राष्ट्रीय एकता के अग्रदूत : ज्ञानी जैल सिंह
पंजाब प्रदेश के फरीदकोट जिले में स्थित संधवा नाम के गांव में 05 मई 1916 को ज्ञानी जैल सिंह का जन्म हुआ था। ज्ञानी जी को अपनी मां के प्रति बड़ी श्रद्धा और गहरा प्रेम था। ज्ञानी जी के जीवन पर उनका अमिट प्रभाव पड़ा। उनकी मां ने उन्हें जिन बातों की विशेष रूप से शिक्षा दी थी, पहला परमात्मा, अपनी माता, और मात्रभूमि के प्रति सच्चा प्रेम।
ज्ञानी जैल सिंह भारत के एक महान सपूत, सच्चे देशभक्त निर्भीक सेनानी थे। उनकी राष्ट्रसेवा, उनके त्याग और बलिदान के अप्रतम गुणों ने ही उन्हें भारत के राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद तक पहुंचाया था। वे एक विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। भले ही उन्हें किसी कालेज या विश्वविधालय से विधिवत शिक्षा प्राप्त करने का अवसर न मिला हो, उनके ज्ञान का भंडार विशाल था, और वे वास्तविक रूप से ज्ञानी ही थे। अध्यात्मिक क्षेत्र में उनका अध्ययन गहन था। उन्होंने भारत के सभी प्रमुख धर्मों और मतों का गहन अध्ययन किया था। भारत में वे सिखमत के पारंगत थे ही, बौद्ध, जैन, सनातन और वैदिक मत के सिद्धांतों से भी उनका पूर्ण परिचय था। ज्ञानी जी में देशप्रेम कूट-कूट कर भरा था। उन्होंने भारत में गुलामी की बेड़ियों को काटने के लिए जान की बाजी लगाई। पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में ज्ञानी जी ने 10 अप्रैल 1973 को 640 किलोमीटर लंबे श्री गुरूगोविंद सिंह मार्ग की स्थापना का एक ऐतिहासिक कार्य किया था। ज्ञानी जी केवल पंजाब के ही नेता नहीं थे। वे सम्पूर्ण राष्ट्र को अपना घर मानते थे। वे लोकतंत्र के पक्के और सच्चे समर्थक थे। ज्ञानी जी हिंदी और भारतीय भाषा के अनन्य समर्थक थे। उनके प्रायः सभी भाषण हिंदी में ही होते थे। कभी-कभी उर्दु और पंजाबी भी बोलते थे। यह एक ऐतिहासिक सत्य है, कि जब भी वे विदेश में आते थे तो उनका औपचारिक भाषण हिंदी में ही होता था। 25 जुलाई 1982 को जब उन्होंने राष्ट्रपति पद ग्रहण किया तो सर्वप्रथम उन्होंने श्री आनंदपुर साहिब के गुरूद्वारे में यह प्रार्थना की थी कि मेरे देश के लोग सम्रद्ध हों, उनमें आपसी प्रेमभाव बढ़े। यह एक संयोग ही कि अंतिम प्रार्थना के लिए भी वे यहां हाजिर हुए थे। युवाओं के संदर्भ में उनका कहना था कि युवा वर्ग प्रतिभा और शक्ति का बहुमूल्य स्रोत है। उनका उपयोग रचनात्मक कार्यों के लिए सकारात्मक रूप से होना चाहिए। वे इतने निस्वार्थ और त्यागी पुरूष थे कि उन्होंने कभी कोई अपनी निजी संपत्ति नहीं बनाई। इतने दिनों तक दिल्ली में रहने के बावजूद उन्होंने अपना कोई घर नहीं बनाया।
कौन जानता था कि 27 नवंबर 1994 को यमुनानगर के खालसा कालेज के प्रांगण में रजत जयन्ती के उपलक्ष्य में अपने दिए गए भाषण में ये अंतिम शब्द उनकी जीवन की संध्या के संकेत होंगे।
उजाले उनकी यादों के हमारे साथ रहने दो,
न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए।
उस दिन वो बड़े प्रसन्नचित और स्वस्थ्य नजर आ रहे थे। खड़े होकर दिए गए अपने लंबे भाषण के अंत में वो सहसा भावुक हो उठे और अंत में इस शेर के बाद वे एकत्रित जनसमूह को संबोधित करके बैठ गए। उस दिन शाम को वे चंडीगढ़ विश्राम भवन में आराम करने चले गए। 29 नवंबर को एक कार दुर्घटना में उन्हें गंभीर चोटें लगी और उसके बाद 25 दिसंबर 1994 को उन्होंने अपनी आंखें सदा के लिए मूंद लीं। वे उस ऐतिहासिक गुरूद्वारा साहिब श्री आनंदपुर साहिब में प्रार्थना के बाद लौट रहे थे, जिसके प्रति उनमें अपार श्रद्धा थी। राष्ट्रपति पद भार संभालते हुए भी 25 जुलाई 1982 को सर्वप्रथम उन्होंने इसी गुद्वारे में परमात्मा से प्रार्थना की थी।
ज्ञानी जी समाज के हर पिछड़े, दलित लोगों के हक के लिए हमेशा लड़ते रहे। पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में और भारत के गृहमंत्री के रूप में भी उन्होंने समाज के हित के लिए कई अद्वितिय निर्णय लिए। वह हमेसा सभी दलों के प्रिय और सर्वमान नेता बने रहे। सभी से उनके परस्पर सौहार्दपूर्ण सबंध रहे। देश के हित के लिए उनके निर्णय हमेशा साहसिक होते थे। इन्हीं सब सकारात्मक बिंदुओं को देखते हुए पूरा राष्ट्र उनकी 25वीं पुण्यतिथि पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
-दिनेश गौड़, दिल्ली
भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह को 25 वीं पुण्यतिथि पर सत सत नमन ????