प्रोफेसर सचिन कुमार (विश्वकर्मा) हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में AI पर शोध के लिये चयनित
दिल्ली। उत्तर प्रदेश के हापुड़ (मेरठ) जिले के निवासी विश्वकर्मा वंशीय प्रोफेसर सचिन कुमर का चयन हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में AI पर शोध करने के लिये हुआ है। गांव की गलियों में नंगे पांव और लोहे-लकड़ी के कार्यों में बचपन बिताते हुये मन मे सपना संजोये प्रोफेसर सचिन कुमार आज उड़ान पर हैं। उन्होंने गांव से निकलकर हॉवर्ड यूनिवर्सिटी पहुंचने तक का सफर एक दिलचस्प पोस्ट के माध्यम से साझा किया है, पढ़िये उनकी पोस्ट-

प्रिय मित्रों, ईश्वर की कृपा और आप सबके आशीर्वाद से, यह साझा करते हुए अत्यंत गर्व हो रहा है कि मुझे हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) में AI और Climate पर अग्रणी शोध करने के लिए शोधकर्ता (Researcher) के रूप में चयनित किया गया है। यह अवसर एक अत्यंत प्रतिस्पर्धी अंतरराष्ट्रीय प्रक्रिया के बाद प्राप्त हुआ है। यह सफर आसान नहीं था, संघर्षों, असफलताओं और चुनौतियों से भरा रहा। अपने गाँव भरनागपुर (जनपद हापुड़, उ0प्र0) में खेतों में हल चलाने और घर की वर्कशॉप में लोहे-लकड़ी का काम करने से लेकर आज हार्वर्ड यूनिवर्सिटी तक पहुँचना वास्तव में सपनों के सच होने जैसा है। यह केवल शैक्षणिक उपलब्धि नहीं, बल्कि साहस, त्याग और उद्देश्य की अनवरत खोज की कहानी है।

मैं एक साधारण ग्रामीण परिवार में पैदा हुआ। मेरे दादा श्री विजय पाल शर्मा जी और पिता श्री चंद्रवीर जी के साथ खेतों में और वर्कशॉप में काम करते हुए बचपन बीता। पढ़ाई के साथ-साथ हर तरह का काम किया। प्राथमिक विद्यालय की इमारत तक नहीं थी हम शीशम के पेड़ के नीचे पढ़ाई करते थे। कई बार एक ही शिक्षक होता था, कई बार कोई भी नहीं। कक्षा 5 तक खुले मैदान में पढ़ाई की। कक्षा 8 में रोज़ 2 किमी पैदल चलकर स्कूल जाता था। कक्षा 12 तक रोज़ 15 किमी पैदल या साइकिल से दूर स्थित साइंस स्कूल जाना पड़ता था, क्योंकि आसपास विज्ञान शिक्षा उपलब्ध नहीं थी। कभी ट्यूशन नहीं लिया, परिश्रम और परिवार के आशीर्वाद से हमेशा अच्छा किया। 10वीं और 12वीं बोर्ड (UP Board) में स्कूल टॉपर रहा। शिक्षा हिंदी माध्यम से पूरी की। मेरठ कॉलेज, मेरठ से बी.एससी. (भौतिकी, रसायन और गणित) किया और रामानुजन दयाल हॉस्टल, रूम नं. 95 में रहा। आर्थिक तंगी इतनी थी कि कई बार सालभर लगभग एक ही वक्त का भोजन किया ताकि परिवार पर बोझ न पड़े। फीस चुकाने के लिए रिश्तेदारों से उधार लिया और नौकरी लगने के बाद एक-एक पैसा लौटाया।
एमसीए (MCA) के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय के कंप्यूटर साइंस विभाग में प्रवेश लिया। वहीं से मेरी कंप्यूटर विज्ञान यात्रा शुरू हुई। 2008 में मैंने अपना पहला प्रोग्राम लिखा। कोई हॉस्टल सुविधा नहीं मिली, इसलिए रोज़ मेरठ, बागपत और हापुड़ से दिल्ली आना-जाना किया। यह कठिन था लेकिन मंज़िल साफ़ थी। आईएचएस मार्किट इंफॉर्मेशन मोज़ेक (IHS Markit – Information Mosaic) में सॉफ्टवेयर इंजीनियर की अच्छी-खासी नौकरी मिली, लेकिन एक साल के भीतर सब छोड़कर शिक्षा, शोध और समाज के लिए योगदान देने का रास्ता चुना। दिल्ली विश्वविद्यालय के क्लस्टर इनोवेशन सेंटर (CIC) में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में कार्य करते हुए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) में पीएचडी की। अब तक 35 से अधिक शोध-पत्र वैश्विक सम्मेलनों और जर्नलों में प्रकाशित किए, Springer से किताबें लिखीं और IEEE व ACM के अंतरराष्ट्रीय मंचों पर काम प्रस्तुत किया। साथ ही आम जनता और युवाओं को AI के प्रभावों के बारे में जागरूक करने के लिए YouTube चैनल @profsachinkumar1 शुरू किया।
“मैं उस गाँव से आता हूँ जहाँ बिजली भी निश्चित नहीं थी। लालटेन या ‘डिबिया’ की रोशनी में पढ़ाई करता था। आज मैं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रयोग कर जलवायु परिवर्तन और शहरी विकास जैसी चुनौतियों के समाधान खोज रहा हूँ।”
यह कहानी केवल मेरी नहीं है यह हर उस छात्र की कहानी है, जिसके पास बड़ा सपना है, जो कई किलोमीटरों पैदल चलता है और विश्वास करता है कि एक दिन दुनिया बदल सकता है। मेरा संदेश यही है-
“अपने सपनों के लिए सब कुछ झोंक दो, किसी भी कीमत पर समझौता मत करो।”
मैं अपने परिवार, रिश्तेदारों, मित्रों और शुभचिंतकों का हृदय से आभारी हूँ। आप सबका प्रेम और आशीर्वाद ही मेरी शक्ति है।
-प्रोफेसर सचिन कुमार
