पति ने कोच बन दिव्यांग पत्नी को सिखाए गुर, अब देश का नाम कर रहीं रौशन
हिसार। हिसार के गांव नाड़ा की कुसुम पांचाल ने तीन साल में ही कई बार गोल्ड और कांस्य मेडल जीतकर क्षेत्र व देश का नाम रौशन किया है। महिला होने के साथ दोनों पैर से 80 प्रतिशत दिव्यांग होते हुए भी कुसुम ने हिम्मत दिखाते हुए हर मुकाम को हासिल किया है।
कुसुम रोहतक जिले के गांव डोभ की रहने वाली हैं। कुसुम ने बीएड, एमफिल और पीएचडी तक की पढ़ाई की है। अपने गांव डोभ की सबसे पढ़ी लिखी लड़की का खिताब भी इन्हीं के नाम है। फिलहाल कुसुम नरवाना ब्लॉक में लाइब्रेरियन की पोस्ट पर कार्यरत हैं।
कुसुम ने खेल के प्रति अपनी रुचि को मन में ही मार लिया था। दिव्यांग होने की वजह से वह हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी। उसके दो भाई सुनील व कुलदीप अपनी बहन को ट्रायल के लिए लेकर गए और उनका खेल के लिए चयन हो गया। पहली बार खेल के लिए घर से बाहर निकली और 2016 मे ही पैरा एथलेटिक्स में ज्वैलीन थ्रो में कांस्य पदक हासिल किया।
21 नवम्बर 2016 को नारनौंद के नाड़ा गांव के संजय से कुसुम की शादी हो गई। शादी के बाद संजय ने भी अपनी पत्नी का खेल में हौसला बढ़ाया। संजय ने खुद ही कुसुम का कोच बन उसे आगे की ट्रेनिंग देनी शुरू की। दूसरी बार में जयपुर में हुई पैरा एथलेटिक्स नेशनल चैंपियनशिप में डिस्कस थ्रो तथा शॉटपुट मुकाबलों में गोल्ड मेडल हासिल किए।
उसके बाद मार्च 2018 में पंचकूला में डिस्कस थ्रो में गोल्ड और फिर जुलाई 2018 में ट्यूनिशिया में आयोजित इंटरनेशनल प्रतियोगिता में वर्ल्ड पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में कांस्य पदक हासिल किया।
भाई और पति के सहयोग से किया हर मुकाम हासिल—
कुसुम ने शादी से पहले दो भाइयों की लाडली बहन होने के चलते उन्हें भरपूर सहयोग मिला और शादी के बाद पति ने कोच की भूमिका भी निभाई। पति संजय ने कुसुम को हर तरह से सहयोग किया और इस मुकाम तक पहुंचाने में कुसुम भी अपने पति को ही श्रेय दे रही हैं। उन्होंने कहा कि संजय ने दिव्यांग होते हुए भी उससे शादी की और भरपूर सहयोग किया।
इनसे हो चुकी हैं सम्मानित—
खेल मंत्री अनिल विज, स्याम सिंह राणा, बाराह खाप राखी शाहपुर, दो बार जींद में जिलास्तरीय कार्यक्रम में सम्मानित हो चुकी हैं। अपने गांव डोभ में गांव की सबसे पढ़ी-लिखी लड़की होने के चलते 26 जनवरी पर दो बार झंडा फहराने का अवसर भी मिल चुका है।
कोई भी मुकाम हासिल कर सकती हैं महिलाएं—
कुसुम कहती हैं कि अगर एक महिला अपने मन में ठान ले कि उसे जो हासिल करना है तो वह उस मंजिल को हासिल कर सकती है। जरूरत है तो सिर्फ हौसले की और पर्दा छोड़कर घर से बाहर निकलने की। आज महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं।
”मैं दिव्यांग होते हुए जब यहां तक पहुंच सकती हूं तो जो महिलाएं स्वस्थ हैं, वे तो कुछ भी कर सकती हैं। अब वो समय नहीं रहा कि महिलाएं सिर्फ चूल्हे—चौके तक सीमित रहें। आज घर चलाने में पुरुषों का सहयोग भी करती हैं और बच्चों को भी संभालती हैं।” कुसुम, पैरालंपिक एथलीट