निशांत विश्वकर्मा को रक्षामंत्री ने राष्ट्रपति कांस्य पदक से किया सम्मानित

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टीकमगढ़। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी एनडीए खड़गवासला (पुणे) में 30 नवम्बर को आयोजित तीन वर्ष के प्रशिक्षण के 137वें कोर्स की पासिंग परेड में भारत के रक्षा मन्त्री राजनाथ सिंह ने परेड की सलामी ली। इसके बाद संस्थान में सभी क्रियाकलापों में अग्रणी रहे कैडेट निशांत कुमार विश्वकर्मा को ”प्रेसीडेन्ट्स ब्रांज मेंडल” लगाकर सम्मानित किया।कैडेट निशांत ने अंतिम सेमेस्टर में बटालियन कैडेट कैप्टन का पद प्राप्त किया तथा कांस्यपदक के अलावा दो और भी पदक प्राप्त किए।


टीकमगढ़ के सुभाषपुरम निवासी डॉ0 डी0के0 विश्वकर्मा उप संचालक पशु पालन विभाग दमोह के छोटे बेटे निशांत ने अपने बचपन की पढ़ाई संस्कार किड्स केयर स्कूल तथा एंजिल एबोर्ड पब्लिक स्कूल टीकमगढ़ से प्राप्त की। इसके बाद छठवीं, सातवीं की पढ़ाई सैनिक स्कूल रीवा से तथा इन्टरमीडियेट की पढ़ाई भारतीय राष्ट्रीय सैन्य कॉलेेज आरआईएमसी देहरादून से प्राप्त की। यह संस्था एनडीए में प्रवेश के लिए छात्रों को तैयार करती है। संघ लोक सेवा आयोग यूपीएससी द्वारा आयोजित एनडीए प्रवेश परीक्षा में निशांत ने प्रथम प्रयास में ही आल इंडिया 14वीं रैंक प्राप्त की।
कैडेट निशांत विश्वकर्मा इसी 27 दिसम्बर से इंडियन नेवल एकाडमी एजीमाला केरल में एक वर्ष के प्रशिक्षण के बाद नौसेना में अपनी सेवाएं देंगे। निशांत ने इस सफलता का श्रेय अपने शिक्षकों माता-पिता, भाईयों, दादाजी हरिकृष्ण विश्वकर्मा (रिटायर्ड शिक्षक पलेरा), सहपाठियों एवं जूनियर छात्रों को दिया है। कैडेट निशांत की इस सफलता पर जिला कलेक्टर सौरभ कुमार सुमन एवं एसपी अनुराग सुजानिया ने उसे बधाई दी है, तथा उसके उज्जवल भविष्य के लिये शुभकामनाएं दी हैं।
राष्ट्रीय रक्षा अकादमी एनडीए खड़गवासला की स्थापना स्वतंत्रता के बाद की गई थी और यह संस्थान विश्व के उच्चतम संस्थानों में गिना जाता है। यहां पर भारतीय छात्रों के अलावा कई देशों के छात्र प्रशिक्षण लेने आते हैं। इसके 137वें कोर्स में 20 देशों के छात्रों ने निशांत के साथ प्रशिक्षण प्राप्त किया।
एनडीए से टीकमगढ़ का रहा लंबा रिश्ता—
टीकमगढ़ का राष्ट्रीय रक्षा अकादमी एनडीए से लंबा रिश्ता रहा है। जनवरी 1962 में एक युवक हरिकृष्णदास विश्वकर्मा जिनका जन्म और पालन पोषण टीकमगढ़ में हुआ, पहली बार 27वें कोर्स के साथ एनडीए में शामिल हुआ, तीन वर्ष के सकुशल प्रशिक्षण पूर्ण होने के बाद उन्हें भारतीय नौ सेना में अफसर का कमीशन मिला। तीस वर्ष वर्दी में रहते समय उन्होंने कई नौ सेना के पोतों और जमीनी संस्थाओं में काम किया। इसी दौरान 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध में पश्चिमी समुद्र में रहकर हिस्सा लिया, जिसमें पाकिस्तान के पोतों को डुबोया और कराची बंदरगाह पर धावा बोला। उन्हें 1979 में स्वतंत्रता दिवस की लाल किले की परेड में कमांड करने का अवसर मिला और भारत के प्रधानमंत्री को सलामी दी।

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