जांगिड़ ब्राह्मण समाज के विकास लिए “अहम” बना हुआ है बाधक!

-प्रकाश चंद्र शर्मा (वरिष्ठ पत्रकार)
जांगिड़ ब्राह्मण समाज एक मेहनतकश बुद्धिजीवी कौम है। इसमें कोई शक नहीं। लेकिन चिंता इस बात की है, आखिर तरक्की के बीच रोड़ा कौन? कई बुद्धिजीवियों का मानना है और उनका तर्क है इसके बीच में स्वयं “अहम” बाधक बना हुआ है। समाज में आजकल शपथ ग्रहणों की बाढ़ आ रही है। अध्यक्षों के लिए शपथ दिलाई जाती हैं। माला-साफा पहनाकर उनका स्वागत भी किया जाता है। शपथ के बाद ना अध्यक्ष का पता और ना ही विकास की चर्चा। जबकि होना यह चाहिए कि मंच पर बाहर से आने वाले बुद्धिजीवियों, सरकारी या अर्धसरकारी कर्मचारियों को बोलने के लिए अवसर देना चाहिए। जिससे समाज के विकास व कुरूतियों के बारे में अवगत करा सके। लेकिन होता है उलटा? यहां तो कार्यक्रम में बाहर से आने वाले लोगों को देखकर या पर्ची सिस्टम से मंच तक बुलाया भी जाता है, किसके लिए भाषणों के लिए नहीं। सिर्फ स्वागत की रस्म अदा करने के लिए। हाँ,स्वागत होना चाहिए वो भी सीमित। लेकिन यहां तो स्वागत उस बात का होता है कि मैं उन सबसे बड़ा बनकर कुछ और तरीके से जाना पहचाना जाऊ। स्वागत के बाद मंच पर एक दूसरे की अच्छाई,बुराई की थाली परोसी जाती हैं। हँसी ठिठोली के बाद मंच से आवाज आती है, जो भी समाज बंधु यहां पधारें है वो भोजन के लिए पधारें।
भोजन के लिए लोग बैठकर या फिर जैसी व्यवस्था आयोजक की हो उसी अनुसार मीनू के माध्यम से भोजन कराया जाता है। भोजन उपरांत लोग मुछों पर ताव देकर चलते बनते हैं या फिर वहीं बैठकर भोजन के स्वाद के बारे में चर्चा शुरू कर देते हैं। कुछ लोगों का कहना होता है। अगर भोजन में फला चीज और होती या फिर हम लोगों से सलाह ली होती तो वास्तव में मजा आ जाता। खैर कोई बात नहीं जो हुआ ठीक हुआ। लेकिन आज एक प्रश्न समाज के उन लोगों के लिए पीछा कर रहा है। कि वर्षों से चली आ रही मांग,की आखिर समाज को उन्नति के शिखर पर लाने के लिए या फिर घिसी पिटी परंपराओं से उन्मुक्त होने के लिए समाज के बीच मे बाधक बने “अहम” से आखिर कब मिलेगा छुटकारा?