भारत हिन्दी है– शम्भुनाथ मिस्त्री

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गाँधी जी का 4 फरवरी 1916 को मालवीय जी के हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के समारोह में दिया गया वह भाषण जिसमें उन्होंने बड़ी मजबूती से साफ साफ कहा था कि पिछले पचास वर्षों में हमको अपनी मातृभाषा (हिन्दी) में शिक्षा दी गयी होती तो ऐसी (गुलामी की) अवस्था में आज क्या हम होते ? हमारा देश भारत आजाद होता। हमारे शिक्षित लोग अपने ही देश में विदेशियों की तरह न होते।

1918 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन में बोलते हुए बापू ने हिन्दी भाषा को (पूरे राष्ट्र की) राजभाषा बनाने को कहा था। बापू ने हिन्दी को ही जनमानस की भाषा की संज्ञा दी थी। वैदिक संस्कृत से प्राकृत और फिर पाली तथा अपभ्रंश (अवहट्ट) इत्यादि कितने ही विकास-चरणों के बाद हिन्दी और खासकर खड़ी बोली हिन्दी का जो स्वरूप आज है वह हम भारत वासियों की साँसें और दिल की धड़कन है। यह विश्व की सर्वश्रेष्ठ भाषा है। जिस अंग्रेजी पर कुछ लोग गर्व करते हैं वह न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया,कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन के भी कुछ हिस्सों में बोली जाती है। ब्रिटेन में तो आयरिश, स्कॉटिश, वेल्स इत्यादि भाषाएँ अधिक बोली जाती हैं।

भारतीय संविधान के अनुसार हिन्दी भारत संघ की भाषा है। हमें अंग्रेजी से परहेज़ नहीं है। भाषा-शिक्षण एवं ज्ञानार्जन के लिए अंग्रेजी क्या किसी भी भाषा से कोई परहेज नहीं होना चाहिए। परहेज है तो अंग्रेजियत से , गुलामी की प्रवृत्ति से । इस प्रवृत्ति के कारण ही राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना को जितनी ऊर्जा मिलनी चाहिए, नहीं मिल पाती है। संपूर्ण राष्ट्र की राजभाषा हिन्दी हो,उसके लिए सौ फीसदी संबल प्राप्त नहीं हो पाता है।

भारत में हुए जी 20 के सम्मेलन में “प्रेसीडेंट ऑफ भारत” ; भारत के प्रधानमंत्री की मेजपट्टिका पर अंकित “भारत” ; “रिपब्लिक ऑफ भारत” इत्यादि पर बवाल होना क्या संकेत देता है? इंडिया अंकित नहीं होने का मतलब क्यों कुछ लोग नाम बदलना समझ रहे हैं जब कि भारत नाम संविधान में अंकित है और सरकार की ओर से नाम बदलने की कभी कोई बात हुई ही नहीं है। भारतीय संविधान में इंडिया के साथ (दैट इज) भारत है और संविधान के हिन्दी संस्करण में में तो स्पष्ट लिखा है, “भारत, अर्थात इंडिया, राज्यों का संघ होगा।”

उपर्युक्त संदर्भ के उल्लेख की आवश्यकता इसलिए पड़ी कि इसी अंग्रेजियत की प्रवृत्ति के कारण ही हिन्दी को आज भी हम उस ऊंचाई पर नहीं देख पा रहे हैं , जिस ऊंचाई पर उसे होना चाहिए। इन्हीं कुछ बवालों के चलते संपूर्ण भारत संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी की वह प्रतिष्ठा, जिसकी वह अधिकारिणी है, सौ फीसदी नहीं मिल पा रही है।

भाषा संपूर्ण राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांध रखती है। विविधता में एकता का मतलब विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं के अस्तित्व के साथ संपूर्ण राष्ट्र में बोली-समझी जाने वाली और राज के कामकाज में व्यवहार की जाने वाली एक राष्ट्रीय भाषा अवश्य हो ‌। इससे क्षेत्रीय भाषाओं को भी लाभ मिलता है और राष्ट्रभाषा का भंडार भी समृद्ध होता है।

हिन्दी अब विश्व की श्रेष्ठ भाषा में गिनी जाती है। अकेले भारत में नब्बे करोड़ से अधिक लोग हिन्दी भाषा समझते और बोलते हैं। गुयना, ट्रिनिडाड, सूरीनाम, अफगानिस्तान, फिजी, म्यांमार, मोरीशस, तिब्बत, भूटान, बांग्लादेश, नेपाल इत्यादि देशों में भी हिन्दी बोली और समझी जाती है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 120 में उल्लिखित “संसद में कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जायेगा”, और इसी 120 (2) के तहत यह भी प्रावधान किया गया था कि “संविधान के प्रारंभ से पन्द्रह वर्ष की अवधि की समाप्ति के पश्चात यह अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो” या अंग्रेजी में “शब्द का उसमें लोप कर दिया गया हो।” वैसे दुख की बात है कि संसद में आज तक हम पूर्ण रूपेण अंग्रेजी का लोप नहीं कर पाये हैं।

अब वक्त आ गया है अंग्रेजों का दिया नाम “इंडिया” का लोप हो और हिन्द का नाम भारत था, है और सदा के लिए रहेगा। भारत हिन्दी है और हिन्दी भारत है। संपूर्ण देश की हिन्दी, संपूर्ण देश के लिए हिन्दी और संपूर्ण देश के हित में हिन्दी सदा रहेगी।

लेखक-
शम्भुनाथ मिस्त्री
कुम्हार पाड़ा, दुमका-814101
(झारखण्ड)

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