अपनी मिट्टी की सौंध होना बहुत जरूरी— चोयल

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जयपुर। कलावृत्त एवं स्नेहा आर्ट गैलरी के संयुक्त तत्वाधान में राजस्थान ललित कला अकादमी परिसर में सम्पन्न हुये चार दिवसीय समसामयिक चित्रकला कैंप एवं परिचर्चा-2019 सम्पन्न हुई। शिविर में आये सभी कलाकारों ने अपनी कलाकृतियों को आकार एवं रंग प्रदान किये। कलाकारों ने अपनी विभिन्न कलाकृतियों को पूर्ण करते हुए अपने भाव व विचारों को भी कैनवास पर बखूबी उकेरा, वही कैम्प में आए कला प्रेमियों और कला छात्रों ने भी इन तमाम कलाकृतियों को मजे से देखा और जमकर सराहा।
इसके साथ ही यहां आयोजित परिचर्चा में कई वरिष्ठ कलाकारों ने अपने विचार व्यक्त किए एवं बदलते परिवेश में कला परिदृश्य को सबके सामने रखा। इस दौरान परिचर्चा में आए स्टूडेंट्स और कला के जानने वाले लोगों ने कलाकारों से संवाद व सवाल कर अपनी जिज्ञासा को शांत भी किया। परिचर्चा की शुरुआत में सभी कलाकारों ने दिवंगत कलाविद डा. सुमहेन्द्र को नमन कर कला जगत में उनके सम्पूर्ण योगदान को याद कर उनकी कलाकृतियों में छिपे हुए भावों को सबके सामने प्रस्तुत किया।
इस दौरान कलाविद आर.बी.गौतम, उदयपुर के डॉ. शैल चोयल और प्रोफेसर भवानी शंकर शर्मा ने विभिन्न विषयों पर परिचर्चा में भाग लिया और अपने विचार व्यक्त किये। साथ ही वर्तमान परिदृश्य में कला जगत में हो रहे बदलाव को भी सबके सामने रख, उनकी आवश्यकता और सार्थकता के बारे में भी अपने-अपने विचार व्यक्त किये। परिचर्चा में कलाविद आर.बी. गौतम ने ‘राजस्थान में समसामयिक कला’ विषय पर बात करते हुए कला में बढ़ते औद्योगीकरण पर भी चिंता जताई। साथ ही इस बात की भी आवश्यकता जताई कि कला को पारंपरिक कला को सृजनात्मकता के रूप में विकसित कर आगे क्या किया जाना चाहिये।
डॉ शैल चोयल ने ‘कला में नवाचार’ विषय पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कला के विभिन्न कालों को दृश्यों के रूप में दिखाकर कला के मोहनजोदड़ो काल से लेकर वर्तमान काल तक के सफर को सबको वाकिफ कराया। साथ ही कला जगत में बाहरी दिखावे और चकाचौंध को लेकर चिंता भी व्यक्त करते हुए कहा कि कला चाहे किसी भी प्रकार की हो लेकिन कला में अपनी मिट्टी की सौंध होना बहुत जरूरी है, जो कि सुमहेन्द्र जी की कलाकृतियों में बखूबी आज भी आती है।
इस अवसर बात करते हुए शैल चोयल कहा कि कला समय का दस्तावेज होने के साथ ही स्वयं कलाकार का आईना भी होती है। आधुनिक कला हमें सिखाती है कि हमें सबको आजमाना चाहिए और सबका इस्तेमाल करते हुए खुद की सृजनात्मकता को रंगाकार प्रदान करना चाहिये। परिचर्चा के आखिर में डॉ सुमहेन्द्र के पुत्र संदीप सुमहेन्द्र ने सभी कलाकारों एवं अतिथियों का स्वागत करते हुए सभी का आभार जताया एवं कला जगत में अपने पिता के योगदान को खुद के द्वारा भी हमेशा कायम रखने का भरोसा सभी को दिलाया।

—साभार

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