विश्वकर्मावंश की गौरव हैं ‘पद्मश्री’ सम्मानित सुभाषिनी मिस्त्री
दिल्ली। विश्वकर्मावंश की ‘लौह देवी’ सुभाषिनी मिस्त्री ने अपनी लोहे सी तपती जिन्दगी में जो हासिल किया वह सिर्फ विश्वकर्मा वंशीय समाज ही नहीं, वरन सम्पूर्ण देशवासियों के लिये अनुकरणीय व गौरवशाली है। 78 साल की सुभाषिनी मिस्त्री ने ‘पद्मश्री’ मिलने के बाद कहा कि— ‘मुझे बेहद खुशी है कि सरकार ने मेरे काम को मान्यता दी है, लेकिन इससे ज्यादा प्रसन्नता तब होगी जब दूसरे लोग इससे प्रेरणा लेकर समाज की बेहतरी के लिए काम करने आगे आएंगे। मुझे तो अपना अवार्ड उसी दिन मिल गया था जिस दिन अस्पताल शुरू हुआ था और पहले मरीज का सफलतापूर्वक इलाज हुआ था।’
लगभग तीन दशकों तक कभी आया तो कभी सब्ज़ी विक्रेता के तौर पर काम करने वाली सुभाषिनी ने पाई-पाई जोड़ कर दक्षिण 24-परगना जिले के ठाकुरपुकुर इलाके में एक ‘ह्यूमैनिटी अस्पताल’ की स्थापना की है ताकि किसी ग़रीब मरीज़ को इलाज के अभाव में दम नहीं तोड़ना पड़े। यहां मरीजों का लगभग मुफ़्त इलाज किया जाता है। इसी काम के लिए मिस्त्री को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। हाल ही में उन्होंने सुंदरवन के दुर्गम इलाके पाथरप्रतिमा में भी अस्पताल की एक शाखा की स्थापना की है।
अब वह अपने डाक्टर बेटे अजय कुमार के साथ इस अस्पताल का कामकाज देखती हैं। ‘ह्यूमैनिटी अस्पताल’ में मरीजों का मुफ़्त इलाज किया जाता है। अब तक चंदे और कुछ संगठनों से मिलने वाली आर्थिक सहायता के बूते चलने वाले इस अस्पताल में फ़िलहाल 25 बिस्तर हैं। डाक्टरों और दूसरे जीवन रक्षक उपकरणों की भी कमी है। सुभाषिनी को उम्मीद है कि अब पद्मश्री मिलने के बाद शायद केन्द्र या राज्य सरकार और दूसरे संगठन उनके इस सामाजिक महायज्ञ में आहुति देने के लिए आगे आएं।
पश्चिम बंगाल के बेहद गरीब परिवार में जन्मी सुभाषिनी की शादी महज 12 साल की उम्र में ही हो गई थी। लेकिन महज़ 12 साल बाद ही पति साधन चन्द्र मिस्त्री की मौत के चलते उनको विधवा का लिबास पहनना पड़ा। तब तक उनके चार बच्चे हो चुके थे। मिस्त्री बताती हैं, ‘आंत्रशोथ की मामूली बीमारी ने ही मेरे पति को लील लिया। हमारे पास उनके इलाज के लिए पैसे नहीं थे। उसी समय मैंने संकल्प किया कि गरीबी की वजह से मेरे पति की तरह कोई मौत का शिकार नहीं होना चाहिए।’
सुभाषिनी कहती हैं, ‘मेरे पति को अस्पताल में दाखिल नहीं किया गया था, नतीजतन उनकी मौत हो गई।’ तब उनका सबसे बड़ा बेटा साढ़े चार साल का था और सबसे छोटी बेटी महज डेढ़ साल की। पति की मौत के सदमे से उबरने के बाद सबसे बड़ी समस्या चार बच्चों का पेट पालने की थी। साक्षर नहीं होने की वजह से उन्होंने आया का काम शुरू किया। उसी दौरान उन्होंने मन ही मन संकल्प किया कि चाहे जो हो जाए गरीबों के मुफ्त इलाज के लिए वह एक अस्पताल जरूर खोलेंगी।
बच्चे अनाथालय में रहे—
वह कहती हैं कि घर का खर्च पूरा नहीं पड़ने की वजह से दो बच्चों को अनाथालय में रखना पड़ा। अपनी मेहनत और दृढ़ निश्यच के चलते उन्होंने अपने एक बेटे अजय को पढ़ा-लिखा कर डाक्टर बनाया। वही आज मां के साथ मिल कर अस्पताल का तमाम कामकाज देखता है।
बच्चों का पेट पालने के साथ ही सुभाषिनी ने पाई-पाई जोड़ अस्पताल के लिए पैसे इकट्ठा किए। इसके लिए दिन भर मज़दूरी करने के बाद उन्होंने शाम को सब्जियां बेची और लोगों के घरों में बर्तन धोए। लगभग तीन दशक तक पेट काट-काट कर पैसे जुटाने के बाद उसने हांसपुकुर गांव में एक बीघे ज़मीन खरीदी। वर्ष 1993 में स्थानीय लोगों की सहायता से ह्यूमैनिटी ट्रस्ट का गठन कर एक अस्थायी क्लीनिक की स्थापना की गई।
आसपास के कई गांवों के लोगों ने अस्पताल के निर्माण के काम में सुभाषिनी की सहायता की और वर्ष 1996 में बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल के0वी0 रघुनाथ रेड्डी ने इस अस्पताल के पक्के भवन का उद्घाटन किया। उसके बाद से सुभाषिनी और उनकी टीम ने पीछे मुड़कर नहीं देखा है। इस कर्मयज्ञ के लिए उनको प्रतिष्ठित ‘गाडफ्रे फिलिप्स ब्रेवरी अवार्ड’ समेत कई सम्मान मिल चुके हैं।
लेकिन इतना कुछ करने के बावजूद सुभाषिनी संतुष्ट नहीं हैं। वह कहती हैं कि उनका सपना उसी समय पूरा होगा जब यहां चौबीसों घंटे तमाम विशेषज्ञ डॉक्टर उपलब्ध होंगे और यहां एक आधुनिक अस्पताल जैसी तमाम सेवाएं मुहैया होंगी। वह कहती हैं, “मेरा मिशन अभी पूरा नहीं हुआ है, अस्पताल का विस्तार जरूरी है। इसमें आईसीयू समेत कई अन्य सुविधाओं और कर्मचारियों की जरूरत है। सरकार से आर्थिक मदद मिलने पर यह काम आसान हो जाएगा।”
तमाम दिक्कतों के बावजूद सुभाषिनी ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है। वह कहती हैं, ‘जब बिना किसी पूंजी के यहां तक पहुंच गई तो आगे भी कोई न कोई राह ज़रूर निकलेगी।’
सुभाषिनी मिस्त्री की जाति तप्त लोहे से है *लोहार वंश* की है; मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है ।
इसे स्पष्ट करेंगे ?
इस देवी को कोटी कोटी चरणों में गिर कर *रामा शंकर शर्मा* के नमन का अहसास हो ?
रामा शंकर शर्मा ।
ग्राम-बडगाॅव (बुकनाव)
पोस्ट- संझौली
जिला- रोहतास
पिन- 802210
बिहार
*अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ* के रोहतास जिलाध्यक्ष
*लोहार विकास मंच* के प्रदेश अध्यक्ष
बिहार
अति सराहनीय कार्य
प्रशंसा के लिए शब्द नही है
Kya kahu ni shabd hu ye to khud itna bada Jawab hai aise samaj ko Jo sadhan nahi hone par rone rota hai gar sachchi Lagan ho to koi kaam mushkil nahi, Dil se naman hai,, kon kehta hai ki aasman me suraakh nahi ho sakta,, ek patthar tabiyat se uchhalo to yaro,,, bahut door tat mushkilo ka Samundar hai faila huwa,, aaj tu apne bazuwo ko dekh, patwar na dekh.. ?️
Outstanding work in humanity .maa tujhe salam
Bhaut khoob jay vishwakarma baba
हमे गर्व है कि हमारे समाज की महिला को पद्म सम्मान से नवाजा गया है। उनका जीवन अनुकरणीय है। में समस्त उत्तर प्रदेश समाज की ओर से हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई देता हूं।
यशपाल सिंह जांगिड़
प्रदेश वरिष्ठ उपमंत्री एवम प्रवक्ता
अखिल भारतीय जांगिड़ महासभा, उत्तर प्रदेश
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महासचिव
विश्वकर्मा महासंघ, उत्तर प्रदेश
इतना सोचना ही बड़ी बात है, इन्होंने ये करके दिखा दिया। बहुत सराहनीय कार्य किया है और लगातार करते जारहे हैं।
गर्व है आपकी सोच और लगन पर ।
Most dedicated job God bless her I am a also practioner please visit Dr ravi sharma dhanbad being treated the ailing patients if needed in will also be there to help the ailing patients by ayurveda and neuro therapy. Thanks and best brave Its a good achievement for our community as well as society. My mobile number is 8409595966
On youtube
Very inspirational and creative example
for humanbeings of society !Govt. should manage funds for upgradation of Humanity Hospital,so that poorest among poor people be tested.
अति उत्तम कार्य मैं ऐसी ममतामयी देबी को सादर प्रणाम करता हूँ, और समाज के लोगों से अनुरोध करता हूँ कि श्रीमती सुभाषिनी मिस्त्री से पृेरणा लेते हुए इन्हीं की भांति एक मिसाल कायम करें।