विद्यार्थी एवं राष्ट्र
(सम्बन्ध, छोटे पुत्र और मां का)
प्रिय मित्रों, एक छात्रनेता के रूप में मुझे अक्सर ऐसे प्रश्नों का सामना करना पड़ता है कि देश की समस्याओं को सुलझाने के लिए सरकार है, नौकरशाही है, राजनैतिक दल हैं, विभिन्न सामाजिक संगठन हैं फिर क्यूं हम छात्रों को समय—समय पर आंदोलन, नारेबाजी और प्रदर्शन करना पड़ता है?
भारत आदिकाल से एक भावपूर्ण देश रहा है, हमारे महापुरुषों, विद्वानों तथा विभिन्न सभ्यताओं ने हमेशा भाव को महत्व दिया। जब वेदों से संगीत एवं नृत्य का उद्भव हुआ तो विभिन्न भावों को स्वर, रस एवं भंगिमा की प्राप्ति हुई परंतु प्रेम, ममता और वात्सल्य के भावों को प्रदर्शित करने के लिए ये सब तुच्छ तो नहीं कह सकते परन्तु गौड़ हैं।
आज भी प्रेम, ममता और वात्सल्य की उत्पति एवं अभिव्यक्ति क्रमशः अंतर्मन व सम्मान से ही होती है। बात अगर प्रेम के सन्दर्भ में हो तो देशप्रेम से बढ़कर कोई प्रेम नहीं और मां के वात्सल्य की तुलना में अमृत को भी कमतर आंका जाता है। ये सर्वविदित है कि मां को अपने छोटे पुत्र से अधिक स्नेह होता है और छोटा पुत्र भी मां के स्वास्थ व सम्मान को लेकर कुछ अधिक सचेत होता है।
ठीक इसी प्रकार यदि समाज एक जीवंत तत्व है, तो विद्यार्थी वर्ग उसका अंश है, यदि हम सभी भारतीय समाज के लोग भारत माता के पुत्र हैं, तो हम विद्यार्थी इस मां के सबसे छोटे पुत्र हैं और स्वाभाविक रूप से हम भारत मां की समस्याओं को लेकर अधिक भावुक और संवेदनशील होते हैं।
अरे हाँ!! वो कहावत भी तो है कि ”जबतक बच्चा रोता नहीं तबतक दूध मिलता नहीं” आप सभी ने ध्यान दिया होगा कि भूख की शीघ्रता एवं व्याकुलता में कैसे बालक रो—रो कर सारा घर सर पर उठा लेते हैं, विल्कुल वैसे ही हम भी मांग ना पूरी होने पर प्रदर्शन और आंदोलन के लिए बाध्य होते हैं जो कि हमारा संवैधानिक अधिकार भी है।
इतिहास साक्षी है कि जब—जब इस धरा की मान मर्यादा को किसी ने हानि पहुंचाने का प्रयास किया तो हमेशा विद्यार्थी वर्ग ने आगे बढ़कर इसे और अधिक प्रतिष्ठित करने का कार्य किया है। फिर चाहे वो चाणक्य शिष्य चन्द्रगुप्त हों या रामकृष्ण परमहंस के शिष्य विवेकानंद हों।
परन्तु ”लम्हो की ख़ता, सदियों की सज़ा बन जाती है” जैसे मैकाले की पश्चिमी शिक्षा पद्धति आज छात्रों के संस्कार और संस्कृति के ह्रास का कारण बनी हुई है, उसी प्रकार वामपंथी विचारधारा से प्रेरित कुछ कपूतों ने मां बेटे के इस पवित्र दुग्ध—सम्बन्ध में खट्टा मिलाकर दूषित करने का प्रयास किया है, किंतु सदैव मां की सेवा में समर्पित रहने वाले राष्ट्रवादी छात्रों/सपूतों को अधिक अवसर मिला है उत्तम आचरण और कार्यों से भावी पीढ़ी को मातृप्रेम एवं देशप्रेम के निकट लाने का।
समय आ गया है कि विद्यार्थियों की शिक्षा, रोज़गार कुशलता के साथ ही राजनैतिक विचारों को भी सुधार और संबल प्रदान किया जाये जिससे देश बौद्धिक, आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक रूप से अधिक सुदृढ़ हों और सनातन संस्कृति और राष्ट्रवादी परम्परा के साथ निरन्तर आगे बढ़ें।
अंत में ”तेरा वैभव अमर रहे मां, हम दिन चार रहें ना रहें…..”
लेखक— सत्येन्द्र प्रताप चौधरी, अध्यक्ष— बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी
मो0—9838729777 ई—मेल:[email protected]