रिश्तों में नफा नुकसान नहीं देखा जाता
आनंद मिश्रा जी अपनी धर्म पत्नी आरती मिश्रा और बेटे प्रियांश क़े साथ अपनी क्रेटा गाड़ी से गोमती नदी का पुल पार कर निशातगंज की तरफ बढ़े ही थे कि आठ वर्षीय बेटे प्रियांश की नजर बाई तरफ सड़क क़े किनारे खड़े ठेले पर पड़ी। ठेले पर तक़रीबन 12-13 साल की एक मासूम सी लड़की मक्के क़े कच्चे भुट्टे गोबर की कंडी की आग पर भून भून कर बेच रही थी। अचानक प्रियांश ने शोर मचाना शुरू कर दिया मम्मी मम्मी मुझे पापकॉन खाना है। वैसे तो मिश्रा जी जल्दी में थे, परन्तु प्रियांश की जिद क़े आगे उन्होंने ठेले क़े ठीक पास अपनी गाड़ी रोक दी। आरती जी ने आवाज लगाई ” ये भुट्टे वाली बेटा भुट्टे कैसे दे रही हो, उस भोली भाली मासूम लड़की ने जवाब दिया जी आंटी जी मै आनंदी हूँ, भुट्टे भून कर 15 रुपये और कच्चा 12 रुपये बेचती हूँ । बताइये आंटी जी कितने भून दूँ ?
आरती की हमेशा ही मोलभाव कर ही कोई समान खरीदने की आदत थी लिहाजा उन्होंने आनंदी से कहा ये तो बहुत महंगे हैँ, 10 रुपये में भूनकर देना हो तो दे दीजिये। आनंदीने कहा आंटी जी 10 रुपये में तो मुझे खरीद में नहीं पड़ते हैँ, मै 13 रुपये में लगा दूंगी, इससे एक रूपया भी कम नहीं। आरती ने देखा कि ये लड़की तो ऐसे रेट कम नहीं करेंगी, अतः आरती ने एक भावनात्मक चाल चली और बोली, अरे बेटा दे दीजिये मै अपने लिये थोड़ी न खरीद रही हूँ, ये लड़का जिद कर रहा है इसलिये ले रही हूँ, अरे इसे तो तू अपना छोटा भाई समझ कर ही 10 रुपये दे दे। छोटा भाई शब्द आरती क़े मुँह से जैसे ही निकला, आनंदी एक पल क़े लिये न जाने किन अतीत क़े ख्यालों में खो गई। परन्तु सहसा ही वह अपनी चेतना में लौट आई और बिना समय गवाएं उसने तीन भुट्टे अच्छी तरह भून कर, नमक और नीम्बू लगा कर, तीनों को एक एक दे दिया। आरती अपनी मोलभाव की कला की जीत पर बहुत ही ख़ुश हो रही थी, और उसने तीस रूपये छुट्टे अपनी पर्श से निकाल कर आनंदी को देने लगी। आनंदी ने कहा नहीं आंटी जी मैं इन भुट्टो क़े पैसे आप से नहीं लूंगी, वो क्या है कि आंटी जी मेरा कोई भाई नहीं है, इसलिए मैं आपके बेटे को रिश्ते में अपना छोटा भाई मान कर खिला रही हूँ। आरती ने आनंदी से कहा बेटा फिर तुम्हारा नुकसान होगा वो… आनंदी ने कहा आंटी जी रिश्तों में नफा नुकसान नहीं देखा जाता है। अचानक ही आरती आनंदी क़े इस ब्यवहार से भाव विभोर हो गई, और प्यार से आनंदी को पास बुला कर बोली, बेटा आपके घर में आपके साथ कौन कौन है ?
आनंदी की आँखों से आँशु छलक आये, और अपनेआधे फटे हुए दुपट्टे से आंशू पोछते हुए और खुद को सभालते हुए बोली, आंटी जी मेरे पापा तो कोरोना काल में ही गुजर गये थे, एक छोटा भाई था वह भी बीमारी क़े कारण और इलाज न करा पाने क़े कारण 6 बरस की उमर में दुनिया छोड़ गया था । अब एक माँ है जो बीमार रहती है, वह काम धाम करने में लाचार है। यही मेरी कमाई है, जिससे मैं अपना और अपनी माँ का भरण पोषण करती हूँ, कभी भुट्टा लगा कर बेचती हूँ तो कभी कुछ फल वगैरह बेच लिया करती हूँ। ये कहते कहते आनंदी का गला भर आया और आँखे पुनः डबडबा गईं…. आरती और उनके पति आनंद मिश्रा जी आनंदी की दर्द भरी दास्तान सुनकर खुद को आंशुओ से भीगने से रोक नहीं पाये। इसके पहले की मिश्रा जी कुछ कहते, आरती जी ने अपने हाथों से सोने क़े कंगन का जोड़ा निकाल कर आनंदी को थमा दिया। आनंदी ने कहा नहीं आंटी जी ये तो बहुत महंगे हैँ, इनको मैं कैसे ले सकती हूँ। आरती ने कहा बेटा तुमने मेरे बेटो को भाई माना है, इस रिश्ते से तुम मेरी बेटी हुई, और रिश्तों में नफा नुकसान नहीं देखा जाता है। और लो मेरा नम्बर तुम्हें जब कोई जरुरत पड़े मुझे जरूर याद करना। आरती और आनंदी दोनों एक दूसरे को एकटक देखती रही, मानो अंतर्मन से वो एक दूसरे बहुत कुछ कह रही हों। उनको देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कि वो एक दूसरे से दूर जाना ही नहीं चाह रही हों ..
परन्तु समय कहाँ रुकता है, इसलिए आनंद जी ने अनमने मन से धीरे धीरे गाड़ी आगे बढ़ा दी। और आनंदी उनकी आँखों से धीरे धीरे ओझल होती चली गई….।
-रामसनेही विश्वकर्मा “सजल“