विश्वकर्मा वंशीय परम पूज्य महास्वामी श्री श्री श्री गुरुनाथेंद्र सरस्वती ब्रह्मलीन
बेंगलुरू (भारत रेघाटे ताम्रकार)। विश्वकर्मा ब्राह्मण समाज के धर्मगुरु परम् पूज्य महास्वामी श्री श्री श्री गुरुनाथेंद्र सरस्वती (आनेगुंदी महासंस्थान सरस्वती पीठ यादगिरी, कलबुर्गी, कर्नाटक) 28 अगस्त की शुक्रवार शाम 5 बजे इस लोक को त्यागकर ब्रह्मलीन हो गये। स्वामीजी 92 वर्ष के थे। आत्मज्ञानी आचार्य गोविंद पांचाल ने कहा कि यादगिरी मठ आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थापित सबसे महत्वपूर्ण नींव में से एक है और स्वामी श्री गुरुनाथेंद्र विश्वकर्मा ब्राह्मण समाज के धर्मगुरु थे। आचार्य गोविंद ने भावना व्यक्त की कि गुरुनाथेंद्र सरस्वती के पास महान आध्यात्मिक, सामाजिक कार्य और महत्व था।
उज्जैन (मध्य प्रदेश) के विश्वकर्मा ज्ञान ज्योति के आचार्य संत जगदीश महाराज ने सुमनांजलि को अपने शब्द समर्पित करते हुए कहा कि स्वामी जी का कर्नाटक और महाराष्ट्र में एक समृद्ध छात्र शिष्य परिवार आश्रम है। जगतगुरु स्वामीजी अब विश्वकर्मा ब्राह्मण समुदाय के साथ नहीं हैं। स्वामीजी के बलिदान से पूरे विश्वकर्मा ब्राह्मण समुदाय को बहुत नुकसान हुआ है, समाज के लोगों को मठ व पीठों में आना चाहिए तभी समाज को धार्मिक आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति होगी। ऐसा आचार्य जगदीश ने कहा। पंढरपुर के अमोल महाराज पांचाल ने कहा कि स्वामी जी ने ज्ञान के रूप में एक अमूल्य भंडार दिया है, हम सभी उसका प्रचार-प्रसार करेंगे।
गुजरात के विश्वकर्मा प्रचारक, विश्वकर्मा साहित्य भारत, विश्वकर्मा वैदिक पत्रिका के मयूर मिस्त्री, अखंड विश्वकर्मा ब्राह्मण कल्याण समिति के संस्थापक पं0 संतोष आचार्य सभी पदाधिकारी, लेखक पं0 घनश्याम द्विज और डिजिटल गुरुकुल के सभी सदस्य, दिल्ली से वरिष्ठ समाजसेवी दिनेश वत्स, गुजरात से भरत सुथार, डाकोर विश्वकर्मा मन्दिर के अध्यक्ष चन्द्रबदन मिस्त्री, अखिल भारतीय तांबट जनशक्ति प्रतिष्ठान के संस्थापक भारत रेघाटे (ताम्रकार) पंढरपुर, सत्यप्रकाश आढवलकर, विश्वकर्मा समाज लौहकार, काष्ठकार, ताम्रकार, शिल्पकार व सुवर्णकार के सभी भक्त शिष्यगणों ने स्वामीजी के प्रति भावना व्यक्त कर श्रद्धांजलि अर्पित की।
“विश्वकर्मा किरण” पत्रिका परिवार की तरफ से स्वामी जी को भावभीनी श्रद्धांजलि।
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Nice
समाज के विकास शील व्यक्तियों की जानकारी होने से गर्व की अनुभूति होती है