1 जून आते ही बरबस याद आ जाते हैं स्व0 राम जियावन दास बावला

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गंवई क निवासी बनबासी उदासी हम,
घासी में पाती में जिनगी बिताईला।
बाँह बल बूता अछूता अस जंगल मे,
मंगल के कामना से मंगल मनाईला।
सेवा में फूल फल जल से पहारी के,
पाहुन केहू आवे त परान अस जोगाईला।
धूरी में माटी में अपने परिपाटी में
विंध्याचल घाटी में बावला कहाईला।।
-स्व0 रामजियावन दास बावला

1 जून 1922 को चन्दौली जिले के चकिया तहसील के भीषमपुर गांव में जन्मे भोजपुरी के तुलसीदास कहे जाने वाले कवि रामजियावन दास बावला की आज जयंती है। ‘बावला’ भोजपुरी साहित्य का एक ऐसा आलोचक और भक्त कवि जिसने राम पर लिखा तो राम का हो गया, कृष्ण पर लिखा तो कृष्ण का हो गया, महादेव पर लिखा तो स्वयं महादेव का हो गया, किसानों पर लिखा तो किसानों का अपना हमदर्द हो गया, गरीबों और मजदूरों पर लिखा तो उसमें अपने आप को जिया, अपनी पीड़ा को महसूस किया। शोषितों और वंचितों की आवाज बने। बहुत से विद्वानों ने तो उन्हें किसान कवि, लोक कवि बताया और भोजपुरी भाषियों ने उन्हें भोजपुरी का तुलसीदास तक कह दिया।

वनवासी भगवान राम की पीड़ा को महसूस करते हुए बावला जी ने एक सुप्रसिद्ध गीत की रचना की, जिस गीत ने रामजियावन दास को रामजियावन दास “बावला” बना दिया-

कहवां से आवेला कवन ठाँव जइबा बबुआ बोलता ना,
के हो दिहलस तोहके बनबास बबुआ बोलता ना।

इसके अलावा बावला जी ने भ्रष्टाचार पर भी लिखा। शासन और प्रशासन तक को बावला जी की कलम ने नहीं छोड़ा-

देश बिदेश क के नाहीं थूकल
कहवाँ नाँव बिकाइल नाहीं,
फिर भी पुलिस लजाइल नाहीं।
राह जनी मनमानी देखा,
मिलत दूध में पानी देखा,
जनता में अनुशासन देखा,
शासन और प्रशासन देखा,
चौराहे से लूट के भागल डाकू,
तनिक डेराइल नाहीं।
फिर भी पुलिस लजाइल नाहीं।।
भ्रष्टाचार क उज्जर पंख
देखै केहू पसार के आंख,
केकर केकर कहीं कहानी।
तीत लगी मोर अटपट बानी,
घुसखोरी व्यापार भइल बा,
पर केहू पकड़ाइल नाहीं।
फिर भी पुलिस लजाइल नाहीं।।
सगरों करै मदारी खेला
आन्हर गुरू त बहिरा चेला,
बिद्यालय में छूरा कट्टा।
नीक मिलल बा नैतिक पट्टा,
बलात्कारी घटना क अखबार में,
छपल बटाइल नाहीं।
फिर भी पुलिस लजाइल नाहीं।।
भव सागर क उफनल बाढ़
केकरे बल पर रहीं जा ठाढ़,
रहल सुरक्षा दल क आस।
करै बावला के बिसवास,
इंदिरा जी पर गोली बरसल,
करिखा लगल धोवाइल नाहीं।
फिर भी पुलिस लजाइल नाहीं।।

बावला जी ने प्राकृतिक सौंदर्य पर भी अपनी कलम को दिशा दिया है। जंगल, नदी, झरना, जीवों को भी अपनी रचना में प्राथमिकता दी है। वन कटान से आहत बावला जी ने लिखा-

हरियर बनवा कटाला हो किछू कहलो न जाला,
देखि देखि जीव घबड़ाला हो किछू कहलो न जाला।

अपने भक्तिपरक तेवर में बावला जी ने अपने आराध्य महादेव को भी चुनौती दे डाली-

असरा मोर अगर गिर जाई गिरी राउरो पानी

बावला जी की रचनाओं की अब तक दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। पहली किताब है “गीतलोक” जिसकी भूमिका पद्मश्री पं0 विद्यानिवास मिश्र जी ने लिखी है और दूसरी किताब गीत मंजरी जिसके संपादक साहित्य अकादमी भाषा सम्मान से सम्मानित महाकवि पं0 हरिराम द्विवेदी और पं0 जयशंकर प्रसाद द्विवेदी हैं। पं0 हरिराम द्विवेदी जी ने बावला को किसान चेतना का कवि बताया है। एक छंद में अपने आराध्य से बावला जी विनती करते हैं-

दा दुःख दीनदयाल हमें पर एक ठे आवै त एक टरै दा।
ढेर न दा धन धाम हमें परिवार क पेट मजे में भरै दा।
कोप करा त करा एतने जेतने में न पेंड़े क पात झरै दा।
काल के हाथ मरीं त मरीं न अकाल के हाथ से नाथ मरै।

महादेव उनके अपने हैं जैसे कोई मित्र हो । एक गीत के भाव का प्रभाव देखिये मानो बावला जी स्वयं महादेव से वार्तालाप कर रहे हों-

गरे मुण्ड कै माला लिहले बगल में केहरि छाला,
कहवाँ जाला बुढ़ऊ।
कवनो भेद हमे समुझाला कहवाँ जाला बुढ़ऊ।

इसी भक्तिपरक कड़ी में एक गीत है-

डिम डिम डमरू बजावेला हमार जोगिया

यह बावला जी का काफी प्रसिद्ध गीत है लेकिन आजकल साहित्य चोरी की परम्परा का शिकार स्वयं बावला जी भी हुए हैं। कैसे गीत से गीतकार का नाम हटाकर उसे पारंपरिक बताकर गाना या फिर उसे अपने नाम से गाकर वाहवाही लूटना यह आजकल चलन में है।

गले में रुद्राक्ष की माला, कंधे पर जनेऊ, हाथ में एक लकुटी, पानी पीने के लिए नारियल का पात्र और तांबे का लोटा और साहित्यिक संगठनों द्वारा मिले कुछ पुरस्कार बस यही बावला जी की निजी संपत्ति है। बावला जी सिर्फ चौथी कक्षा तक की पढ़ाई किये थे उसमें भी पता नहीं चौथी कक्षा में पास हुए थे या फेल इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं है। लेकिन बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय जैसे केंद्रीय विश्वविद्यालय में एक चौथी कक्षा तक पढ़े व्यक्ति पर आज पीएचडी के स्कॉलर शोध कर रहे हैं यह उनकी सबसे बड़ी पूंजी है। आज तो बावला जी के गांव के ग्राम प्रधान, ग्रामवासी ही बावला जी को लेकर निष्क्रिय हैं फिर हम शासन और प्रशासन से क्या ही उम्मीद करेंगे। खैर इसका मलाल हम भोजपुरी प्रेमियों को आजीवन रहेगा। वो कहते हैं न-

सारा जग जीत हम अइनी, घरवें में हार हम गइनी

भोजपुरी साहित्य, भोजपुरिया समाज सदैव बावला जी का आभारी रहेगा। बावला जी की जयंती की आप सभी साहित्य प्रेमियों को ढेर सारी शुभकामनाएं।

-धीरेन्द्र पांचाल

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