डा0 राजेश विश्वकर्मा ने जन्म से मूक बधिर सवा दो हजार बच्चों को दी आवाज
अहमदाबाद। जन्म से बहरा होना मतलब पूरा जीवन इशारों की भाषा पर रहना। लेकिन अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के ईएनटी (कान, नाक एवं गला) विभाग के सर्जन ने ऐसे ही एक दो नहीं बल्कि सवा दो हजार बच्चों को आवाज दिलाई है। दरअसल ऐसे बच्चों का ऑपरेशन कर कृत्रिम कान लगाए हैं। जिनके माध्यम से न सिर्फ ये बच्चे बोलने लगे हैं बल्कि इनमें से कई तो संगीतकार और इन्जीनियरिंग की पढ़ाई भी कर रहे हैं। इस ऑपरेशन को चिकित्सकीय भाषा में कोकलियर इम्पलांट कहा जाता है।
अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में कोकलियर इम्पलांट की शुरुआत के बाद से अब तक डेढ़ हजार बच्चों के कृत्रिम कान लगाए हैं। इनमेंं से लगभग आधे ऑपरेशन राज्य सरकार की ओर से निशुल्क किए गए हैं। वैसे देखा जाए तो एक इम्पलांट की कीमत साढ़े पांच से छह लाख रुपए तक होती है लेकिन राज्य सरकार की ओर से स्कूल हेल्थ प्रोग्राम के अन्तर्गत नि:शुल्क है। सिविल अस्पताल ईएनटी विभाग में इस तरह की सर्जरी किसी सरकारी अस्पताल में सबसे पहले शुरू हुई थी। इतना ही नहीं सिविल अस्पताल के ईएनटी विभागाध्यक्ष डॉ0 राजेश विश्वकर्मा ने राज्य के अन्य शहर सूरत, राजकोट, वड़ोदरा, गांधीनगर आदि में भी कोकिलियर इम्पलांट की सर्जरी सिखाई थी। राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों के ३२ शहरों में इम्पलांट की सर्जरी सिखाई है। संभवत: देश में सबसे अधिक इम्पलांट करने वाले डॉ0 विश्वकर्मा ने अब तक २२५० बच्चों को आवाज देने में मुख्य भूमिका निभाई है।
क्या है कोकिलियर इम्पलांट—
जन्म से बहरे बच्चों को सुनने के लिए आर्टिफिसियल (कृत्रिम कान) लगाया जाता है। इस यंत्र से बच्चे सुनने लगते हैं। कान के पीछे की हड्डी में इस यंत्र को लगाया जाता है। कान के लेबल पर जब आवाज पहुंचती है तो यह यंत्र वायरलेस से आवाज को कान की मुख्य नस और उसके बाद दिमाग तक पहुंचाता है। इसके बाद वह सुनने लग जाता है।
जन्म के तीन वर्ष तक अच्छे परिणाम—
कोकिलियर इम्पलांट के सबसे बेहतर परिणाम जन्म से लेकर तीन वर्ष तक की आयु के होते हैं। अधिक आयु में बोलने के लिए स्पीच थेरेपी की ज्यादा जरूरत होती है। क्योंकि बच्चे सुन कर ही बोलना सीखते है।
इस जमाने में कोई रह न जाए मूकबधिर—
डेढ़ दशक पहले तक यह यदि बच्चा जन्म से मूकबधिर है तो उसके बारे में यही सोचा जाता था कि वे जीवन भर तक इशारों से ही समझ सकेगा। लेकिन कोकिलियर इम्पलांट की तकनीक से अब ऐसा नहीं है। ऐसे बच्चे को इम्पलांट के माध्यम से समाज की मुख्य धारा में जोड़ा जा सकता है।
इन्जीनियर और संगीतकार भी हो गए हैं अब—
सिविल अस्पताल में मूकबधिर बच्चों का इम्पलांट करने के बाद कई तो इन्जीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं तो कई संगीतकार भी हो गए हैं। यदि ये बच्चे इम्पलांट नहीं करवाते तो न तो वे अच्छी तरह से पढ़ाई कर सकते थे और न ही संगीतकार बन सकते थे।
इन्जीनियर और संगीतकार भी हो गए हैं अब—
सिविल अस्पताल में मूकबधिर बच्चों का इम्पलांट करने के बाद कई तो इन्जीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं तो कई संगीतकार भी हो गए हैं। यदि ये बच्चे इम्पलांट नहीं करवाते तो न तो वे अच्छी तरह से पढ़ाई कर सकते थे और न ही संगीतकार बन सकते थे।
”कोकिलयर इम्पलांट ऑफ ग्रुप इंडिया की ओर से हर संभव यही प्रयास किया जा रहा है कि कोई बच्चा बहरा होने के कारण मूक बधिर न रहे।”
डॉ0 राजेश विश्वकर्मा, एचओडी ईएनटी सिविल अस्पताल एवं कोकिलियर इम्पलांट ग्रुप ऑफ इंडिया के अध्यक्ष