एक लोहार के बेटे का होंडा मोटर्स का मालिक बनने तक का संघर्ष

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आज जापान की ऑटो कंपनी होंडा मोटर लिमिटेड देश और दुनिया का जाना माना नाम है और इस कंपनी के संस्थापक सोइचिरो होंडा ने संघर्ष के रस्ते ये कामयाबी पाई है। 1906 में एक लोहार के घर जन्मे होंडा ने पिता के बाइसिकल रिपेयर बिजनेस से मोटर गाडियों में रूचि लेते हुए 15 साल की उम्र में ही टोक्यो में काम सीखकर 1928 में ऑटोरिपेयर का बिजनेस शुरू किया। 1937 में होंडा ने छोटे इंजनों के लिए पिस्टन रिंग्स बनाई। वे इसे बड़ी कार निर्माता कंपनी टोयोटा को बेचना चाहते थे। शीघ्र ही उन्हें टोयोटा को पिस्टन व रिंग्स सप्लाई करने का कॉन्ट्रैक्ट मिल गया, लेकिन आवश्यक गुणवत्ता को प्राप्त न कर पाने के कारण उन्होंने ये कॉन्ट्रैक्ट खो दिया। मगर उनकी दूसरी कोशिश टोयोटा को पसंद आ गई और 1941 में उन्होंने इसे खरीद लिया। अपने प्रोडक्ट्स को बड़े पैमाने पर बेचने के लिए उन्होंने तोकाई सेकी नामक कंपनी शुरू की। जल्द ही टोयोटा ने इसके 40 प्रतिशत शेयर खरीद लिए और टोयोटा और होंडा के बीच व्यापारिक संबंध कायम हुए। लेकिन लगातार आये संकटो ने कंपनी को बहुत नुकसान पहुचाया जिसके कारण होंडा को कंपनी का शेष भाग भी टोयोटा को बेचना पड़ा। होंडा ने फिर एक बार फिर साहस बटोरा और दूसरे विश्व युद्ध में जापान की बर्बादी का कारण बने गैसोलीन कैन्स को चुन—चुन कर कच्चा माल बना लिया। होंडा ने एक छोटा इंजन बना कर इसे बाइसिकल से जोड़ दिया। उन्होंने पहला छोटा इंजन ”the super cub” बनाया।
होंडा इसे यूरोप और अमेरिका भी निर्यात करने लगे। 1949 में होंडा ने मॉडल D लॉन्च किया। ये पहली पूरी मोटरसाइकल थी जो उन्होंने अपने पार्ट्स से बनाई थी। जल्द ही इसकी मांग बढ़ी और होंडा 1964 तक मोटरसाईकल बेचने वाली सबसे बड़ी कंपनी बन गयी। होंडा ने बाद में कारें बनाई। आज होंडा कंपनी विश्व की सबसे बड़ी ऑटोमोबाईल कंपनियों में से एक है। सड़क पर चलते—फिरते होंडा का कोई न कोई वाहन तो दिख ही जाता है, लेकिन होंडा के लिए यह सब इसलिए संभव हो पाया उनके कभी हार न मानने के जज्बे से। ये उनका दृढ़ निश्चय और उस पर उनका विश्वास ही था की उन्होंने तब भी अपने लक्ष्य को नहीं छोड़ा और अंत में सफलता पाई। (संकलित)
—सुनील शर्मा

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