एक परिचय— महान स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी नरी राम विश्वकर्मा

पिथौरागढ़। महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी नरी राम विश्वकर्मा का जन्म 5 जुलाई 1905 में कीट राम के घर जोहार मुनस्यारी के बुर्फू गाँव मे हुआ था। नरी राम की शिक्षा तल्ला जोहार (बमोरी) में हुई। 1938 में इन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली और बढ़ चढ़कर कांग्रेस के कार्यक्रमों में भाग लेना शुरु कर दिया जिस कारण अंग्रेजो ने इनको अपने नज़र में रखे रखा और उनको गिरफ्तार करने के लिए एक मौका तलाशने लगे।
इनका कार्य क्षेत्र मुख्यतः गराई गंगोली था, वहीं से उन्होंने महात्मा गाँधी के साथ जाकर सत्याग्रह आन्दोलन में भाग लिया और अंग्रेजो के खिलाफ अन्दोलन किया। अंग्रेजो को तो उन्हें गिरफ्तार करने के लिए एक मौके की तलाश थी। 24 फरवरी 1941 को नरी राम विश्वकर्मा को अंग्रेजी सरकार ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। अंग्रेजी सरकार को उनकी माली हालत के बारे मे पता था इसलिये 28 अप्रैल 1941 को उनके ऊपर 5 रुपये का जुर्माना लगाया गया। जुर्माना ना भरने पर उनके घर से सामानों (एक थुल्मा, एक दन, एक पंखी=60 रुपए) की कुर्की कर नीलामी कर दी गयी। नीलामी के दौरान उनके घर से तांबे का एक लोटा गलती से लुढ़ककर पडोसी के खेत में जाकर गिरा और आज भी वह लोटा उनके घर पर मौजूद है।
अंग्रेजी सरकार के खिलाफ लगातार आन्दोलन से उनके विरुद्ध 5 मार्च 1941 को नोटिस जारी किया गया लेकिन उन्होंने उस नोटिस का बहिष्कार किया, जिस कारण उनको 7 मार्च 1941 को अल्मोड़ा जेल में डाल दिया गया। 21 मार्च 1941 को अल्मोड़ा से हटाकर जिला जेल बरेली भेज दिया गया और नगद जुर्माना ना भरने पर राच हत्कार्घा चरखा, खाना बनाने के बर्तन नीलम कर दिए गए और 60 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश बहुगुणा के साथ भी वो जेल मे रहे।
उनके परम मित्र हरीश सिंह जंगपांगी जो कि दुम्मर में रहते थे उनके कहने पर सन 1944 में गाँधी नगर गाँव आये और यहाँ लोगो को बसाया। देश में स्वतंत्रता आंदोलन अपनी चरम सीमा पर था और वह भी गाँधी जी के साथ आंदोलनों मे अपनी भागीदारी दे रहे थे और देश के सभी अन्दोलनकारियों की सहायता से 15 अगस्त 1947 को भारत को आज़ादी मिली। सन 1948 में वो जिलाबोर्ड अल्मोड़ा के सदस्य भी रहे।
आजादी के बाद जब वह अपने घर वापस आये तो उनकी दो पत्नियों (आनन्दी देवी और पदिमा देवी) से एक भी संतान प्राप्त नहीं हुवा था इसलिये वो संतान की प्राप्ति के लिए कैलाश चले गए और वहाँ भोलेनाथ की गुफा मैं तपस्या की। कुछ समय बाद वो अपने घर वापस आ गए और सन 1962 में रंजीत विश्वकर्मा के रूप में पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। 8 अप्रैल 1981 को उनका बीमारी के चलते देहांत हो गया।
ऐसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को ‘विश्वकर्मा किरण’ पत्रिका परिवार की तरफ से शत—शत नमन।
(साभार— मुनस्यारी)