ईंट-पत्थरों को ठोकरें मारने वाला शिवम पांचाल बना फुटबाॅल खिलाड़ी, जीता गोल्ड मेडल

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पानीपत। सुविधाओं के अभाव में कोई कैसे कामयाबी पा सकता है, इसकी प्रेरणा तो कोई 20 वर्षीय शिवम पांचाल से ले। 15 साल पहले वह नूरवाला की हरि सिंह कॉलोनी की कच्ची गलियों में पड़े ईंट पत्थरों को ठोकरें मारता फिरता था। मां डांटती थी, लेकिन टेलर पिता मनोज पांचाल इस हुनर को पहचान तो गए और बेटे को फुटबाॅल से जोड़ दिया। पढ़ाई में होशियार व खेलों में शानदार प्रदर्शन की बदौलत शिवम आज पढ़ने के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर 5 गोल्ड व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 2 सिल्वर व 1 ब्रॉन्ज मेडल जीत चुका है। अब ओलंपिक में मेडल जीतना ही उद्देश्य बनाया है।
घर के हालातों की बात की जाए तो मनोज पांचाल खुद की बीमारी की दवा लेने के बाद जो पैसे बचते उससे तो उसके घर की दाल रोटी भी मुश्किल है। ऐसे हालातों में शिवम चौथी तक चेतना परिवार के स्कूल में मुफ्त पढ़ा। चौथी में स्कॉलरशिप टेस्ट पास करके 12वीं तक पूजा इंटरनेशनल स्कूल में उसी के सहारे और खेल कोटे से पढ़ाई पूरी की। बीए व बीपीएड की पढ़ाई पूरी करने के लिए खेल कोटे में दिल्ली के साउथ कैंपस स्थित मोती लाल नेहरू कॉलेज में दाखिला लिया है। अब फस्ट ईयर के पेपर हैं।
शिवम का अब तक का सफर—
शिवम ने बताया कि पहली बार 8वीं में खेलने का मौका मिला तो उसी खेल के दौरान दिल्ली की प्राइड स्पोर्ट्स एकेडमी ने चयनित कर लिया तो पहली बार कोच मिला। 2015 में नासिक में खेलकर टीम को गोल्ड मिला। इसके बाद अहमदाबाद में हुई राष्ट्रीय फुटबॉल चैंपियनशिप में शानदार प्रदर्शन की बदौलत अंडर-19 फुटबाॅल टीम में जगह पाई। 2015 में जकार्ता में हुए खेल में सिल्वर जीतने की बदौलत स्पेन में भी खेला। 2016 में श्रीलंका में टीम ने सिल्वर मेडल जीता।
टांग में लगे करंट से भी कम नहीं हुए हौसले—
शिवम ने बताया कि 2016 में इंडोनेशिया खेलने जाने से पहले दाईं टांग में करंट लग गया। यह झटका शरीर में कमजोरी करने के साथ-साथ जीवन के सपनों पर पानी फेर सकता था, लेकिन इससे हार नहीं मानी। कोच ने लग्न व हिम्मत को देखते हुए स्ट्राइकर से हटाकर कीपर की जिम्मेदारी दी। टीम ने पहले मैच में हांगकांग को 3-1 से पराजित किया। दूसरे मैच में पेनल्टी कॉर्नर से इंडोनेशिया को हराया।

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