन विश्व शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की पूजा बड़े ही धूमधाम से की जाती है। जाति-वर्ग, गरीब-अमीर का कोई भेद नहीं रहता। लोग अपने-अपने तरीके से पूरी श्रद्धा के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं। विश्वकर्मा समाज की तो बात ही निराली है, क्योंकि वह वंशज हैं तो पूजा करनी ही है। कष्ट यही है कि पूजा वर्ष में सिर्फ एक दिन करनी है। काश! प्रतिदिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा हो और 17 सितम्बर को पूजा समारोह हो।

गवान विश्वकर्मा की पूजा की एक और सार्थकता है। कहने को तो भगवान को एक कुंतल का प्रसाद चढ़ता है, पर भगवान उसमें से ग्रहण कितना करते हैं?? यह एक बड़ा सवाल है। जवाब भी है, जब प्रसाद लोगों के बीच बांटा जाता है तो उनकी आत्मा के साथ परमात्मा भी संतुष्ट होते हैं। कहने का आशय हुआ कि हम भगवान विश्वकर्मा की पूजा के साथ कुछ ऐसा करें कि भगवान खुश हों। गरीबों, जरूरतमंदों, असहायों की मदद करना भगवान को पुष्प चढ़ाने के बराबर है।

समाज में कुछ ऐसे सेवाकार्य हैं जो पूजा के पुष्प के बराबर है। उदाहरण के तौर पर लार्ड विश्वकर्मा चैरिटेबल ट्रस्ट शामली, विश्वकर्मा एकेडमी (प्रो0 नूतन प्रकाश विश्वकर्मा) व श्री विश्वकर्मा सभा वाराणसी है। शामली जिले में गठित लार्ड विश्वकर्मा चैरिटेबल ट्रस्ट का कार्य अनुकरणीय है। नाममात्र के शुल्क पर सेवा का ऐसा कार्य काबिलेतारीफ है। साथ ही विश्वकर्मा एकेडमी भी अतुलनीय कार्य कर रही है जो नाममात्र के पंजीकरण शुल्क पर भरपूर निःशुल्क शिक्षा प्रदान कर रही है। वाराणसी की श्री विश्वकर्मा सभा भी अतुलनीय कार्य कर रही है जो बच्चों को निःशुल्क पढ़ा रही है। श्री विश्वकर्मा चैरिटेबल ट्रस्ट रेड ब्रिगेड भी बहुत सराहनीय कार्य कर रही है। जागरूकता, पर्यावरण से लेकर जरूरतमन्दों की मदद तक का कार्य बहुत सराहनीय है।

कई और भी संस्थाएं हैं जो इस तरह सेवाभाव का कार्य कर रही हैं। हमारे कहने का मतलब इतना है कि भगवान की मूर्ति या प्रतिमा के सामने सिर्फ अगरबत्ती और पुष्प चढ़ाना ही उनकी पूजा नहीं है। उनकी सच्ची पूजा तब होगी जब अगरबत्ती और पुष्प के साथ गरीबों, असहायों, बीमारजनों, जरूरतमन्दों की मदद की जाय जिससे विश्व शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की आत्मा सन्तुष्ट हो।

-कमलेश प्रताप विश्वकर्मा

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