जोहतरीन बाई विश्वकर्मा ने तपते लोहे से गढ़ी जिंदगी

3
Spread the love

धमतरी। धधकती आग में तपते लोहे पर वह हथौड़े से तब तक प्रहार करतीं हैं, जब तक कि लोहा मनमाफिक आकार में न ढल जाए। जोहतरीन बाई ने लोहे सी तपती जिंदगी को मनमाफिक आकार में ढाला है। पति और बेटे की असामयिक मौत के बाद वह टूटी नहीं बल्कि खुद को संभाला और विधवा बहू का भी संबल बनीं। मजबूत इरादों वाली 68 बरस की जोहतरीन बाई विश्वकर्मा आधी दुनिया को यही सीख देती नजर आती हैं कि हालात कितने भी प्रतिकूल हों, महिला अबला नहीं सबला है। वह अपनी दृढ़ता से तमाम बाधाओं पर काबू पा सकती है।
छत्तीसगढ़ के धमतरी शहर के जोधापुर वार्ड में रहने वाली जोहतरीन बाई अपने युवा बेटे की मौत के गम से उबर भी न पाई थीं कि पति ने भी दुनिया छोड़ दी। बहू व चार पोते-पोतियों की जिम्मेदारी सिर पर आ गई। खानदानी रोजी ऐसी कि जिसे सिर्फ पुरुषों के लिए ही जाना जाता है। इसके बाद भी जोहतरीन बाई ने हिम्मत न हारी। मन को फौलाद सा कठोर किया और जुट गईं लोहे को आकार देने में। उन्होंने लोहारी के पारिवारिक काम को ही जारी रखने का फैसला किया।
बुजुर्ग सास की हिम्मत देख अंतत: बहू का भी हौसला बढ़ा। दोनों विधवाओं ने लोहारी को न केवल अपनाया बल्कि कठोर मेहनत से इसमें महारथ हासिल की। जोहतरीन बाई व उनकी बहू गीता की आज लोग मिसाल देते हैं। जोहतरीन के पति सोमन विश्वकर्मा पेशे से लोहार थे। बेटा उत्तम बड़ा हुआ तो वह भी पिता के काम में हाथ बंटाने लगा। दस साल पहले बेटे की मौत हो गई। इस गम से उबरी भी न थीं कि पति सोमन भी गुजर गए। दो कमाऊ पुरुषों की मौत से पूरा परिवार सड़क पर आ गया।
जोहतरीन के सिर पर बहू, दो पोते व दो पोतियों की जिम्मेदारी आ गई। ऐसे में जोहतरीन ने खुद को लोहारी की भट्ठी में तपाकर पूरे परिवार को संकट से उबार लिया। आज एक पोता ट्रैक्टर चलाता है तो दूसरा ऑटो। बड़े पोते व बड़ी पोती की वे शादी भी कर चुकी हैं। बड़े पोते को पांच साल का एक बेटा भी है।

3 thoughts on “जोहतरीन बाई विश्वकर्मा ने तपते लोहे से गढ़ी जिंदगी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.

%d bloggers like this: