विश्वास की कमी के कारण हो रहा विश्वकर्मा समाज में बिखराव
(राजकिशोर शर्मा) विश्वकर्मा समाज के अंदर विश्वास की सख्त कमी है, जिसकी वजह से हम सभी हमेशा आपसी बिखराव के कगार पर होते हैं। हमारे अन्दर जो आत्मविश्वास की कमी है वह प्राकृतिक है, क्योंकि ऐसी प्रवृत्ति किसी दूसरे समाज में नहीं पायी जाती है। दूसरों की बातों को जल्दी ग्रहण करना भी बड़ी खामी है, दूसरे के बहकावे में जल्दी आ जाना, जिसका नतीजा हम आज तक भुगत रहे हैं। हमारी एकता ही हमारा उद्धार कर सकती है। जब तक हम लाखों की संख्या में एक नहीं होंगे, हमारे समाज की भलाई नहीं हो सकती है। हमें आपस में सामंजस्य बनाना होगा, हमारी आपस की सहमति भी जरुरी है, हमारे समाज के लोगों का विश्वास भी जरुरी है। मेरी चिन्ता इस बात को लेकर भी है हम कितने असहनशील हैं कि हमें किसी एक व्यक्ति का सन्देश सही नहीं लगता है तो हम एक दूसरे पर दोषारोपण से भी बाज नहीं आते है।
हमारे कुछ सवाल हैं अपने समाज के कर्ता-धर्ता से जो निम्नलिखित हैं-
इस बात को हमारे समाज के लिए समझना पड़ेगा कि जिस समाज में 70 से 80 प्रतिशत लोग आज भी गरीबी रेखा से नीचे आते हैं, उनका थोड़ा ध्यान रखा जाये। हमें सबको साथ लेकर चलना है लेकिन बहुतायत की बातों का समर्थन करते हुए आगे बढ़ना होगा। बिना पैसे के कोई सामाजिक कार्य नहीं हो सकता है, मानते हैं लेकिन हमें यह भी समझना होगा कि हमारे समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनकी आर्थिक स्तिथि वैसी नहीं है। क्योंकि उनके मन में हीन भावना पैदा ना हो इसीलिए सबका सहयोग और साथ जरुरी है। जब जरूरत होगी तब जो भी मजबूत होंगे समाज से वही तो मदद करेंगे। जब तक हम साथ नहीं चलेंगे हमारी कमजोरी सबको झलकती रहेगी। समाज एक व्यक्ति के कहने से ना तो आगे बढ़ता है और ना ही उसका उद्धार संभव है। समाज सबको साथ रखने से बढ़ता है। पैसा तो एक सीढ़ी है लक्ष्य तक पहुंचने के लिए। समाज को थोड़ा समय दें और सबको योगदान देने का मौका दें तभी समाज का भला होगा। हर आदमी बड़ा ही होता है, हर आदमी का अपना—अपना योगदान है समाज के लिए, लेकिन हम यहां अपने समाज के लोगों के लिए इकठ्ठा करने की बात कर रहे हैं। सबका सम्मान करना सीखना होगा हमें। कहते हैं हम जैसा खाते हैं, जैसा पहनते हैं, जैसे समाज के साथ रहते हैं उसी की वाणी हम बोलते हैं, हम भी उसी समाज से आते हैं तो हमें उसके बारे में सोचना होगा।
हमारे समाज में एकता का अभाव है, एकता से बढ़कर कोई शक्ति नहीं है। लेकिन आज जिस दौर से हम गुजर रहे हैं यह दौर काफी संवेदनशील और नाजुक है जहां से हम अपने समाज के युवाओं को यह समझाने का प्रयत्न करें कि हमें इस समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर इस देश के विकास में योगदान करना है। हमारा भी बराबर का हक बनता है और इस संविधान ने यह बराबर का हक दिया है जीने का, और हमें संवैधानिक तौर पर आगे बढ़ना पड़ेगा। किसी भी संगठन की मजबूती और उसका असर तब व्यापक होता है जब आप संख्या बल के स्तर पर उसे ज़मीन तक लेकर जाएं। हमें अपनी ज़मीन तैयार करनी है, हमें अपने निचले तबके के भाईयों को जागना है। हमारी बहुत सारी कमजोरियां हैं जिससे हमें रूबरू होना अतिआवश्यक है। जिसके बिना हम अपने समाज के उत्थान के बारे में सोच भी नहीं सकते।
आप लोगों के सहयोग से एक दिन एकता के इस लक्ष्य में कामयाबी जरूर मिलेगी। आप लोगों से हाथ जोड़कर करबद्ध प्रार्थना है कि हम और आप, आपस में प्यार बढ़ायें और एक दूसरे के सुख-दुःख में साथ दें। हमारा लक्ष्य आपस में समाज के अंदर प्यार, सहिष्णुता और एकता स्थापित करना है। एक बात हमेशा याद रखें— एकता ही समाजोत्थान का आधार है। जो समाज संगठित होगा, एकता के सूत्र में बंधा होगा उसकी प्रगति को कोई रोक नहीं सकता। किन्तु जहां एकता नहीं है वह समाज न प्रगति कर सकता है, न समृद्धि पा सकता है और न अपने सम्मान को, अपने गौरव को कायम रख सकता है।
लेखक- राजकिशोर शर्मा (सभासद- नगर पालिका परिषद, मिश्रिख, नैमिषारण्य, सीतापुर एवं जिला कोषाध्यक्ष, पिछड़ा वर्ग मोर्चा भाजपा सीतापुर)