आधुनिक युग का ब्रह्मास्त्र है ऑनलाइन शिक्षा
(प्रकाश चंद्र शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार) न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण बल, आइंस्टीन का सापेक्षता का सिद्धांत और एडिशन के प्रकाश बल्ब की खोज के बाद यदि मानव जीवन को किसी खोज ने प्रकाशवान किया है तो वह है इंटरनेट की खोज। अगर यह सोचा जाए की आने वाले भविष्य में प्राणवायु ऑक्सीजन के बाद मानव को जीवित रखने के लिए किसी अवयव की अत्यंत आवश्यकता होगी तो वह इंटरनेट ही होगा। पृथ्वी पर जीवन जीने के लिए आवश्यक अवयवों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष में वर्गीकृत करें तो प्रत्यक्ष अवयवो में पृथ्वी, वायु, जल, प्रकाश तो वही अप्रत्यक्ष अवयवों में इंटरनेट प्रमुख अवयव होंगे। इसी विशेषता के कारण आज के युग को इंटरनेट का युग और इस दुनिया को इंटरनेट की दुनिया के नामकरण से नवाजा गया है। वर्तमान में इंटरनेट एक ऐसी दूरी बन चुका है जिस पर संचार, बैंकिंग, उद्योग, रोजगार, व्यवसाय, सेवाएं, मनोरंजन और स्वास्थ्य के पहिए घूर्णन कर रहे हैं। इस धुरी में सबसे आधुनिक पहिया आकर और जुड़ गया है जिसे नाम दिया गया है ऑनलाइन शिक्षा। पुरातन भारत के गुरुकुल की शिक्षा पद्धति से शुरू हुआ विद्यार्जन का मार्ग मध्यकाल की पाठशालाओं से गुजरता हुआ ऑनलाइन शिक्षा के आधुनिक पड़ाव पर आ पहुंचा है।
ऑनलाइन शिक्षा के इस सजीले वृक्ष की खूबियों पर नजर डालें तो सबसे पहला फल विद्यार्थियों की झोली में टूटकर गिरा है वह है भारी भरकम बस्ते के बोझ से मुक्ति। पुस्तकों की बोरी पीठ पर लादकर विद्यालय जाते विद्यार्थी और अनाज मंडी की फड़ पर ट्रक से बोरी लादकर उतारते श्रमिक की दशा में अंतर करना कठिन सा हो गया है। बस्ते के बजन कि इस अबूझ पहेली को अगर किसी शिक्षाविद ने सुलझाया है तो उसका नाम है ऑनलाइन शिक्षा।
बच्चे के पैदल, ऑटो रिक्शा या बस द्वारा स्कूल जाने से लेकर वापस घर में कदम रखने तक के 6 से 8 घंटों के दौरान सुरक्षा की चिंता अभिभावकों के चेहरे पर स्पष्ट को उभरकर आती है। अखबारों में आए दिन छपने वाली स्कूली बच्चों के अपहरण और हत्या की खबरों ने भी अभिभावकों के मन में असुरक्षा के डर को पोषित किया है। अतः ऑनलाइन शिक्षा रूपी वृक्ष से टूट कर दूसरा फल अभिभावक और विद्यार्थियों की झोली में आकर गिरा है वह है सुरक्षा का भाव।
तकनीकी उपकरणों से नजदीकी तकनीकी को और अधिक जानने पहचानने की अवसर प्रदान करती है। तकनीकी को नजदीकी से जानने में जिज्ञासा उत्पन्न होती है और इसी जिज्ञासा में तकनीकी के विकास का क्रम छुपा हुआ है। ऑनलाइन शिक्षा ने इसी तकनीकी के विकास क्रम को आगे बढ़ाने में इंजन की भूमिका निभाई है।
ऑनलाइन शिक्षा की यह सपाट दिखती राहें हमारे नौनिहालों के भविष्य में अदृश्य रुकावटों का निर्माण कर रही हैं इन अदृश्य रुकावटों पर गौर करना अत्यावश्यक हो गया है-
दिनचर्या- प्रातः जल्दी उठकर नित्य कर्म से निवृत्त होकर विद्यालय के प्रार्थना प्रांगण में शुरुआती घंटी लगने से पूर्व पहुंचने की तय समय सीमा विद्यार्थी को दिनचर्या का नियत कर्म सिखाती है। इससे विद्यार्थी में स्फूर्ति रहने के साथ-साथ तय समय सीमा में कार्य पूर्ण करने की प्रवृत्ति का बीजारोपण होता है। ऑनलाइन शिक्षा से दैनिक दिनचर्या के बिगड़ने का खतरा प्रतीत हो गया है जिससे विद्यार्थी के सम्पूर्ण विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ने की पूर्ण संभावना हो गई है।
अनुशासन- प्रातः काल प्रार्थना सभा में सीधी लाइन में खड़े होकर प्रार्थना बोलने से लेकर विद्यालय की छुट्टी होने तक विद्यार्थी को विद्यालय में अनुशासन का पहला पाठ सिखाया जाता है,जो भविष्य में विद्यार्थी के व्यक्तित्व निर्माण के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण में भी महत्वपूर्ण सोपान बनता है। ऑनलाइन शिक्षा पद्धति में व्यक्तित्व निर्माण की इस महत्वपूर्ण संपदा का अभाव होना लगभग तय है। अनुशासन का अभाव आलस्य को जन्म देगा और आलस्य अविद्या को पोषित करेगा।
आलस्य कुतो विद्या, अविधस्य कुतो धनम्
अधनस्य कुतो मित्रममित्रस्य कुतो सुखम्।
आलसी को विद्या कहां? विद्या विहीन को धन कहां? धन विहीन को मित्र कहां? मित्र विहीन को सुख कहां?
अध्यात्म- तुम्ही हो माता पिता तुम्हीं हो, तुम्हीं हो बंधु सखा तुम्ही हो। के उच्चारण से विद्यार्थी में अध्यात्म की शक्ति के साथ साथ सात्विक गुणों का उद्गम होता है जो विद्यार्थी को सद चरित्र और सदाचरण जैसे सद्गुणों से दैदीप्यमान करते है, तो वही- ऐ शक्ति हमें दो दयानिधे कर्तव्य मार्ग पर बढ़ जाएं, परसेवा परउपकार में हम निजी जीवन सफल बना जाएं। के उच्चारण से दीप्त अध्यात्म की ज्योति विद्यार्थी को विशुद्ध मानवतावाद के दर्शन का आलोक प्रदान करती है।ऑनलाइन शिक्षा के आलय एक विद्यार्थी में इन गुणों का समावेश कर पाएंगे या नहीं यह चिंतनीय है।
नेतृत्व गुण- अच्छे नेतृत्व पर बेहतर राष्ट्र और बेहतर विश्व का भविष्य उसी तरह टिका होता है जिस तरह सौरमंडल का भविष्य सूर्य पर। अतः एक समाज के लिए यह अवश्यंभावी है कि वह राष्ट्र को उत्कृष्ट नेतृत्व गुण वाले सदचरित्र राजनेता प्रदान करें। और उत्कृष्ट नेतृत्व गुणों की आकाशगंगा विद्यालय ,महाविद्यालय और विश्वविद्यालयों के प्रांगण में विस्तार पाती है। क्या ऑनलाइन शिक्षा के क्लास रूम का लघु आकार इस विस्तार को अनुसंगित करेगा यह चिंतन योग्य है।
शारीरिक दक्षता- महर्षि पतंजलि के ‘योग सूत्र’ में योग को शिक्षा का मुख्य अवयव कहा है। महान पाश्चात्य दार्शनिक प्लेटो ने अपनी पुस्तक द रिपब्लिक के तृतीय अध्याय में लिखे शिक्षा दर्शन में प्राथमिक शिक्षा में शारीरिक शिक्षा के महत्व को प्रमुखता से उल्लेखित किया है। एक स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क निवास करता है की कहावत भारतवर्ष में अनंत काल से प्रचलित है। ऑनलाइन शिक्षा के आभासी कक्षा कक्ष विद्यार्थियों में शारीरिक दक्षता के गुणों का समावेश करने में किस तरह सफल होंगे यह प्रश्न वाद विवाद योग्य है।
सामाजिक और आर्थिक विषमता का अवयव- एक विद्यालय की चारदीवारी में पढ़ने वाले समस्त विद्यार्थियों में सामाजिक आर्थिक विषमता का भाव लगभग शून्य ही रहता है। एक जैसा गणवेश, एक जैसी दरी पट्टी और स्टूल की बैठक व्यवस्था और अध्यापक द्वारा एक जैसे अध्यापन से विद्यार्थियों में समदर्शी दृष्टिकोण का निर्माण होता है। ऑनलाइन शिक्षा के खर्चीली क्लॉक रूम विद्यार्थियों के मन में इस सामाजिक और आर्थिक विषमता के विष को पनपने से रोक सकेंगे यह यक्ष प्रश्न है।
प्रयोगिकता का अभाव- किताबो में अक्षरों के रूप में वर्णित सिद्धान्तों की परिपूर्णता प्रयोगों के बिना अधूरी है। प्रयोगों के बिना सैद्धान्तिक अध्ययन वीडियो गेम में बैठकर क्रिकेट खेलने के समान है।
ऑनलाइन शिक्षा के ऑनलाइन आचार्य एक विद्यार्थी में प्रायोगिक गुणों को कैसे विकसित कर पाएंगे यह अभिदर्शित नही हो पा रहा है।
शिक्षक: एक आदर्श- एक विद्यार्थी के जीवन का पहला रोल मॉडल उसका शिक्षक होता है। शिक्षक का विद्यालय में प्रवेश से लेकर शिक्षक का पहनावा, शिक्षक का अध्यापन का तरीका, शिक्षक का संवाद का तरीका, शिक्षक का विद्यार्थियों के प्रति व्यवहार ऐसे गुण हैं जिनका विद्यार्थी अनुसरण करते है।शिक्षक के गुणों का विद्यार्थी में संवहन के लिए जिस माध्यम की आवश्यकता होती है वह माध्यम है- विद्यालय।
मित्रल्पता- विद्यालय की कक्षा कक्ष में पेन की स्याही खत्म होने पर निकट बैठे सहपाठी द्वारा की गई मदद की विश्वसनीयता फेसबुक के हजारों मित्रों की विश्वसनीयता से उच्च पायदान की होती है। विद्यालय समय में बने मित्र समूह की परिपक्वता व्यक्ति को उम्र के अंतिम पड़ाव तक एकांत के भाव से परे रखती है। अतः ऑनलाइन शिक्षा से मित्रल्पता (मित्र+अल्पता) का खतरा नई पीढ़ी पर स्पष्ट दृष्टिगोचर है।
विद्यालय की कक्षा कक्ष की एक छत के नीचे बैठी विद्यार्थियों में परस्पर संवाद क्षमता ,सामूहिक सहयोग और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बखूबी विकसित होती है। विद्यालय के पूर्ववर्ती मेधावी छात्रों द्वारा विद्यालय में दिया गया प्रेरक संदेश विद्यार्थियों को एक प्रगतिशील चिंतक के रूप में विकसित करता है।
विद्यालय के प्रवेश बुर्ज पर लिखी ज्ञानार्थ प्रवेश- सेवार्थ प्रस्थान की भावना से राष्ट्र को बेहतर नागरिक प्रदान करने के कर्तव्य के निर्वहन में विद्यालय परिसर अब तक पूर्णतया सफल रहे हैं। देखना यह है की ऑनलाइन शिक्षा कि यह आधुनिक आभाषी विद्यालय 21वीं सदी में भारत को आर्यभट्ट, रामानुजन जैसे गणितज्ञ कालिदास, बाणभट्ट, टैगोर जैसे साहित्यकार और तिलक, गोखले, गांधी जैसे विचारक देने में सफल होंगे या नहीं?