मातृ दिवस पर विशेष: माँ का स्थान सर्वोपरि
एक बच्चे को जब एक मां जन्म देती है तो उसका पहला रिश्ता मां के साथ बनता है, जो केवल प्यार और स्नेह का होता है। एक मां पूरे 9 माह शिशु को अपनी कोख में रखने के बाद एक असहनीय पीड़ा को सहकर बच्चे को जन्म देती है। जबतक वह शिशु को इस दुनिया में लाती है इतने महीने में माँ और शिशु का एक अदृश्य प्यार भरा रिश्ता बन जाता है। बच्चे के साथ साकार उसके जन्म के बाद ही होता है जो उसके पूरे जीवन पर्यन्त बना रहता है। मां और बच्चे का स्नेह और प्यार जीवन में कोई और नहीं समझ सकता। यहां तक कि देवताओ ने भी मां को सर्वोपरि कहा है। मां बच्चे का भी कवच है जो स्वयं तो सारे दुःख सह लेती है पर अपने बच्चे पर आंच तक नहीं आने देती है।
स्कूल में मातृ दिवस-
मातृ दिवस का आजकल हमारे भारत देश में भी प्रचलन बढ़ रहा है। स्कूल कॉलेज में मातृ दिवस का आयोजन बहुत ही उल्लास के साथ मनाया जाता है। इसका असर आजकल स्कूलों में दिखने लगा है। स्कूलों में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजन किया जाने लगा है। इस दिन बच्चे स्कूल में बहुत सी तैयारी करते हैं जिसमें शिक्षक उनकी मदद करते हैं। उत्सव मनाया जाता है, कविता, भाषण इत्यादि तैयार किया जाता है। स्कूल की तरफ से सभी बच्चों की मां को निमंत्रण कार्ड भेजा जाता है। सभी की मां भी बच्चों के साथ में कविता पाठ, नृत्य, भाषण, नाटक, में हिस्सा लेती हैं और अपनी प्रतिभा दिखाती हैं। माताएं अपनी तरफ से स्कूलों में पकवान लेकर जाती हैं जिसे सभी मिलकर खाते हैं। इस प्रकार यह दिन पूरी तरह से स्कूल के मध्य मां और बच्चों पर ही केंद्रित होता है।
पर मां को देवी तक मानते हैं-
मातृ दिवस को दिन मां को देवी तक मानते हैं। इस हेतु मैं आपको एक कथा सुनाता हूं।वो इस प्रकार है- एक बार की बात है सभी देवता बहुत मुश्किल में थे। सभी देवतागण शिव जी की शरण में अपनी मुश्किलें लेकर गए। उस समय भगवान शिव जी के साथ भगवान गणेश और कार्तिकेय जी भी बैठे थे। देवताओं की मुश्किल को देखकर शिव जी ने गणेश जी और कार्तिक से उनकी मदद मांगी और एक प्रतियोगिता करवाई। उनके अनुसार जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करेगा वही देवताओं की मुश्किलों को दूर करेगा। कार्तिकेय जी तो अपना वाहन लेकर निकल गए पृथ्वी की परिक्रमा करने। गणेश जी आए और उन्होंने अपने पिता शिव जी और माता पार्वती के पास गए और उनकी सात परिक्रमा करने लगे। उनसे उनकी मां पार्वती जी ने पूछा कि पुत्र तुमने ऐसा क्यों किया? तब गणेश जी ने कहा कि माता-पिता में ही पूरा संसार होता है तो मैं पृथ्वी की परिक्रमा क्यों करूं? मेरा तो पूरा संसार ही उनके चरणो में है। इस प्रकार जब देवतागण अपने माता-पिता को इतना महत्व देते हैं तो हम आम इंसानों को भी अपने माता पिता के चरणों में ही स्वर्ग समझना चाहिए।
लेखक- सत्यनारायण
छात्र- पीजी राजनीति विज्ञान
तिलकामांझी भागलपुर, विश्वविद्यालय भागलपुर
निवास- खरीक पुर्वीघारारी, भागलपुर
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