झाड़ू-पोछा करने वाले वासुदेव पांचाल 23 साल से पढ़ा रहे संस्कृत

इन्दौर। स्कूल में झाड़ू-पोछा और घंटी बजाने का काम करने वाला चपरासी कक्षा में जाकर बच्चों को पढ़ाए। वो भी संस्कृत जैसा विषय। उस पर बच्चे शत प्रतिशत परिणाम भी ले आए। यह सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लगता है लेकिन इन्दौर जिले के गिरोता स्थित शासकीय हायर सेकेण्डरी स्कूल में यह 23 साल से हो रहा है। ये हैं इन्दौर से करीब 80 किलोमीटर दूर स्थित गिरोता गांव के सरकारी स्कूल में पदस्थ वासुदेव पांचाल। सरकारी रिकॉर्ड में वे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं लेकिन बच्चों के लिए वे किसी भी दूसरे शिक्षकों से ज्यादा बढ़कर हैं।
वे उन सभी के लिए मिसाल हैं, जो सिर्फ सरकारी व्यवस्थाओं का रोना रोते हैं। गिरोता के स्कूल में लंबे समय से संस्कृत के शिक्षक की नियुक्ति नहीं हुई थी। इससे बच्चों को संस्कृत पढ़ने में काफी परेशानी होती थी। गिरोता गांव शहर से काफी दूर होने के कारण यहां शिक्षक जाने से कतराते हैं। बीते कई वर्षों का रिकॉर्ड है कि यहां कभी दो-तीन से ज्यादा शिक्षक पदस्थ नहीं रहे। वर्तमान में भी यहां सिर्फ दो ही शिक्षक हैं। इसके अलावा एक क्राफ्ट टीचर है। प्रशासनिक कार्य के लिए प्राचार्य पदस्थ हैं। जबकि नियमानुसार यहां विषयवार कम से कम पांच शिक्षकों की आवश्यकता है। 11वीं और 12वीं में पढ़ाने के लिए कॉमर्स विषय के लिए शिक्षक होना चाहिए। लेकिन अन्य स्कूलों की तरह यह भी शिक्षकों की भारी कमी से जूझ रहा है।
इतने कम स्टाफ में करीब 170 बच्चों को पढ़ाना मुश्किल होता है। इन्हीं परेशानियों को देखते हुए बीए पास 54 वर्षीय वासुदेव पांचाल ने स्वप्रेरणा से बच्चों को पढ़ाने का फैसला लिया। वे रोजाना झाड़ू-पोछा या पानी पिलाने का काम करने के साथ ही 1996 से हाईस्कूल के बच्चों को पढ़ाने का काम भी कर रहे हैं। अब तक करीब 15 हजार बच्चों को पढ़ा चुके हैं। दसवीं की परीक्षा में संस्कृत का परिणाम भी शत प्रतिशत रहा है।
स्कूल में पढ़े होने से खास अपनापन—
वासुदेव कहते हैं कि मैं गिरोता गांव का ही रहने वाला हूं और इसी सरकारी स्कूल में पढ़ा हूं। स्कूल व गांव के बच्चों से अपनापन है। यहां कभी भी संस्कृत पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं रहे। मुझे संस्कृत आती थी तो मैंने 1996 से इस मकसद से पढ़ाना शुरू किया कि थोड़े समय के लिए मदद हो जाएगी। सरकार ने कोई नियुक्ति नहीं की इसलिए सिलसिला अभी तक जारी है। वे कहते हैं कि मुझे अच्छा लगता है जब बच्चे बहुत अच्छे नंबरों से पास होते हैं। जिस स्कूल ने मुझे नौकरी करने लायक बनाया उसी स्कूल के लिए अपना समय और ज्ञान देकर बहुत खुशी होती है।
बच्चों के आने से पहले झाड़ू-पोछा कर लेता हूं—
वासुदेव बताते हैं कि मैं बच्चों के स्कूल आने से पहले सुबह जल्दी पहुंचकर झाड़ू-पोछा, पानी भरना, ऑफिस व कक्षाएं व्यवस्थित करना आदि काम कर लेता हूं। इसके बाद प्रतिदिन दो पीरियड पढ़ाता हूं। इसके बाद ऑफिस के अन्य कार्य करता हूं। बच्चे जाने के बाद दोबारा साफ-सफाई करना पड़ती है। वर्तमान में बच्चों की त्रैमासिक परीक्षा की तैयारी चल रही है।
मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार के लिए चयन—
गरोता स्कूल के प्रभारी प्राचार्य महेश निंगवाल कहते हैं कि मुझे जब वासुदेव पांचाल के शिक्षण कार्य के बारे में पता चला तो मुख्यमंत्री उत्कृष्टता पुरस्कार 2018 के लिए शासन को प्रस्ताव भेजा था। शासन ने पुरस्कार के लिए चयन भी कर लिया है। भोपाल में वरिष्ठ आईएएस अफसरों के समक्ष वासुदेव ने प्रेजेंटेशन दिया था, सभी ने खूब सराहा। बच्चे भी उनसे पढ़ना काफी पसंद करते हैं।
रिपोर्ट— मुकेश विश्वकर्मा
समाज को ऐसे निस्वार्थ भाव से सेवा करने वालों की बहुत जरूरत हैं । ? ?
सराहनीय कार्य ।ऐसे प्रतिभावान ब्यक्तियो से देश और समाज का विकास होता है। धन्यवाद शुभकामनाएं